Saturday, November 13, 2010

आखिर इतना हंगामा क्या है बरपा?

केसी सुदर्शन द्वारा सोनिया गांधी को लेकर की गई टिप्पणी से पूरे देश में बवाल है। मुद्दा कांग्रेस कार्यकर्ता वर्सेस आरएसएस हो गया। आरएसएस माहौल को देखकर बेकफुट पर चला गया, लेकिन कांग्रेस कार्यकर्ता पीछे हटने को तैयार नहीं। ऐसे में एक बात जेहन में आती है कि आखिर सोनिया गांधी का बेकग्राउंड क्या है? यही बता रहा हैं इस लेख के जरिए।

यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी को फोब्र्स मैगजीन ने २००४ में सबसे शक्तिशाली महिलाओं की सूची में उनको तीसरा स्थान और २००७ में छठवां दिया। टाइम मैगजीन ने २००७-०८ में टाइम मैगजीन ने उन्हें १०० सबसे प्रभावशाली हस्तियों में शामिल किया। कभी अंग्रेजी बोलने वाली, एलाइन फ्रॉक और लॉन्ग गाउन पहनने वाली सोनिया आज पूरी तरह से भारतीय बहू हैं। कभी उनकी नागरिकता को लेकर उन पर हल्ला बोला गया तो कभी विदेशी मूल का मुद्दा उठाया गया। उतार-चढ़ाव से भरी उनकी जिंदगी में एक बार फिर से भूचाल आ गया है। इस बार उन पर सीआईए एजेंट होने, इंदिरा गांधी की हत्या और राजीव गांधी की हत्या का आरोप लगाया गया है। पूर्व संघ प्रमुख के सुदर्शन ने बड़ी बेबाकी से ये आरोप लगाए। हालांकि, इसके तुरंत बाद बचाव की मुद्रा में आए संघ ने साफ कर दिया कि इस बारे में कभी संघ में चर्चा नहीं हुई और यह पूर्ण रूप से सुदर्शन के अपने विचार हैं। फिलहाल कांग्रेस इस मुद्दे पर पीछे हटने के मूड में नहीं दिख रही है।
तीन साल की दोस्ती फिर शादी
सोनिया का जन्म इटली से ३० किमी दूर एक छोटो से गांव लुसियाना में ९ दिसंबर १९४६ को हुआ था। उनका बचपन ऑरबेसानो में गुजरा। उनके पिता भवनों का निर्माण करने वाले ठेकेदार थे, उनकी मृत्यु १९८३ में हुई थी। १९६४ में वह अंग्रेजी की पढ़ाई करने के लिए कैंब्रिज के बेल एजुकेशन ट्रस्ट के लैंग्वेज स्कूल चली गईं। १९६५ में सोनिया की राजीव गांधी से पहली बार मुलाकात एक ग्रीक रेस्टोरेंट में हुई। उस वक्त राजीव गांधी कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के ट्रिनिटी कॉलेज में पढ़ रहे थे। दोनों ने तीन साल की दोस्ती के बाद १९६८ में शादी कर ली।
राजनीति में नहीं थी दिलपस्पी
भारत आने के बाद राजीव और सोनिया गांधी दोनों को ही राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी। १९७७ में इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी का प्रधानमंत्री पद चला गया था और इसी दौरान थोड़े समय के लिए राजीव और सोनिया विदेश चले गए थे। उनके छोटे भाई संजय गांधी की २३ जून १९८० में प्लेन क्रैशन में मृत्यु और मां इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव को मजबूरी में राजनीति में आना पड़ा। राजीव के उनकी बहू मेनका गांधी के खिलाफ अमेठी से चुनाव लडऩे के दौरान सोनिया गांधी ने उनके साथ प्रचार किया। हालांकि, तब भी वह राजनीति से खुद को दूर रखती थीं और राजनीति में नहीं आना चाहती थीं। इसके बाद राजीव गांधी की हत्या ने उन्हें तोड़ कर रख दिया। कांग्रेस की कमान पीवी नरसिंह राव के हाथों में आ गई। १९९६ में आम चुनाव में कांग्रेस की कमान सीताराम केसरी के हाथों में चली गई।
बच्चों को भीख मांगते देख लूंगी
पति की हत्या होने के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने सोनिया से बिना पूछे ही उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाए जाने की घोषणा कर दी। सोनिया ने इसे स्वीकार नहीं किया। राजनीति और राजनीतिज्ञों के प्रति अपनी घृणा व अविश्वास के चलते उन्होंने एक बार कहा था कि मैं अपने बच्चों को भीख मांगते देख लूंगी, लेकिन मैं राजनीति में कदम नहीं रखूंगी। काफी समय तक राजनीति में कदम न रख कर उन्होंने अपने बेटे और बेटी का पालन पोषण करने पर अपना ध्यान केंद्रित किया। उधर, पीवी नरसिंहाराव के कमजोर प्रधानमंत्रित्व काल के कारण कांग्रेस 1996 का आम चुनाव भी हार गई। उसके बाद सीताराम केसरी के कांग्रेस के कमजोर अध्यक्ष होने से कांग्रेस का समर्थन कम होता जा रहा था, जिससे कांग्रेस के नेताओं ने फिर से नेहरु-गांधी परिवार के किसी सदस्य की जरूरत महसूस की। उनके दबाव में सोनिया गांधी ने 1997 में कोलकाता के प्लेनरी सेशन में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण की और उसके 62 दिनों के अंदर 1998 में वो कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गयीं।
विवादों में उछाला नाम
वोटिंग रजिस्ट्रेशन: १९८० में भारत की नागरिकता पाने से पहले सोनिया का नाम दिल्ली को वोटिंग लिस्ट में था। तब उनके पास इटली की नागरिकता थी। सोनिया ने अप्रैल १९८३ में भारत की नागरिकता ले ली थी, लेकिन वोटर लिस्ट के लिए रजिस्ट्रेशन जनवरी तक ही होने थे। इसके बावजूद उनका नाम वोटर लिस्ट में था। इसलिए यह विवाद १९८३ में भी एक बार फिर हुआ।
स्विस अकाउंट: स्विटजरलैंड की एक पत्रिका स्विजर इलस्टियारटे ने १९९१ में सोनिया पर आरोप लगाया कि वह स्विटजरलैंड में एक खाते का संचालन करती हैं, जो उनके बेटे के नाम से है। पत्रिका ने यह भी खुलासा किया था कि अकाउंट में दो बिलियन डॉलर हैं। इसके बाद भी काफी विवाद हुआ।
विदेशी मूल का मुद्दा: सोनिया के विदेशी मूल का मुद्दा कई बार उठाया गया। प्रणब मुखर्जी ने २७ अप्रैल १९८३ को कहा कि सोनिया गांधी ने अपना पासपोर्ट इटेलियन एंबेसी में जमा करा दिया था। इसके जवाब में विपक्ष का कहना था कि सिर्फ पासपोर्ट जमा करा देने से यह नहीं माना जा सकता है कि उन्होंने विदेशी नागरिका छोड़ दी है। मगर, १९९२ तक इटली के राष्ट्रीयता कानून के अनुसार वहां दोहरी नागरिकता लेने का प्रावधान नहीं था। इसलिए सोनिया गांधी के १९८३ में भारत की नागरिकता लेने के बाद उनकी इटली की नागरिकता स्वत: समाप्त हो गई। १९९२ के इटली की नागरिकता के नियम के अनुसार, १९९२ से पहले तक जिन व्यक्तियों की नागरिकता चली गई वे ३१ दिसंबर १९९७ से पहले दोबारा नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं। हालांकि, इस बारे में सोनिया ने कभी टिप्पणी नहीं की कि उन्होंने इटली की नागरिकता के लिए दोबारा आवेदन किया है या नहीं। गौरतलब है कि भारत में कोई भी व्यक्ति दोहरी नागरिकता नहीं ले सकता है।
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संघ की आलोचनाएं
महात्मा गांधी की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति से क्षुब्ध होकर 1948 में नाथूराम गोडसे ने उनकी हत्या कर दी थी। इसके बाद संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। गोडसे संघ और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक भूतपूर्व स्वयंसेवक थे। बाद में एक जांच समिति की जांच के बाद संघ को इस आरोप से बरी कर दिया गया और प्रतिबंध समाप्त कर दिया गया। संघ के आलोचकों ने संघ को एक अतिवादी दक्षिणपंथी संगठन बताया जाता रहा है एवं हिंदूवादी और फांसीवादी संगठन के तौर पर संघ की आलोचना की जाती रही है। जबकि संघ के स्वयंसेवकों का कहना है कि सरकार एवं देश की अधिकांश पार्टियां अल्पसंख्यक-तुष्टीकरण में लिप्त रहती हैं। संघ का यह मानना है कि ऐतिहासिक रूप से हिंदू स्वदेश में ही हमेशा से उपेक्षित और उत्पीडि़त रहे हैं। हम सिर्फ हिंदुओं के जायज अधिकारों की बात करते हैं। आलोचकों का कहना है कि ऐसे विचारों एवं प्रचारों से भारत की धर्मनिरपेक्ष बुनियाद कमजोर होती है। संघ की इस बारे में मान्यता है कि हिन्दुत्व एक जीवन पद्धति का नाम है, किसी विशेष पूजा पद्धति को मानने वालों को हिन्दू कहते हों, ऐसा नहीं है। हर वह व्यक्ति जो भारत को अपनी जन्म भूमि मानता है, पितृ भूमि मानता है और पुण्य भूमि मानता है वह हिन्दू है। संघ की यह भी मान्यता है कि भारत यदि धर्मनिरपेक्ष है तो इसका कारण भी केवल यह है कि यहां हिन्दू बहुमत में है। इस क्रम में सबसे विवादास्पद और चर्चित मामला अयोध्या विवाद रहा है।
संघ की उपलब्धियां
संघ की उपस्थिति भारतीय समाज के हर क्षेत्र में महसूस की जा सकती हैं, जिसकी शुरुआत 1925 से हुई। उदाहरण के तौर पर 1962 के भारत-चीन युद्ध में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू संघ की भूमिका से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने संघ को गणतंत्र दिवस के 1963 के परेड में सम्मिलित होने का निमंत्रण दिया। सिर्फ  दो दिनों की पूर्व सूचना पर तीन हजार से भी ज्यादा स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश में वहां उपस्थित हुए थे। वर्तमान समय में संघ के दर्शन का पालन करने वाले कतिपय लोग देश के सर्वोच्च पदों तक पहुंचने मे भी सफल रहे हैं। ऐसे प्रमुख व्यक्तियों में उपराष्ट्रपति पद पर भैरोसिंह शेखावत, प्रधानमंत्री पद पर अटल बिहारी वाजपेयी एवं उप प्रधानमंत्री व गृहमंत्री के पद पर लालकृष्ण आडवाणी शामिल हैं।
कौन है सुदर्शन
ेकुप्पाहल्ली सीतारमय्या सुदर्शन का जन्म १८ जून १९३१ को रायपुर में हुआ था। सुदर्शन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक रह चुके हैं। वेे ९ साल की उम्र में पहली बार आरएसएस की शाखा में शामिल हुए। सुदर्शन ने सागर विश्वविद्यालय से टेलीकंयूनिकेशन में बैचेलर ऑफ इंजिनियरिंग की है। १९५४ में उन्हें आरएसएस का प्रचारक बनाया गया। आरएसएस के पूर्णकालिक सदस्यों को ही प्रचारक बनाया जाता है। एक प्रचारक के तौर पर सुदर्शन की पहली नियुक्ति रायगढ़ जिले में हुई थी। १९६४ में सुदर्शन को मध्य भारत का प्रांत प्रचारक बनाया गया। इतनी कम उम्र में ही प्रांत प्रचारक बनने से आरएसएस से जुड़े लोगों को लगने लगा था कि सुदर्शन जल्द ही आरएसएस की कमान भी संभालेंगे। १९६९ में सुदर्शन संयोजक के पद पर भी रहे। वे आरएसएस के बौद्धिक सेल के प्रमुख भी रहे। वे अलग-अलग मौकों पर शारीरिक और बौद्धिक दोनों सेल के हेड रहे हैं आमतौर पर आरएसएस में ऐसा कम होता है। सुदर्शन २००० से २००९ तक संघ के प्रमुख रहे। सुदर्शन ६ से अधिक भाषाओं के ज्ञानी हैं और इसके अलावा उन्हें कई स्थानीय और क्षेत्रीय बोलियों का भी ज्ञान है।

Friday, November 12, 2010

हिन्दुओं के लिए किए जा रहे झगड़े में हिन्दु कहीं नहीं हैं

पूरे देश में हंगामा है। एक तरफ वे लोग हैं जो सोनिया गांधी के लिए के. सुदर्शन द्वारा की गई टिप्पणी को लेकर हंगामा कर रहे हैं और दूसरी तरफ वे लोग हैं पूरी तरह से संघी हैं। इसमें हिन्दु कहीं नहीं है इसलिए ये कहना कि पूरा झगड़ा हिन्दुओं का है गलत होगा। झगड़ा केवल सड़कों पर नहीं बल्कि इंटरनेट पर भी छिड़ा है। ऐसे में भारत आज ने स्वयं कुछ लिखने की बजाय ऐसे लेखों को शामिल करने का बीड़ा उठाया जो इस पूरे मुद्दे पर खुलकर लिख रहे हैं।


अनिल सौमित्र  द्वारा लिखा गया लेख

एक बार फिर लोकतंत्र पर आपातकाल मंडरा पड़ा है. राजमाता सोनिया गांधी के सिपहसालारों ने कांग्रेसी गुण्डों, माफियाओं और लोकतंत्र के हत्यारों का आह्वान किया है कि वह देशभर में संघ कार्यालयों पर धावा बोल दे. इसका तत्काल प्रभाव हुआ और कांग्रेसी गुण्डों ने संघ के दिल्ली मुख्यालय पर धावा भी बोल दिया. ठीक वैसे ही जैसे इंदिरा गांधी की मौत के बाद सिखों को निशाना बनाया गया था. हिंसक और अलोकतातंत्रिक मानसिकता से ग्रस्त कांग्रेसी सोनिया का सच जानकर आखिर इस तरह बेकाबू क्यों हो रहे हैं?
10 नवम्बर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने देशभर में अनेक स्थानों पर धरना दिया। संघ सूत्रों के अनुसार यह धरना लगभग 700 से अधिक स्थानों पर हुआ। इनमें लगभग 10 लाख से अधिक लोगों ने भाग लिया। हिन्दू विरोधी दुष्प्रचार की राजनीति के खिलाफ आयोजित इस धरने में संघ के छोट -बड़े सभी नेता-कार्यकताओं ने हिस्सा लिया। संघ प्रमुख मोहनराव भागवत लखनउ में तो संघ के पूर्व प्रमुख कुप्. सी. सुदर्शन भोपाल में धरने में बैठे। इसी धरने में मीडिया से बात करते हुए संघ के पूर्व प्रमुख ने यूपीए और कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी के बारे में कुछ बातें कही। इसमें मोटे तौर पर तीन बातें थी - पहली यह कि सोनिया गांधी एंटोनिया सोनिया माइनो हैं। दूसरी यह कि सोनिया के जन्म के समय उनके पिता जेल में थे और तीसरी बात यह कि उनका संबंध विदेशी खुफिया एजेंसी से है और राजीव और इंदिरा की हत्या के बारे में जानती हैं। गौरतलब है कि ये तीनों बातें पहली बार नहीं कही गई हैं। जनता पार्टी के नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी सार्वजनिक रूप से कई बार इन बातों को बोल चुके हैं। गौर करने लायक बात यह है कि हिन्दू आतंक, भगवा आतंक का नारा बुलंद करने वाले और संघ की तुलना करने वाले कांग्रेसी अपने नेता के बारे में कड़वी सच्चाई सुनकर बौखला क्यों गए? लोकतंत्र की दुहाई देने वाली पार्टी अपनी नेता के समर्थन में अलोकतांत्रिक क्यों हो गई? क्या कांग्रेस स्वभाव से ही फासिस्ट है?
कांग्रेस के नेता सुदर्शन के बयान की भाषा पर विरोध जता रहे हैं। लेकिन उनकी कही बातों पर नहीं। भाषा चाहे जैसी भी हो, लेकिन कांग्रेस को मालूम है कि उसके नहले पर संघ का दहला पड़ गया है। कांग्रेस के नेता ने भी तो संघ की तुलना आतंकी संगठन सिमी से की थी। उसी कांग्रेस के नेताओं ने भगवा आतंक और हिन्दू आतंकवादी कह कर संघ को लांछित किया था। यह जरूर है कि कांग्रेस के हाथ में केन्द्रीय सत्ता की बागडोर है। संघ के हाथ में ऐसी कोई सत्ता नहीं है। कांग्रेस के बड़े नेता और केन्द्र सरकार में कांग्रेस के मंत्री चाहे तो तो जांच एजेंसियों और पुलिस को इशारा कर सकते हैं। उनके एक इशारे पर जांच की दिशा तय हो सकती है। आईबी, सीबीआई और अब एटीएस को ऐसे इशारे कांग्रेसी नेता-मंत्री करते रहे हैं। जैसे गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने पुलिस प्रमुखों की बैठक में भगवा आतंक का सिद्धांत गढ़ने की कोशिश की, जैसे दिग्विजय सिंह ने पत्रकारों से चर्चा में संघ पर आईएसआई से पैसा लेने का आरोप लगा दिया, जैसे किसी लेखक ने पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी पर सीआईए से पैसा लेने का उल्लेख किया ठीक वैसे ही सुदर्शन ने कांग्रेस प्रमुख सोनिया के बारे में कुछ रहस्योद्घाटन कर दिया। कांग्रेस सड़कों पर क्यों उतर रही है? क्यों नहीं सुदर्शन के रहस्योद्घाटन की जांच करवा लेती? देश के सामने सोनिया का सच आना ही चाहिए। अगर सुदर्शन झूठे होंगे तो वे या फिर सोनिया बेनकाब हो जायेंगी। लेकिन कांग्रेस माता सोनिया के खिलाफ कांग्रेसी कुछ सुन नहीं सकते, कुछ भी नहीं।
कांग्रेस आदर्श घोटाले, कॉमनवेल्थ घोटाले, स्पेक्ट्रम घोटाले, कश्मीर, अयोध्या, नक्सलवाद और हिन्दू-भगवा आतंक के सवाल पर बुरी तरह घिर चुकी है। कर्नाटक में उसका खेल बिगड़ चुका है। बिहार चुनाव में उसकी हालत बिगड़ने वाली है। ऐसे में संघ का देशव्यापी आन्दोलन और जन-जागरण्, कांग्रेस के नाक में दम करने वाला है। संघ काफी समय बाद सड़कों पर आया है। कांग्रेस का घबराना स्वाभाविक है। कांग्रेसियों को सड़कों पर लाने और संघ के मुद्दे को दिग्भ्रमित करने का इससे अच्छा मौका और कोई नहीं हो सकता। इसलिए सोनिया माता के अपनाम के नाम पर कांग्रेसियों को सड़कों पर उताने की तैयारी हो गई। इस तैयारी की भी संघ ने हवा निकाल दी। सुदर्शन के बयान को संघ की बजाए उनका व्यक्तिगत बयान कह कर संघ ने कांग्रेसी विरोध पर पानी फेर दिया।
हालांकि आज नही तो कल सोनिया गांधी के सवाल का जवाब तो कांग्रेस को ढूंढना ही होगा। कांग्रेस चाहे न चाहे उसे देश को यह बताना ही होगा कि सोनिया, एंटोनिया सोनिया माइनो है कि नहीं? वे एक बिल्डिंग कांट्रेक्टर स्टीफेनो माइनो की पुत्री है कि नहीं? माइनों एक रूढ़िवादी कैथोलिक परिवार से है कि नहीं? सोनिया के पिता इटली के फासिस्ट तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी के प्रशंसक थे कि नही? क्या सोनिया पर अपने पिता का प्रभाव नहीं था? माइनों ने दूसरे विश्व युद्ध में रूसी मोर्चे पर नाजियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। लेखक व स्तंभकार ए.सूर्यप्रकाश द्वारा संपादित पुस्तक ‘सोनिया का सच’ में यह उद्धृत है कि सन्1977 में, जब एक भारतीय पत्रकार जावेद लैक ने देखा कि श्री माइनो के ड्राइंगरूम में मुसोलिनी के सिद्धांतों का संग्रह था और उन्होंने अच्छे पुराने दिनों को याद किया। उन्होंने लैक को बताया कि नव-फासिस्टों को छोड़कर लोकतांत्रिक इटली में किसी अन्य राजनीतिक दल के लिए उनके मन में कोई सम्मान नहीं है। उन्होंने भारतीय पत्रकार को कहा कि ये सभी दल ‘देशद्राही’ हैं। कांग्रेस के नेताओं को यह भी बताना चाहिए कि क्या सोनिया माइनो का राजनैतिक संस्कार ऐसे ही वातावरण में नहीं हुआ था?

किसी कि भाषा, मर्यादा, संस्कृति, और शैली पर आक्षेप करने के साथ ही कांग्रेस को देश की जनता के सामने यह सच भी रखने का प्रयास करना चाहिए कि सोनिया माइनो ने राजीव गांधी से विवाह के पूरे पन्द्रह वर्ष बाद 7 अप्रैल, 1983 को भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया। आखिर भारतीय नागरिकता के प्रति वे इतने संशय में क्यों रही? कांग्रेस के नेता कांग्रेस माता के प्रति भले ही सिजदा करें, लेकिन वे देश को यह भी बतायें कि सोनिया अपने विवाह के पन्द्रह वर्ष तक अपनी इटालियन नागरिकता के साथ रही, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से वह भारत में मतदान का अधिकार प्राप्त करने के लिए उत्सुक थीं। वे जनवरी, 1980 में ही नई दिल्ली की मतदाता सूची में कैसे शामिल हो गई? जब किसी ने इस धोखाधड़ी को पकड़ लिया और मुख्य निर्वाचक अधिकारी को शिकायत कर दी तब 1982 में उनका नाम मतदाता सूची से निकाला गया। 1 जनवरी, 1983 को वे बिना भारतीय नागरिकता के ही भारत के मतदाता सूची में शामिल हो गई। किसी भी सभ्य, सुसंस्कृत, मर्यादित और कांग्रेसी शैली में कांग्रेस का कोई नेता यह सब देश के सामने क्यों नहीं रखता?
जाने-अंजाने ही सही, असामयिक ही सही लेकिन सुदर्शन ने कांग्रेस की दुखती रग पर चिकोटी काट ली है। सघ भले ही आहत हिन्दुओं को लामबंद करने, अयोध्या, कश्मीर और कांग्रेसी आदर्श भ्रष्टाचार के आगे ‘सोनिया के सच’ को नजरअंदाज कर दे, लेकिन आज नहीं तो कल उसे ही घांदी, नेहरू, माइनो और ‘बियेन्का-रॉल’ परिवार के सच को सामने तो रखना ही होगा। देश के पूर्व प्रधानमंत्री, भावी प्रधानमंत्री और श्यूडो प्रधानमंत्री के परिवार-खानदान के बारे में जानने-समझने का हक हर भारतीय का है। राजीव गांधी के नाना-नानी के साथ उनके दादा-दादी के बारे में देश को मालूम होना चाहिए। देश अपने जैसे भावी प्रधानमंत्री राहुल-प्रियंका (बियेन्का-रॉल) के दादा-दादी की तरह उनके नाना-नानी के बारे में भी कैसे अंजान रह सकता है। आखिर इस परिवार-खानदान, नाते-रिश्तेदारे के धर्म-पंथ बार-बार बदलते क्यों रहे हैं?
कांग्रेसी भले ही संघ-सुदर्शन का पुतला फूंके, लेकिन जिनके सामने वे सिजदा करते हैं उनके बारे में अपना ज्ञान जरूर दुरूस्त कर लें। संजय गांधी, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, माधवराव सिंधिया, राजेश पायलट सिर्फ कांग्रेस के ही नेता, बिल्क देश के भी नेता थे। एलटीटीई ने राजीव गांधी की हत्या की। दक्षिण की राजनेतिक पार्टियां एमडीएमके, पीएमके और डीएमके लिट्टे समर्थक रहे हैं, आज भी हैं लेकिन हत्यारों के समर्थकों के साथ कांग्रेस का कैसा संबंध है? कांग्रेस जवाब दे, न दे देश तो सवाल पूछेगा ही कि जब इंदिरा को गोली लगी तो उनके साथ और कौन-कौन था, किसी एक को भी एक भी गोली क्यों नहीं लगी? घायल अवस्था में देश की प्रधानमंत्री इंदिराजी को पास के अस्पताल की बजाए इतना दूर क्यों ले जाया गया कि तब तक उनके प्राण-पखेरू ही उड़ गए? इन सब स्थितियों में महफूज और दिन-दूनी रात चैगुनी वृद्धि किसकी हुई, सिर्फ और सिर्फ सोनिया की! कौन भारतीय है जसे संदेश नहीं होगा! कांग्रेसी भी अगर अंधभक्ति छोड़ भारतीय बन देखें तो उन्हें भी सुदर्शन के सवालों में कुछ राज नजर आयेगा। वैसे भी सुदर्शन ने कुछ नया नहीं कहा है, बस जुबान अलग है बातें वहीं है जो कभी एस गुरूमूर्ति ने कही, कई बार सुब्रमण्यम स्वामी ने लिखा-कहा, पत्रकार कंचन गुप्ता ने लिखा। आज तक कांग्रेस ने किसी प्रकार के मानहानि का आरोप नहीं लगाया, कभी सड़कों पर नहीं उतरे। कांगेस कभी तो हंगामे की बजाए सवालों का जवाब दे।

सलीम अख्तर द्वारा लिखा गया लेख
जबसे आरएसएस के लोगों की आतंकवादी घटनाओं में संलिप्तता सामने आयी है, तब से आरएसएस के नेता बौखला गए हैं। इस बौखलाहट में ही शायद संघ के इतिहास में पहली बार हुआ है कि इसके स्वयंसेवक विरोध प्रदर्शन करने के लिए सड़कों पर उतरे। इसी बौखलाहट में आरएसएस के एक्स चीफ केएस सुदर्शन का मानसिक संतुलन बिगड़ गया और सोनिया गांधी के बारे में ऐसे शब्द बोल दिए, जिन्हें एक विकृत मानसिकता का आदमी ही बोल सकता है।
अब अगर कांग्रेस के कार्यकर्ता संघ कार्यालयों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं तो इसे गलत नहीं कहा जा सकता। सोनिया गांधी को इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्या की साजिश में शामिल होने की बात कोई पागल ही कह सकता है। किसी को अवैध संतान बताने से बड़ी गाली कोई नहीं हो सकती। गलती केएस सुदर्शन की भी नहीं है। आरएसएस ने महात्मा गांधी की हत्या की। एक साजिश के तहत राममंदिर आंदोलन खड़ा करके देश के दो समुदायों के बची नफरत की दीवार खड़ी की। जो आदमी या संगठन दिन रात साजिशों में ही उलझा रहता हो, उसे दूसरे लोग भी ऐसे ही नजर आते हैं। कहते हैं कि 'चोरों को सब चोर नजर आते हैं।' आरएसएस की नीतियों की आलोचना की जाती है, लेकिन यह तो माना ही जाता रहा है कि आरएसएस के लोग अभद्र भाषा का प्रयोग नहीं करते। सड़कों पर विरोध प्रदर्शन करने के लिए उतरना और फिर राजनैतिक दलों की तरह अभद्र भाषा का प्रयोग करना इस बात का संकेत भी है कि शायद अब आरएसएस खुलकर राजनीति में आना चाहता है।
जब से आरएसएस नेता इन्द्रेश कुमार का नाम अजमेर ब्लास्ट में आया है, तब से आरएसएस बैकफुट पर आ गया है। इन्द्रेश कुमार के अलावा भी अनेक संघी कार्यकर्ता आतंकवादी घटनाओं में लिप्त पाए गए है। कानपुर और नांदेड़ आदि में मारे गए छोटे कार्यकर्ताओं के बारे में तो संघ ने यह कहकर पीछा छुड़ा लिया था कि उनका संघ से कोई नाता नहीं है, लेकिन इन्द्रेश कुमार के बारे में यह नहीं कह सकते कि उनका नाता संघ से नहीं है। तीन-चार साल पहले देश में आयी बम धमाकों की बाढ़ के पीछे कभी लश्कर-ए-तोएबा का तो कभी इंडियन मुजाहिदीन का तो पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का नाम लिया जाता रहा। इंडियन मुजाहिदीन का ओर-छोर भी आज तक खुफिया एजेंसियां पता नहीं लगा सकी है। मालेगांव, समझौता एक्सपेस, हैदराबाद की मक्का मस्जिद और अजमेर की दरगाह पर हुए विस्फोट और कानपुर, नांदेड़ आदि में संघ के कई कार्यकताओं के बम बनाते हुए विस्फोट में मारे जाने के बाद खुफिया एजेंसियों को शक हुआ था कि इंडियन मुजाहिदीन और लश्कर-ए-तोयबा की आड़ में कोई और भी बम धमाके करने में लिप्त हो सकता है। तब कुछ लोगों ने भी आशंका जाहिर की थी कि कहीं कोई और ही तो नहीं बम धमाके कर रहा है।
उधर आरएसएस के कार्यकर्ता बम धमाके करते थे, इधर आरएसएस हिटलर के प्रचार मंत्री गोयबल्स की तर्ज पर इस्लामिक आतंकवाद का ऐसा हौआ खड़ा कर देता था कि सभी का ध्यान सिर्फ मुसलमानों पर ही केन्द्रित हो जाता था। आरएसएस ने सुनियोजित तरीके से इस्लामिक आतंकवाद का ऐसा मिथक घढ़ा कि सभी को यह लगना कि आतंकवाद के पीछे मुसलमान ही हैं। हद यहां तक हो गयी कि देश के हर मुसलमान को शक की नजरों से देखा जाने लगा । हर मुसलमान आतंकवादी का पर्याय समझा जाने लगा। भारत का मुसलमान बचाव की मुद्रा में था। उसे यह नहीं सूझ रहा था कि वह क्या करे ? यहां तक हुआ कि दारुल उलूम देवबंद को आतंकवाद के खिलाफ फतवा तक देना पड़ा। जब मुसलमानों की तरफ से यह कहा गया कि सभी मुसलमान आतंकवादी नहीं हैं तो इसके जवाब में आरएसएस ने यह कहना शुरु किया कि यह सही है कि हर मुसलमान आतंकवादी नहीं है, लेकिन हर आतंकवादी मुसलमान ही क्यों है ? अब यह भी तो कहा जा सकता है कि जिन बम धमाकों में हिन्दुओं की संलिप्तता सामने आयी है, वे सभी संघी क्यों हैं? कुछ लोग तो यह आशंका भी व्यक्त करते रहे हैं कि इंडियन मुजाहिदीन के नाम से हिन्दुवादी संगठन ही बम धमाके कर रहे थे। यह संयोग नहीं हो सकता कि जब से बम धमाकों के पीछे हिन्दुवादी संगठनों का हाथ सामने आया है, तब से बम धमाके नहीं हो रहे हैं।
बम धमाकों में संघियों के नाम आने के बाद वे इस बात पर बहुत जोर दे रहे हैं कि हिन्दुओं को बदनाम करने की साजिश की जा रही है। हिन्दु धर्म और कर्म से आतंकवादी हो ही नहीं सकता। हम इससे भी आगे की बात कहते हैं, दुनिया के सभी धर्मों के भी सभी लोग आतंकवादी नहीं हो सकते। हां, कुछ लोग जरुर गुमराह हो सकते हैं। यही बात हिन्दुओं पर भी लागू होती है। और मुसलमानों पर भी। कुछ लोगों की गलत हरकतों की वजह से न तो पूरा समुदाय जिम्मेदार हो सकता है और न ही धर्म। हिन्दुओं में भी कुछ लोग ऐसे हैं, जो आतंकवादी घटनाओं में लिप्त पाए गए हैं। इसलिए यह तो बिल्कुल नहीं कहा जा सकता कि हिन्दु धर्म और कर्म से आतंकवादी होते हैं। जब आरएसएस बम धमाकों के आरोपियों के पक्ष में बोलकर यह कहता है कि हिन्दुओं को बदनाम किया जा रहा है तो वह देश के तमाम हिन्दुओं को इमोशनल ब्लैकमेल करके उन्हें अपनी ओर लाना चाहता है।
आरएसएस इस बात को भी समझ ले कि वह इस देश के 85 प्रतिशत हिन्दुओं का अकेला प्रतिनिधि नहीं है। इस देश का बहुसंख्यक हिन्दु सैक्यूलर है। हिन्दुओं ने ही बम धमाकों में शामिल हिन्दुओं के चेहरे बेनकाब किए। हिन्दुओं ने ही गुजरात दंगों पर नरेन्द्र मोदी को कठघरे में खड़ा कर रखा है। हिन्दुओं ने ही बाबरी मस्जिद विध्वंस पर अफसोस और गुस्सा जताया था। ये हिन्दु ही हैं, जो आज केएस सुदर्शन के वाहियात बयान पर आरएसएस के कार्यालयों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन आरएसएस को इस बात का अफसोस रहता है कि इस देश के सभी हिन्दु साम्प्रदायिक क्यों नहीं हैं ? क्यों वे इस देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने की उसकी योजना में शामिल नहीं होते? क्यों वे आरएसएस की हां में हां नहीं मिलाते ?



ये लेख विस्फोट डोट कॉम से सधन्यवाद लिया गया है.

Friday, September 10, 2010

पॉकेटमार को बनना पड़ेगा हाईकेट, क्योंकि आ गया है डिजीटल वॉलेट

भीमसिंह मीणा
भोपाल
भारत में नित नई तकनीक का प्रवेश हो रहा है और लोग भी इससे तेजी से जुड़ रहे हैं, क्योंकि आम भारतीय तकनीक से जुडऩे का फायदा जान चुका है। लेकिन अब पॉकेटमारों को भी आधुनिक होना पड़ेगा, क्योंकि अब पर्स (वॉलेट) जेब में नहीं रहेगा, क्योंकि वॉलेट डिजीटल हो गया है। कैसे आइए जानते हैं हाल ही में प्रकाशित डीबी स्टार के इस आर्टिकल से जो लिखा है शादाब शमी ने।
भारत में सूचना प्रौद्योगिकि के जनक सैम पित्रोदा अब एक नई तकनीक से भारत को रूबरू कराने जा रहे हैं। यह तकनीक है धन को सुरक्षित लेने-देन की जिसे डिजिटल वॉलेट कहते हैं। आइए जानें इसके बारे में कुछ अहम जानकारियां।
भारत में सूचना क्रांति के अगुवा सैम पित्रोदा ने कहा है कि मोबाइल फोन में डिजिटल वॉलेट की नई तकनीक से दुनियाभर के लोगों में पैसे के लेन-देन का तरीका बदल कर रख देगा। 1980 के दशक में कैसियो डिजिटल डायरी के खोजकर्ता पित्रोदा की कंपनी सी-सैम ने मोबाइल मनी ट्रांजिक्शन की तकनीक विकसित की है। यह आज के बैंकिंग, क्रेडिट कार्ड, भुगतान और धन की अवधारणा को बदल कर रख देगी। उनकी नई खोज की व्याख्या उनकी किताब 'द मार्च ऑफ मोबाइल मनी: द फ्यूचर ऑफ लाइफस्टाइल मैनेजमेंट में की गई है। इस किताब को योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया ने रिलीज किया था। पित्रोदा ने कहा कि आज आपके के्रडिट कार्ड, डेबिट कार्ड (प्लास्टिक मनी भी कहते हैं) को आपके पते पर भेजा जाता है, भविष्य में आपकी प्लास्टिक मनी डिजिटल होगी और उसको आपके मोबाइल फोन पर भेजा जाएगा। इससे बैंक, व्यावसाइयों के साथ ही उपभोक्ता को काफी आराम होगा और यह तकनीक मौजूदा समय में ब्राजील, बोल्विया, कोस्टारिका, सिंगापुर में प्रयोग हो रही है। उन्होंने कहा कि इस नई खोज के बारे में प्रेरणा उन्हें उनकी पत्नी से मिली, जो घंटों तक चेक पर चेक लिखा करती थीं।
क्या है डिजिटल वॉलेट
डिजिटल वॉलेट यानी आपके पास एक ऐसा बटुआ, जिसमें रुपए भौतिक रूप से मौजूद नहीं हों, लेकिन आप कहीं भी कुछ भी खरीदारी कर सकें। डिजिटल वॉलेट को ई-वॉलेट के नाम से भी जानते हैं और इससे लेन-देन जल्द और सुरक्षित तरह से हो सकता है। यह उसी तरह से होगा जैसा कि आपका बटुआ होता है, लेकिन रुपए (1000, 500, 100, 50, 20 रुपए के नोट) भौतिक रूप से मौजूद नहीं होंगे। जहां मर्जी हो वहां पर ऑन लाइन शॉपिंग इंफॉर्मेशन के जरिए खरीदारी हो सकेगी। यह तकनीक वर्तमान की मोबाइल बैंकिग से काफी मिलती-जुलती होगी, लेकिन इसमें लेन-देन तुरंत व्यावसायी के खाते में दिखाई देगा।
तकनीक में है यह
डिजिटल वॉलेट में सॉफ्टवेयर और इंफॉर्मेशन दोनों ही होते हैं। सॉफ्टवेयर की मदद से निजी जानकारियों और वास्तविक लेन-देन की जानकारियों को सुरक्षित  रहती हैं। इसमें उपयोगकर्ता की निजी जानकारी जैसे घर का पता, भुगतान का तरीका, जिसमें क्रेडिट कार्ड नंबर, सिक्योरिटी नंबर, कार्ड की एक्सायरी डेट और अन्य जानकारियां रहती हैं।
सेटअप और उपयोग
ग्राहक के लिए डिजिटल बटुए का प्रयोग करना बेहद आसान होता है। इसमें सॉफ्टवेयर को इंस्टॉल करने के बाद उपयोगकर्ता अपनी सारी जरूरी जानकारी उसमें डाल देता है। इसके बाद खरीदारी करने के बाद डिजिटल वॉलेट से आपकी सारी जानकारी अपने आप ऑन-लाइन फॉर्म में भर जाती हैं। मगर, कोई दूसरा व्यक्ति इसका गलत इस्तेमाल नहीं कर सकता है, क्योंकि इसमें एक पासवर्ड दिया रहता है। इसके चलते कोई आपकी निजी जानकारियों को भी नहीं जान सकता है। वहीं, दुकानदार के पास भी एक डिजिटल वॉलेट होगा, जिसमें ग्राहक रुपए को ट्रांसफर करेगा। मोबाइल बैंकिग से यह इस मामले में अलग है कि इसमें धन तुरंत दुकानदार के डिजिटल वॉलेट में दिखने लगेगा, जबकि मोबाइल बैंकिंग में समय लगता है।
ई-कॉमर्स साइट के लाभ
ई-कॉमर्स का अर्थ है कंप्यूटर नेटवर्क और इंटरनेट के जरिए उत्पाद या सेवाओं को खरीदना या बेचना। इंटनेट के लगातार बढ़ते प्रयोग के कारण ई-कॉमर्स में लगातार वृद्धि हो रही है। इसके बावजूद करीब २५ प्रतिशत ऑनलाइन शॉपर्स के ऑर्डर इसलिए कैंसिल हो जाते हैं, क्योंकि ग्राहक लंबे-चौड़े फॉर्म को नहीं भरना चाहते हैं। डिजिटल वॉलेट में यह समस्या नहीं रहती। इसके जरिए आप सुरक्षित और सही जानकारी बहुत कम समय में ट्रांसफर कर देते हैं। इसके साथ ही अधिकतर बड़े रिटेलर इंटरनेट पर मौजूद हैं, तो ऐसे में घर से ही सामान खरीदने के लिए ऑर्डर दे सकते हैं। 
कौन है सैम पित्रोदा
सैम पित्रोदा को भारत में सूचना क्रांति का जनक माना जाता है। सैम एक सफल उद्यमी होने के साथ-साथा एक अविष्कारक और नीति निर्माता भी हैं। उनका जन्म 4 मई 1942 को उड़ीसा के टिटलागढ़ के हुआ था। उनका असली नाम सत्यानारायण गंगाराम पित्रोदा है। वर्तमान में वे प्रधानमंत्री के 'पब्लिक इनफॉरमेशन इंफ्रास्ट्रक्चर एंड इनोवेशन के सलाहकार हैं। एक सलाहकार के तौर पर सैम इस समय भारत के नागरिकों को विभिन्न क्षेत्रों में सूचना तकनीक से जुड़ी सुविधाएं देने के लिए प्रयासरत है। सैम इस समय भारत के लिए 'डिकेड ऑफ इनोवेशन की रूपरेखा भी तैयार कर रहे हैं। सैम नेशनल नॉलेज कमीशन के चेयरमैन भी रहे हैं। वे इस पद पर 2005 से 2008 तक रहे। अपने कार्यकाल में उन्होंने27 क्षेत्रों में लगभग 300 अनुशंसाएं की, जिनका उद्देश्य आम जन के ज्ञान को बढ़ाकर जीवन स्तर को बेहतर बनान था। उन्होंने 100 के करीब तकनीक का पेटेंट करा रखा है जिसपर कार्य चल रहा है। वे सी-सैम नामक कंपनी के संस्थापक और सीईओ भी हैं। कंपनी का मुख्यालय शिकागों में है। इसका ऑफिस लंदन, टोक्यो, मुंबई और वड़ोदरा में है। सैम यूनाइटेड नेशन्स में भी सलाहकार रह चुके हैं। राजीव गांधी के प्रधानमंत्री काल में सैम उनके तकनीकी सलाहकार थे और भारत में सूचना क्रांति लाने का श्रेय उन्हें ही जाता है। 
गुजरात के थे पिता
सैम के माता-पिता गुजरात के रहने वाले थे और बाद में उड़ीसा चले गए थे। उड़ीसा में ही सैम का जन्म हुआ था। सैम के माता-पिता गांधी जी से बहुत प्रभावित थे इसी कारण उन्होंने सैम और उनके भाई को पढ़ाई करने के लिए गुजरात भेजा ताकि वे गांधीवादी बातों को भी सीख सकें। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा वल्लभ विद्यानगर से पूरी की और फिजिस्क और इलेक्ट्रानिक्स से स्नाकोत्त्तर की पढ़ाई वड़ोदरा के महाराजा सायाजीराव विश्वविद्यालय से पूरी की थी। इसके बाद उन्होंने अमेरिका के शिकागों के 'इल्लिनोस इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजीÓ से मास्टर्स इन इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की थी। २०१० में सैम को इल्लिनोस विश्वविद्यालय ने मानद डिग्री प्रदान की। सैम शिकागो के इल्लिनोस में अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ 1964 से रह रहे हैं।
इसलिए हैं संचार क्रांति के जनक
सैम को 1984
में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा विशेष तौर पर भारत बुलाया गया। भारत वापस आकर उन्होंने सी-डॉट की स्थापना की थी। यह सरकार द्वारा संचालित दूरसंचार प्रौद्योगिकी विकास केंद्र है। 1987 में वे राजीव गांधी के सलाहकार बने और उन्होंने विदेशी और घरेलू स्तर कई बड़ी दूरसंचार नीतियों का निर्माण किया। इस समय उन्होंने टेलीकंयूनिकेशन, पानी, साक्षरता, प्रतिरक्षण, डेरी और ऑयलसीड्स के क्षेत्र से संबंधित ६ मिशन तकनीकी मिशन चलाए। उन्होंने भारत में पीसीओ की शुरुआत कर टेलीफोन को आम आदमी की पहुंच में ला दिया। 1990 के दौर में सैम वापस शिकागो चले गए और वहां अपने व्यवसाय पर ध्यान देना शुरू कर दिया।2004 में यूपीए की सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उन्हें दोबारा भारत बुलाया और नेशनल नॉलेज कमीशन का प्रमुख बना दिया। जुलाई २००९ में सैम को रेलवे के आईसीटी के विशेज्ञय समिति का हेड बनने का प्रस्ताव दिया गया। इसी वर्ष अकटूबर में सैम प्रधानमंत्री के 'पब्लिक इनफॉरमेशन इंफ्रास्ट्रक्चर एंड इनोवेशनÓ के सलाहकार बन गए।
ऐसे बढ़ा ई-बाजार
1979 मिशेल एल्ड्रिच ने ऑनलाइन शॉपिंग की खोज की।
1981 यूके के थॉमसन हॉलीडेज ने सबसे पहले बिजनेस टू बिजनेस ऑन लाइन शॉपिंग की शुरुआत की।
1982 फ्रांस टेलीकॉम एंड यूजर की ओर से देशभर में ऑनलाइन ऑर्डर देने की शुरुआत की गई।
1985 में यूके की निसान कंपनी ने उपभोक्ताओं की क्रेडिट को ऑनलाइन चेक कर कार बेचना शुरू कर दिया।
1990 टिम बर्नर्स-ली ने पहले बेब ब्राउजर वल्र्डवाइडवेब के बारे में लिखा।
1994 में नेटस्केप ने नेविगेटर ब्राउजर को मोजिला नाम से अक्टूबर में लॉन्च किया। इसके वेब पेज पर पिज्जा हट ने ऑन लाइन खरीद के लिए विकल्प दिया। इसी वर्ष पहला ऑन लाइन बैंक खोला गया और फूलों को भेजने के साथ ही मैगजीन के ऑन लाइन सब्सक्रिप्शन का ऑप्शन दिया गया।

कारों और मोटरसाइकिलों की तरह ही एडल्ट मटीरियल व्यावसायिक रूप से यहां मिलने लगा।

1995 में जेफ बीजोस ने एमाजॉन डॉट कॉम नाम से पहला गैर व्यावसायिक इंटरनेट रेडियो स्टेशन शुरू किया। डेल और सीको ने इंटरनेट का प्रयोग व्यावसायिक ट्रांजिक्शन के लिए किया। पीयरे ओमिड्यर ने नीलामी वाली साइट के रुप में ई-बे की शुरुआत की।
1999 में बिजनेस डॉट कॉम ७.५ मिलियन अमेरिकी डॉलर में ई कंपनीज को बेच दी गई, इसे १९९७ में १.49 लाख अमेरिकी डॉलर में खरीदा गया था।
2003 में एमाजॉन डॉट कॉम ने अपना पहला वार्षिक मुनाफा पोस्ट किया।
2010 में यूएस ई कॉमर्स और ऑन लाइन रिटेलर्स की सेल १७३ बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गई।

Saturday, August 21, 2010

मेरी रुचि देखकर काम दिया है मुख्यमंत्री ने..

लक्ष्मीकांत शर्मा
माता : श्रीमती रमा देवी शर्मा
पिता : दिवंगत चंद्रमोहन शर्मा
जन्म : 24 जनवरी 1961
जन्म स्थान: सिरोंज, जिला विदिशा
शिक्षा : एम.ए., एल.एल.बी.
स्कूल : सिरोंज शासकीय हायर सेकंडरी स्कूल
कॉलेज : सिरोंज शासकीय कॉलेज, गंजबासोदा शासकीय कॉलेज
व्यवसाय : पांडित्य कर्म
विवाह : वर्ष 1992 में
श्रीमती तारामणि शर्मा के साथ
बच्चे : अपर्णा और अमिता-15 वर्ष, अक्षिता-14 वर्ष
अभिरुचि : सांस्कृतिक आयोजन एवं समाज सेवा
करियर ग्राफ :
विधायक: वर्ष 1993, वर्ष 1998, वर्ष 2003 और वर्ष 2008 में सिरोंज क्षेत्र से विधायक चुने गए।
...और मंत्री
28 जून 2004 में प्रथम बार राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बने और विभाग मिले जनसम्पर्क, खनिज साधन और जनशिकायत निवारण विभाग।
27 अगस्त 2004 में दूसरी बार राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बने और विभाग मिले खनिज साधन, जनशिकायत निवारण, संस्कृति, धार्मिक न्यास, धर्मस्व, पुनर्वास, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग।
4 दिसंबर 2005 में राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) पद की शपथ ली।
25 अगस्त 2007 में पहली बार केबीनेट मंत्री के रूप शपथ ली।
20 दिसंबर 2008 को दूसरी बार केबीनेट मंत्री के रूप में शपथ ली।
...और अब
केबीनेट मंत्री-तकनीकी शिक्षा, प्रशिक्षण, उच्च शिक्षा, संस्कृति, जनसम्पर्क, धार्मिक न्यास और धर्मस्व।
...पुरस्कार
वर्ष 1996 में मप्र विधानसभा के उत्कृष्ट विधायक पुरस्कार से सम्मान
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डाटा बैंक बनाया जाएगा?
''अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर रंग साधना में सक्रिय रंगकर्मियों का डाटा बैंक बनाया जाएगा,,
जवाब- विभाग के अधिकारियों को निर्देश दे दिए गए हैं। पहले सभी के नामों की सूची तैयार की जाएगी और फिर एक फायनल डाटा बैंक तैयार किया जाएगा।

अनुमति का सरलीकरण होगा?''ऐसे शासकीय कर्मचारी जो किसी संस्था के सौजन्य से देश-दुनिया में रंगमंच आयोजन में प्रस्तुति देते हैं, उन्हें सरकारी विभागों से विभागीय अनुमति देने में टाल-मटोल कीजाती है। इसका सरलीकरण किया जाएगा। ÓÓ
जवाब- ये बात तो हमारे सामने पहली बार आई है। इस संबंध में मैं स्वयं सामान्य प्रशासन विभाग से चर्चा करूंगा। कोशिश की जाएगी कि कर्मचारियों की ये दिक्कत जल्द खत्म हो।


नाम रोशन करने वालों के लिए क्या योजना है?
सैयद शाह हुसैन/ प्रोफेशनल, कोहेफिजा
च्च् ऐसे शासकीय सेवक जिन्होंने रंगमंच साधना में देश-दुनिया में मप्र का नाम रोशन किया है, उन्हें पुरस्कृत करने की क्या योजना है?ज्ज्
जवाब- पुरस्कार देने के लिए कोई बाध्यता तय नहीं की है। कलाकार चाहे शासकीय सेवा में हो या फिर निजी सेवा में, हमारा विभाग केवल उसकी कला का सम्मान करता है।

निजी कॉलेजों पर अंकुश क्यों नहीं?
 च्च् निजी कॉलेजों में शिक्षा कम और व्यापार ज्यादा हो रहा है, क्यों आप इस पर अंकुश नहीं लगा पा रहे हैं?ज्ज्
जवाब- अब तक जो कुछ भी होता रहा है वह अब नहीं होगा। हम कॉलेजों पर अंकुश लगाने के लिए लगातार कार्रवाई करते हैं और आगे भी जारी रहेगी। कॉलेजों की मनमानी को रोकने के लिए एक स्पेशल टीम को गठन किया जाएगा।

एक ही तरह के विभाग क्यों?
च्च् आप लगातार चार बार विधायक और पांच बार मंत्री बन चुके हैं, लेकिन विभाग हमेशा आपको एक ही तरह के मिले, कोई खास वजह या स्वयं की रुचि के कारण ऐसा हुआ?ज्ज्
जवाब- ऐसा कौन कहता है कि मुझे एक ही तरह के विभाग मिले हैं। विभाग देने का फैसला मुख्यमंत्री करते हैं। हो सकता है उन्हें मेरी सक्रियता देखकर लगा हो कि ये विभाग देना चाहिए। मेरी रुचि संस्कृति के क्षेत्र में ज्यादा है इसलिए मेरा आंकलन कर मुझे संस्कृति विभाग दिया जाता रहा हो।

क्या परिवार की वजह से तरक्की मिली?
च्च् आपने राजनीति में बहुत तरक्की की और इसके आप हकदार भी हैं लेकिन माना जाता है कि आपको अपने पारिवारिक बैकग्राउंड की वजह से इतनी सफलता मिली?ज्ज्
जवाब- मुझे ये बात मानने से कतई इंकार नहीं है। मेरा परिवार पांडित्य कर्म से जुड़ा रहा है और मेरे पिता एक शिक्षक थे। जिसके वजह से हमारे परिवार का समाज में एक अलग स्थान था। मैं स्वयं भी समाज के बीच में रहकर काम करता था, इसलिए राजनीति में आने के बाद लोगों ने खुले मन से मेरा सहयोग किया।


कैसे बदल गए सपने?

च्च् हर आदमी का लक्ष्य शुरू में कुछ और होता है, लेकिन बाद में बदलने लगता है। स्कूल में थे तो क्या बनना चाहते थे और जब कॉलेज गए तो सपनों में क्या बदलाव आया?ज्ज्
जवाब- कभी नहीं सोचा था कि विधायक बनूंगा। खासतौर से जब स्कूल में था तो राजनीति में आने का मन में कभी विचार नहीं आया। स्कूल के बाद कॉलेज में बहुत ज्यादा राजनीति के बारे में नहीं सोचा। हां राष्ट्रीय स्वयं संघ में जरूर में निरंतर कार्य करता रहा। विधायक बनने के पहले सरस्वती स्कूल में आचार्य था।

फिल्मों को संस्कृति का हिस्सा मानते हैं?

आप संस्कृति विभाग के मंत्री और फिल्में भी संस्कृति का हिस्सा होती हैं तो आप मानते हैं कि फिल्मों से किसी भी देश या प्रदेश की संस्कृति में बदलाव लाया जा सकता है?
जवाब- फिल्मों से समाज की संस्कृति पर आज से ६-७ साल पहले फर्क पड़ता था। उस कुछ भी अच्छा या बुरा होता था तो फिल्मों को जिम्मेदार माना जाता था। अब टीवी परिवार और समाज पर हावी हो गई है इसलिए जिम्मेदार फिल्में नहीं टीवी सीरियल माने जाएंगे।

क्या फिल्में राजनीति से प्रेरित होती हैं?च्च् देश में होने वाली राजनीति फिल्मों से प्रेरित होती है कि फिल्मों में दिखाई जाने वाल राजनीति फिल्मों से प्रेरित होती है?ज्ज्
जवाब- कोई फिल्म ऐसी नहीं है जिसे देखकर देश या किसी प्रदेश की राजनीति में बदलवा आया हो। हां फिल्मवाले जरूर राजनीतिक घटनाक्रमों को देखतर तत्काल फिल्म बना डालते हैं।


क्या आज भी पंडिताई करते हैं?

च्च् आपका परिवार पंडिताई का काम करता था और उसी से पूरे परिवार की जीविकोपार्जन होता था, लेकिन अब आप मंत्री हैं तो क्या आज भी पंडिताई करने का मन करता है?ज्ज्
जवाब- मौका मिलता है पंडिताई करने से न तो चूकता हूं और न ही चूकुंगा। अगर कोई पूरी श्रद्धा से बुलाएगा तो मैं आज भी विवाह और कथा करने को तैयार हूं। करुं भी क्यों न यही तो मेरा कर्म है।

लोगों से अमल करवाना चाहते हैं?च्च् हर आदमी के मन में कोई बात होती है जिसे वह सभी से फॉलो करवाना चाहता है तो ऐसी कोई बात आपके दिमाग में भी है?ज्ज्
जवाब- मैं इतना महान आदमी तो नहीं हंू कि कोई मुझे फॉला करे। फिर भी मन में कई विचार आते हैं जिनसे देश और समाज का भला हो सके को लेकर जरूर सोचता हूं कि लोग भी इन्हें फॉलो करें।

परिवार के लिए समय निकाल पाते हैं?

च्च् आपके पास प्रदेश के पांच महत्वपूर्ण विभागों का दायित्व है तो क्या कभी खुद के लिए या परिवार के समय मिल पाता है और मिलता है तो आप उसका कैसे इस्तेमाल करते हैं?ज्ज्
जवाब- मेरा गृह क्षेत्र यहां से ११० किमी दूर है। मैं जब भी अपने क्षेत्र में जाता हूं तो परिवार के साथ ही वक्त बिताता हूं। मेरी तीनों बच्चियों से मैं खूब सारी बातें करता हूं।

Wednesday, August 18, 2010

हाय राम आमदानी बडत जात है

भोपाल. दैनिक भास्कर कई बार बेहतरीन मुद्दों पर खबरें प्रकाशित कर चूका है और इस बार तो वाकई देश कि नब्ज पकड़ ली. मामला पुराना है मगर रोचक है. हो भी क्यों नहीं क्योंकि बात महंगाई कि जो हो रही है. मैं खुद कुछ कहूँ इससे बेहतर है कि आप दैनिक भास्कर डोट कॉम कि खबर पड़े.
नई दिल्ली. लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस, विपक्षी पार्टी बीजेपी और उत्तर प्रदेश में शासन कर रही बीएसपी की एक साल की कमाई के आगे भारत पर वर्षों राज करने वाली ब्रिटेन की तीन प्रमुख पार्टियां कहीं भी नहीं टिकती हैं। भले ही ब्रिटेन का जीडीपी (सकल घरेलू उत्‍पाद) भारत से दोगुना  है, वहां का हर नागरिक औसतन एक भारतीय से 30 गुना ज़्यादा कमाता है, लेकिन भारत की तीन प्रमुख सियासी पार्टियों की आमदनी ब्रिटेन की तीन प्रमुख पार्टियों की तुलना में 150 गुना से भी ज़्यादा है।
वित्त वर्ष 2008-09 में कांग्रेस, बीजेपी और बीएसपी की साझा आमदनी करीब 786.62 करोड़ रुपये (करीब 8 अरब रुपये) रही, जबकि ब्रिटेन की तीन प्रमुख राजनीतिक पार्टियों- लेबर, कंजर्वेटिव और लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी - ने वित्त वर्ष 2009-10 में महज करीब साढ़े पांच करोड़ रुपये (पाउंड स्टर्लिंग की आज की दर के आधार पर) जुटाए। भारत के राजनीतिक दलों की माली हैसियत सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत डाली गई एक अर्जी के जरिए सामने आई है, जबकि ब्रिटिश राजनीतिक पार्टियों की कमाई का ठोस अनुमान वहां के चुनाव आयोग ने लगाया है।
भारत में 702 राजनीतिक पार्टियां रजिस्टर्ड हैं। इनमें छह पार्टियां राष्ट्रीय हैं। वहीं, ब्रिटेन में 341 राजनीतिक पार्टियां रजिस्टर्ड हैं। ब्रिटेन में चुनाव कराने वाली संस्था 'द इलेक्टोरल कमिशन' की साइट पर मौजूद सूचना के मुताबिक लेबर पार्टी, कंजर्वेटिव पार्टी और लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी ने पिछले साल आयकर रिटर्न दाखिल नहीं किया है। लेकिन कमिशन के अंदाज के मुताबिक ये तीनों पार्टियां करीब पौने दो करोड़ रुपये सालाना की आमदनी से ज़्यादा का रिटर्न दाखिल करेंगी। अगर वास्‍तविक आंकड़ा थोड़ा ज़्यादा भी हो, तो भी उनकी आमदनी भारत की तीन सबसे अमीर पार्टियों की सालाना आमदनी के आगे कहीं भी नहीं टिकने वाली होगी है।
गौरतलब है कि ब्रिटेन दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जबकि भारत को दुनिया की 11 वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था माना जाता है। दोनों देशों में प्रति व्यक्ति आय और जीडीपी के आंकड़े में बड़ा अंतर है। भारत में लोग बेहद गरीब हैं, लेकिन यहां की राजनीतिक पार्टियों के पास अगाध पैसा है।
तीन मानदंडों पर भारत और ब्रिटेन की तुलना
जनसंख्या
भारत: 1 अरब 16 करोड़, ब्रिटेन: 6.20 करोड़
जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद)
भारत: 55 हजार अरब रुपये, ब्रिटेन: 1 लाख अरब रुपये से ज़्यादा
प्रति व्यक्ति आय
भारत: 44 हजार रुपये, ब्रिटेन: 12 लाख रुपये

Monday, August 2, 2010

राम तो घर नहीं दिल में रहते हैं वहा से केसे निकालोगे

भोपाल. मीडिया क्लब पर एक बड़ी उम्दा टिप्पड़ी आई की राम को नकारना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है पड़ी और इसको पड़ने के बाद साफ़ हो गाय की राम के अस्तित्व को नकारने वाले बहुत थोड़े हैं लिकिन उनका जवाब देना पड़ता है. वो टिप्पड़ी यहाँ हु-बहु प्रकाशित कर रहे हैं.

 'राम को नकारना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी'

Pawan Kumar Arvind 

दिल्ली के दरियागंज स्थित प्रकाशन संस्थान द्वारा हाल ही में प्रकाशित एक पुस्तक में भगवान श्रीराम के अस्तित्व को नकारने की प्रवृत्ति का कड़ा प्रतिवाद किया गया है और दलील दी गई है कि इसका सीधा अर्थ तो यह हुआ कि बाकायदा आज भी मौजूद अयोध्या तथा सरयू समेत श्रीराम से जुडे़ अनेक स्थान एवं प्रतीक भी काल्पनिक हैं।
प्रसिद्ध लेखक डॉ. भगवती शरण मिश्र ने अपनी पुस्तक "मैं राम बोल रहा हूँ" में लिखा है- "राम को नकारने वालों को सरयू, अयोध्या, चित्रकूट, कनक, लक्ष्मण किला, हनुमान गढ़ी, रामेश्वरम, जनकपुर आदि को भी नकारना होगा।
इस पुस्तक में लेखक वर्तमान परिस्थितियों पर भगवान श्रीराम के ही मुंह से बेबाक टिप्पणियां करता है और कहता है कि राम को नकारना तो बहुत आसान है पर उनके प्रतीकों को मिटाना दुष्कर ही नहीं असम्भव भी है।
डॉ. मिश्र ने भगवान राम के माध्यम से जो दलीलें दी हैं वे उन्हीं के शब्दों में इस प्रकार हैं- 'राम को नकारोगे तो अयोध्या को भी नकारना पडे़गा। इस पूरे नगर और इसमें गली-गली में स्थित मंदिरों, मठों के अस्तित्व को भी झुठलाना होगा। इसकी विभिन्न छोटी- बडी इमारतों को भी, क्योंकि तब ये सभी एक कल्पना प्रसूत नगर के अंश हो जाएंगे। अयोध्या को नकारो तो कनक भवन के सदृश करोड़ो रुपयों से निर्मित विशाल मंदिर को भी नकारना होगा क्योंकि उसमें राम-सीता अवस्थित हैं और सरयूतीर स्थित वह भव्य लक्ष्मण किला इसे तो लक्ष्मण द्वारा ही निर्मित किया गया था। उसके अस्तित्व को भी नकारना होगा। एक मिथ्या को मिटाना होगा।'
उन्होंने लिखा है- "इस सरयू का क्या करोग, इसे सुखा दोगे, यह तुम्हारे वश की बात नहीं। फिर इसके उद्गम पर ही रोक लगा दो। कुछ कोसों तक भूमि ही जलमग्न होगी न कुछ लोग ही तो विस्थापित होंगे। तुम्हें इसकी चिन्ता नहीं। नर्मदा-परियोजना में तुमने यह सब देखा-झेला है। तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ा है, अब भी नहीं बिगड़ेगा। एक अर्थहीन नदी से तो मुक्ति मिलेगी। पर ध्यान देना, तुम्हारे देश की नदियां ही तुम्हारी जीवन रेखा हैं। इसके किनारे ही नगर-गांव आबाद हुये हैं। सभ्यता-संस्कृति पनपी है। तुम्हारा देश कृषि प्रधान है। कृषि के लिये जल चाहिए। सरयू को मिटाओगे तो इसके तीर बसे नगर-गांव उजड़ जायेंगे। सहस्त्रों की संख्या में इन उजड़े लोगों का क्या करोगे, भारी समस्या है। कुछ बोलने. कुछ करने से पहले सोचना आवश्यक है।

Sunday, July 25, 2010

बिन सावन भारत सून

भोपाल. भारत में त्योहारों और व्रत का बड़ा महत्व है. अगर व्रत, त्यौहार को ख़त्म कर दिया जाए तो भारत की पहचान पर खतरा हो जाएगा. इस कड़ी में सावन का महिना अति विशिष्ट महिना है और इसका अपना महत्व है. सावन माह में शिवभक्तों द्वारा की जाने वाली भगवान शिव की आराधना, पूजा, जयकारे और धार्मिक आयोजन ऐसा शिवमय वातावरण बना देते हैं कि उसके प्रभाव से ईश भक्ति से दूर रहने वाले लोगों के मन भी शिवभक्ति और श्रद्धा की लहर पैदा हो जाती है। इससे यही प्रश्र हर धर्मजन के मन में पैदा होता है कि आखिर श्रावण मास और शिव भक्ति का क्या संबंध है और इस मास में शिव उपासना का इतना अधिक महत्व क्यों है। इस बात का उत्तर हिन्दू धर्म ग्रंथ ऋग्वेद में बताया गया है। वेदों में प्रकृति और मानव का गहरा संबंध बताया गया है। वेदों में लिखें कुछ मंत्रों का संदेश कुछ इस प्रकार है -
बारिश में ब्राह्मण वेद पाठ और धर्म ग्रंथों का अध्ययन करते हैं और इस दौरान वह ऐसे मंत्रों को पढ़ते हैं, जो सुख और शांति देने वाले होते हैं। बारिश के मौसम में अनेक तरह के जीव-जंतु बाहर निकल आते है और तरह-तरह की आवाजें सुनाई देती है। ऐसा लगता है कि जैसे लंबे समय तक व्रत रखकर सभी ने अपनी चुप्पी तोड़ी हो। इस बात के द्वारा संदेश दिया गया है कि जिस तरह जीव-जंतु बारिश के मौसम में बोलने लगते हैं, उसी तरह से हर व्यक्ति को श्रावण से शुरु होने वाले चार मासों में धर्म और ईश्वर की भक्ति के लिए धर्म ग्रंथों का पाठ करना या सुनना चाहिए। इसी प्रकार बारिश या सावन मास में अनेक प्रकार के पौधे पैदा होते हैं, जो औषधीय गुणों के होते हैं। यह हमारी आयु और शरीर सुखों को बढ़ाते हैं।
धार्मिक दृष्टि से पूरी प्रकृति ही शिव का रुप है। इसलिए प्रकृति की पूजा के रुप में सावन मास में शिव की पूजा की जाती है। खास तौर पर वर्षा के मौसम जल तत्व की अधिकता होती है। इसलिए शिव का जल से अभिषेक सुख, समृद्धि, संतान, धन, ज्ञान और लंबी उम्र देने वाला होता है।

 
अनिल सिरवैया द्वारा भेजा गया भजन
इक  जरा छींक ही दो तुम
चिपचिपे दूध से नहलाते हैं, आंगन में खड़ा कर के तुम्हें
शहद भी, तेल भी, हल्दी भी, ना जाने क्या क्या
घोल के सर पे लुढ़काते हैं गिलासियाँ भर के
ओरतें गाती हैं जब तीव्र सुरों में मिल कर
पाँव पर पाँव लगाए खड़े रहते हो
इक पथराई सी मुस्कान लिए
बुत नहीं हो तो परेशानी तो होती होगी
जब धुआँ देता, लगातार पुजारी
घी जलाता है कई तरह के छौंके देकर
इक जरा छींक ही दो तुम
तो यकीं आए कि सब देख रहे हो
-अनिल सिरवैया
 रिपोर्टर, पीपुल्स समाचार

पाकिस्तान के बारे में सही कहा था मनीष कोइराला ने


भोपाल. जो एक बार गलती करे वो इन्सान, जो दो बार गलती करे वो हिंदुस्तान और जो गलती पर गलती करे वो पाकिस्तान. ये लाइन किसी फिल्म में मनीषा कोईराल ने बोली थी. फिल्म तो पिट गई लेकिन डाईलाग हिट हो गया, और होता भी क्यों नहीं आखिर मनीषा ने सच जो कहा था. ये बात आज पाकिस्तान ने एक बार फिर साबित कर दी है. कश्मीर मुद्दे को लेकर हमेशा से ही अड़ियल रवैया इख्तियार करने वाले पाकिस्तान ने अब एक बार फिर भारत से साफ़- साफ़ कहा है कि जब तक भारत-पाक वार्ता के एजेंडे में कश्मीर मुद्दा शामिल नहीं होता वह भारत से कोई बात नहीं करेगा। 
पाक विदेश मंत्री महमूद कुरैशी ने कहा है कि भारत कश्मीर मुद्दे को ज्यादा तवज्जो नहीं देगा,तो हम बातचीत जारी नहीं रख पाएंगे। अमेरिका के सामने भी अलापा था राग कश्मीर भारत- पाक वार्ता के तत्काल बाद पाकिस्तान ने अमेरिका के सामने कश्मीर मुद्दा उठाया था। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने अमेरिका की विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन से बातचीत के दौरान कहा की पाकिस्तान,भारत के साथ वार्ता जारी रखना चाहता है लेकिन इसके लिए भारत संग कश्मीर मसले पर बात होना बेहद ज़रूरी है।
ये सब हो रहा है और हमारे कर्णधार जिन्हें हमने अपना जीवन चलने का अधिकार सौंपा है कह रहा है की नहीं अभी हालत बिगड़े नहीं है. खैर बात भारत की थी तो दिल का दर्द सामने ले आया. वर्ना तो हम भी खुश है इस हिंदुस्तान में. 
ऐसा भी है पाकिस्तान, मुलायजा फरमाइए-

Friday, July 16, 2010

फर्जी वाडा करो,फिर कमाओ और पकडे जाओ तो घर बैठकर खाओ

भोपाल से...
हमारे देश में दलालों और बेईमानो के लिए बहुत जगह है. अब पुरे देश का हिसाब तो अभी नहीं बताया जा सकता है, लेकिन भोपाल में हुए आज एक फैसले से कुच्छ तो दावा किया ही जा सकता है.  गुरूवार को मध्य प्रदेश शासन मैं कम करने वाले 17 अफसरों के जाती प्रमाण पात्र फर्जी पाए गए. अब सवाल ये उठता है की इनमे से कई के खिलाफ तो पहले भी जांच हो चुकी हैं और इन्ही अफसरों को बा-इज्ज़त बरी भी कर दिया गया था तो क्या वे जांच रिपोर्ट फर्जी थी और नहीं तो क्या गलत जांच करने के लिए उन अफसरों को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री उन्हें दण्डित करेंगे.

धोखेबाज हैं ये 17 अफसर
भोपाल. संदिग्ध जाति प्रमाण पत्रों की जांच करने सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बनी छानबीन समिति ने 15 अधिकारी-कर्मचारियों के अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र फर्जी पाए हैं। इनमें भारतीय वन सेवा के अफसर से लेकर राज्य पुलिस सेवा और मुख्य अभियंता स्तर के अधिकारी तक शामिल हैं।
समिति ने पाया है कि न केवल नौकरी और पदोन्नति में बल्कि मेडिकल कॉलेज में दाखिले तक में गलत जाति प्रमाण पत्र से लाभ उठाया गया। अन्य पिछड़ा वर्ग और ब्राम्हण जाति के लोग भी इस फर्जीवाड़े में शरीक हैं। सरकार ने संबंधित जिलों के कलेक्टर और एसपी को इन अफसरों के जाति सर्टिफिकेट निरस्त करने का आदेश दिया है।
इनके खिलाफ अगली कार्यवाही करने को कहा गया है, इसमें सेवा से बर्खास्तगी शामिल है। राज्य स्तरीय छानबीन समिति के सामने 19 मामले थे। इनमें से महज एक प्रमाण पत्र सही पाया गया जबकि एक मामला हाईकोर्ट में लंबित होने की वजह से उस पर निर्णय नहीं लिया गया। आदिम जाति कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव समिति के अध्यक्ष, केंद्रीय अजजा आयोग के निदेशक एवं राज्य अजजा आयोग के सचिव, आदिम जाति अनुसंधान संस्थान के संयुक्त संचालक समिति के सदस्य हैं।
एके भूगांवकर भारतीय वन सेवा (राज्य वन सेवा से पदोन्नत) भोपाल
वीके भूगांवकर चीफ इंजीनियर पीडब्ल्युडी भोपाल
पीरन सिंह गिल कंपनी कमांडर होमगार्ड्स
बहादुर सिंह गिल कंपनी कमांडर होमगार्ड्स
बादाम सिंह मीना जिला रोजगार अधिकारी
नागेश्वर सोनकेसरी सहायक आबकारी आयुक्त मंदसौर
खुशेंद्र सोनकेसरी एमपीपीएससी से डीएसपी चयनित
पूनम खंतवाल पुलिस सब इंस्पेक्टर भोपाल
राकेश कश्यप सेक्शन ऑफिसर मंत्रालय
जयेंद्र सिंह तंवर व्याख्याता आदिम जाति कल्याण विभाग अलीराजपुर
शशिकला धकाते लिपिक वन विभाग छिंदवाड़ा
रेखा सहकाटे स्टेनोग्राफर मंत्रालय
अरुणा चौधरी स्टॉफ नर्स जबलपुर
कपिल कुमार जोशी स्टेट बैंक इंदौर में मैनेजर थे
भागीरथ रायक जिला प्रौढ़ शिक्षा अधिकारी
प्रेमशंकर धानका अध्यापक पद के लिए आवेदन किया था

फर्जी प्रमाण पत्र की जगह नया सर्टिफिकेट कर लिया मंजूर : अनुसूचित जाति के संदिग्ध प्रमाण पत्रों की जांच की राज्य स्तरीय छानबीन समिति ने एक प्रमाण पत्र को फर्जी पाया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की। विकास आयुक्त कार्यालय के लिपिक गौतम कठाने ने 1980 में जो जाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर नौकरी हासिल की, जांच में कलेक्टर छिंदवाड़ा ने फर्जी पाया।
कलेक्टर ने समिति को भेजी रिपोर्ट में कहा कि यह प्रमाण पत्र जारी ही नहीं हुआ। कठाने ने 2005 में तैयार कठाने ने महार जाति का प्रमाण पत्र पेश किया, समिति ने उसे मान लिया क्योंकि जांच में पाया गया कि वे महार जाति के ही हैं। लेकिन फर्जी प्रमाण पत्र से 25 वर्ष सेवा करने और लाभ लेने के मामले में कोई कार्रवाई नहीं की गई।
इनका मामला कोर्ट में
समिति ने कर्मचारी महेंद्र सिंह के संदिग्ध जाति प्रमाण पत्र मामले में कोई निर्णय नहीं लिया, क्योंकि प्रकरण हाईकोर्ट में लंबित है। समिति ने सुनवाई का पूरा मौका देकर जांच के बाद 16 अधिकारी, कर्मचारियों के सर्टिफिकेट निरस्त करने की सिफारिश की है। संबंधित जिलों के कलेक्टरों को कार्यवाही करने के आदेश दिया गया है। 

अरुण कोचर,आदिवासी विकास आयुक्त मप्र

भोपाल में पदस्थ लोक निर्माण विभाग के मुख्य अभियंता वीके भूगांवकर उनके भाई एके भूगांवकर के प्रमाण पत्र में उन्हें आदिवासी जाति हल्बा का बताया गया है जबकि वे कोष्टा जाति के हैं जो ओबीसी में आती है। उनके पिता मंत्रालय की सेवा में रहे थे और वे ओबीसी में ही थे। वीके भूगांवकर ने अजा वर्ग के आरक्षण का सेवा में लाभ लिया लेकिन स्कूल शिक्षा प्रमाण पत्रों में उन्हें ब्राम्हण दर्शाया गया है। इनका जाति प्रमाण पत्र भोपाल से बना।
राज्य वन सेवा से भारतीय वन सेवा में पदोन्नत हो चुके प्रेमशंकर धनका गड़रिया जाति के पाए गए जो अनुसूचित नहीं बल्कि ओबीसी में है। धनका ने नरसिंहपुर से प्रमाण पत्र बनवाया। जिला रोजगार अधिकारी पदस्थ बादाम सिंह मीना लटेरी में निवास के आधार पर अजजा का लाभ रहे थे, वे जांच में गुना जिले के निवासी पाए गए जहां मीना जाति आदिवासी वर्ग में नहीं आती। इन्होंने विदिशा से जाति प्रमाण पत्र बनवाया।
मंदसौर में पदस्थ आबकारी विभाग में सहायक आयुक्तनागेश्वर सोनकेशरी और उनके भाई डीएसपी खसेंद्र सोनकेसरी का जाति प्रमाण पत्र भी हल्बा जाति का है जबकि वे कोष्टा जाति के हैं। नागेश्वर का प्रमाणपत्र भोपाल के कमलानगर क्षेत्र में निवास का बना है।
कमलानगर के जिस मकान में रहना दर्शाया गया उसके मालिक ने इंकार कर दिया कि नागेश्वर नाम का किरायेदार उनके यहां रहा। इनका जाति प्रमाण पत्र मंडला से जारी हुआ।
सर्टिफिकेट कैसे-कैसे
राकेश कश्यप ने कीर जाति के प्रमाण पत्र से नौकरी हासिल की वे ढीमर जाति के पाए गए जो अजजा में नहीं है। जयेंद्र सिंह तंवर ने झाबुआ से कंवर जनजाति का सर्टिफिकेट पर नौकरी प्राप्त की। प्रमाण पत्र गलत पाया गया।
शशिकला धकाते आदिम जाति अनुसंधान संस्थान में पदस्थ हैं, उनका हल्बा अजा जाति प्रमाण पत्र गलत मिला। वे भी कोष्टा जाति की हैं। भिलाला जाति के प्रमाण पत्र के सहारे नौकरी कर रहे भागीरथ रायक काछी जाति के पाए गए। इन्हें छिंदवाड़ा से जाति प्रमाण पत्र जारी किया गया।
ये भी दूध के धुले नहीं
रेखा सहकाटे की जाति महाराष्ट्र में अजजा में है मप्र में नहीं। इनका प्रमाण पत्र भोपाल से जारी किया गया। पूनम खंतवाल पौढ़ी गढ़वाल की मूल निवासी हैं लेकिन मप्र में अजजा नागवंशी का जाति प्रमाण पत्र लेकर नौकरी पाई।
जाति प्रमाण पत्र भोपाल से बनवाया। कपिल कुमार जोशी ने भी फर्जी अजजा प्रमाण पत्र से नौकरी पाई और जांच में वे ब्राम्हण पाए गए। इन्होंने भोपाल से प्रमाण पत्र बनवाया। पीरन सिंह और बहादुर सिंह गिल का गोंड जाति प्रमाण पत्र फर्जी मिला, वे अनुसूचित जाति के हैं।
पीरन सिंह होमगार्ड में कंपनी कमांडर हैं। इन्होंने सागर से प्रमाण पत्र बनवाए। कंवर जाति प्रमाण के आधार पर एमबीबीएस कर रही ज्योति छत्तरी जांच में ताम्रकार पाई गईं जो ओबीसी में है। ज्योति ने इंदौर से प्रमाण पत्र बनवाया।

पूरा हुआ लक्ष्मण का बनवास

भोपाल से... एक लम्बे समय तक लक्ष्मण सिंह कांग्रेस से दूर रहे और आज बदजुबानी को बहाना बनाकर भाजपा ने उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है. ये सभी के लिए एक सबक है, जिसमे साडी बातें सामने आ जाती हैं. दरअसल लक्ष्मण सिंह का मन तभी से पार्टी में नहीं लएजी रहा था जबसे भाजपा केंद्र के चुनाव हरी और उसके बाद में खुद लक्ष्मण सिंह अपने ही भाई की तरफ से खड़े किये गए गए प्यादे से हार गए. बदजुबानी तो पहले भी हुई है लेकिन निर्णय आज ही क्यों कर दिया गया. शायद लक्ष्मण सिंह भी यही चाहते थे क्योंकि वे व्ही अपनी अयोध्या से बहुत दिनों तक दूर नहीं रह सकते हैं. आख़िरकार बहाना कोई भी हो लेकिन आज लक्ष्मण का वन्बास तो पूरा हुआ. 

(दैनिक भास्कर की खबर पड़ने के लिए किल्क करैं)
 खबर आज की जिसमे है पूरा घटनाक्रम...
भोपाल. कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के अनुज और पूर्व सांसद लक्ष्मण सिंह को प्रदेश भाजपा ने पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। नितिन गडकरी के खिलाफ बयानबाजी के चलते यह कार्रवाई हुई है। हाल ही में गडकरी ने दिग्विजय सिंह के बारे में कहा था कि आतंवादियों की तरफदारी करने वाले औरंगजेब की औलाद हैं।
इस टिप्पणी के बाद लक्ष्मण सिंह ने खुलकर गडकरी की आलोचना की थी। तभी से उन पर कार्रवाई की तलवार लटक रही थी। उधर लक्ष्मण सिंह ने दैनिक भास्कर से चर्चा में कहा कि उन्हें इस कार्रवाई से कोई आश्चर्य नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि गडकरी और उनके नेतृत्व में भाजपा इन दिनों जिस तरह की भाषा बोल रही है वह निरंकुश और हिटलरशाही प्रवृत्ति को दर्शाती है। हाल ही मप्र में मंत्रियों के खिलाफ जिस तरह की कार्रवाई हुई है वह इसकी पुष्टि करती है।उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी और तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह के समय भाजपा सही रास्ते पर थी। लेकिन अब स्थितियां बदल गई हैं। लक्ष्मण सिंह ने कहा कि गडकरी ने उनके परिवार के खिलाफ जिस अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया उसके बाद उनका चुप रहना असंभव था।
भविष्य के बारे में विचार नहीं-लक्ष्मण सिंह ने कहा कि उन्होंने अभी यह तय नहीं किया है कि वह कांग्रेस या किसी अन्य पार्टी से जुडें़गे। मैं सामाजिक कार्यकर्ता की तरह काम करुंगा।
इसलिए आए थे भाजपा में
लक्ष्मण सिंह ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का नेतृत्व स्वीकार्य नहीं था। इसलिए वे भाजपा से जुड़े थे। सोनिया गांधी के अध्यक्ष रहते क्या वे फिर कांग्रेस में लौटेंगे? इसका उन्होंने कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दिया। सात साल तक नाता रहा भाजपा से
2003 के विधानसभा चुनाव के दौरान ब्यावरा में उमा भारती की मौजूदगी में आयोजित एक कार्यक्रम में लक्ष्मण सिंह कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए थे। पार्टी ने उन्हें 2004 के लोकसभा चुनाव में राजगढ़ लोकसभा सीट से टिकट दिया और वे विजयी हुए। 2009 में भी वह भाजपा के टिकट पर इसी सीट से चुनाव लड़े, लेकिन कांग्रेस उम्मीदवार नारायण सिंह अमलाबे के हाथों पराजित हो गए। वे राजगढ़ से कुल पांच बार सांसद रहे। इनमें से चार बार वह कांग्रेस के टिकट पर जीते थे. 

जगह तो अच्छी है लेकिन क्या गारंटी है की सरकार फिल्मवालों को परेशान नहीं करेगी?

भोपाल. जब भी कही कोई बड़ा बदलाव आता है तो सबसे पहले कुछ छोटी और फिर बड़ी घटनाएं हो जाती हैं. भोपाल के मामले में थोडा उल्टा रहा. इस शहर को पहचान दी एक हादसे ने जिसे न चाहते हुए भी याद करना पड़ता है. यानी गैस कांड. एक लम्बे अन्तराल के बाद एक फिर भोपाल में सुखद बयार बह रही है और वह है भोपाल और उसके आसपास हो रही फिल्मों की शूटिंग जिसने भोपाल को फिर एक नई पहचान देना शुरू कर दी है. अब सवाल एक ही है की क्या जिस तरीके से फिल्म की शूटिंग करने वालों को भोपाल लाने का मन बनाया है क्या उसी तरह इसको जारी भी रखा जाएगा. बहरहाल इस  सवाल का जवाब भले ही बाद में मिले लेकिन भोपाल में फिल्मों के लिए कितनी संभावनाए हैं ये जिक्र भास्कर न्यूज़ की वेबसाइट ने बहुत बेहतर ढंग से दिखाई हैं. 
मिनी बॉलीवुड बनने को बेताब लेक सिटी
भोपाल. झीलों की नगरी भोपाल जल्दी ही फिल्मों के लिए हब बनने जा रहा है। फिल्म इंस्डस्ट्री से लेकर मध्य प्रदेश की सरकार तक इस प्रयास में लगी है कि जल्द से जल्द भोपाल में एक ऐसी फिल्म सिटी का निर्माण हो जाए, जहां बॉलीवुड के लोग बिना किसी हिचक के फिल्मों का निर्माण कर सकें। इसके लिए भोपाल के पास बगरोदा में 430 एकड़ जमीन भी चिंहित कर ली गई है।
पूरा भोपाल और मप्र है शूटिंग के लिए आइडियल
राजधानी में फिल्मों की शूटिंग के लिए एक से बढ़कर एक लोकेशंस है। जिसे कुछ दिनों पहले आई फिल्म राजनीति में भी देखा जा सकता है। भोपाल का गौहर महल, सदर मंजिल, इस्लाम नगर, बोट क्लब, लेकव्यू, तवा, देलावाड़ी, केरवा, भीमबैठका, चिड़ियाटोल, रातापानी अभ्यारण्य, कोलार डेम, कठोतिया, बेनजीर पैलेस, अहमदाबाद पैलेस, कमलापति महल, मनुआभान टेकरी, वीआईपी रोड, रेल कोच, ताजमहल शूटिंग के लिए बेहतर स्थान है।
तैयार है कंस्पेट नोट
मप्र सरकार प्रदेश में फिल्म सिटी बनाने के लिए पूरी तरह तत्पर है। इसके लिए बकायदा एक कंस्पेट नोट भी बना लिया गया है। हालांकि, अभी तक यह साफ नहीं हो पाया है कि सरकार फिल्म निर्माताओं को क्या सुविधा देगी। मप्र सरकार के संस्कृति मंत्री लक्ष्मी नारायण शर्मा कहते हैं कि हमारा पूरा प्रयास है कि जल्द से जल्द फिल्म सिटी बन कर तैयार हो जाए। इसके लिए हमने जमीन का भी चुनाव कर लिया है। जो भी फिल्म निर्माता यहां फिल्म बनाएगा, उसे पर्याप्त सुविधाओं के साथ कर में भी छूट दी जाएगी। वहीं, संस्कृति विभाग के निदेशक श्रीराम तिवारी कहते हैं कि मैंने फिल्म सिटी के लिए कंस्पेट नोट तैयार कर लिया है। जिसे सरकार को दिया जाएगा। फिल्म सिटी पर कोई भी फैसला राज्य सरकार ही करेगी।
जब कई फिल्मों में दिखा भोपाल
भोपाल में साठ सालों से लगातार फिल्मों की शूटिंग हो रही है। दिलीप कुमार अभिनीत नया दौर से लेकर वर्ष २क्क्९ में प्रकाश झा की विवादित फिल्म राजनीति की अधिकांश शूटिंग इसी शहर में हुई है। इसके अलावा भोपाल को लेकर कई किताबें और फिल्में भी बन चुकी हैं। जिसमें सबसे अधिक ख्यात फिल्में सूरमा भोपाली, भोपाली एक्सप्रेस, वो तेरा नाम था हैं, शामिल हैं।
भोपाल में बनेगा राष्ट्रीय नाटच्य विद्यालय
दिल्ली की तर्ज पर भोपाल में भी राष्ट्रीय नाटच्य विद्यालय बनाने की योजना है। इसके लिए सरकार पूरी तरह तैयार है। इस विद्यालय के भोपाल में बन जाने के बाद फिल्मों की शूटिंग के लिए बड़े पैमाने पर अच्छे कलाकार मिल सकेंगे।
भोपाल क्यों बेहतर है फिल्म सिटी के लिए
भोपाल की सबसे बड़ी खासियत उसका देश के बीचोंबीच में होना है। जिसके कारण न सिर्फ रेल बल्कि सड़क और हवाई यातायात से भी यह शहर जुड़ा हुआ है। इसके अलावा यहां कई झीलें हैं। जो कि फिल्मों के लिए अच्छी लोकेशन साबित हो सकती है। वहीं, भोपाल की हरी-भरी वादियां और यहां का खूबसूरत मौसम भी फिल्म निर्माताओं को अपनी तरफ आकर्षित करता है। इसके अतिरिक्त अन्य शहरों की तुलना में भोपाल आज भी काफी सस्ता है। इंडस्ट्री से जुड़ी सामग्री और सुविधाएं यहां सस्ती मिलती हैं। इसके अलावा यहां ऐसे कलाकारों की भी भरमार है जिन्हें फिल्मों में काम करने का अनुभव है।
फिल्म अभिनेता रजा मुराद कहते हैं कि भोपाल की अधिकांश जगह अभी भी पूरी तरह वर्जिन है। यहां कई ऐसे स्थान हैं, जिसका उपयोग फिल्मों में बड़े पैमाने पर किया जा सकता है। मसलन जैसे राजा भोज का मंदिर हो या फिर भीम बैठका। ये सभी लोकेशन फिल्मों के लिए बहुत खूबसूरत हैं। मुराद आगे कहते हैं कि फिल्म सिटी का पूरा प्रस्ताव अभी कागजों पर ही है लेकिन जिस दिन वह पूरा हो जाएगा, उस दिन बॉलीवुड को एक खूबसूरत लोकेशन मिल जाएगी।
मिले अधिक से अधिक सुविधाएं
बॉलीवुड से जुड़े फिल्म निर्माताओं भोपाल में फिल्म बनाने को तैयार हैं बशर्ते यदि उन्हें और अधिक सुविधाएं मिलें। रजा मुराद कहते हैं कि यदि सरकार फिल्मों के लिए सभी जरुरी सुविधाएं मुहैया कराती हैं तो बड़ी संख्या में फिल्म निर्माता भोपाल का रुख कर सकेंगे। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री से लेकर संस्कृति व पर्यटन मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा तक कह चुके हैं कि यदि राज्य में किसी फिल्म की पचास फीसदी या इससे अधिक शूटिंग होती है तो मनोरंजन कर में पचास फीसदी की छूट मिलेगी। प्रस्तावित फिल्म सिटी भोपाल के पास बगरोदा में बनना है।
पैनोरमा फिल्म समारोह से बॉलीवुड को रिझाया
फिल्म संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए भोपाल में सोलह साल बाद फिर से भारतीय पैनोरमा फिल्म समारोह शुरु हुआ है। इसमें भाग लेने के लिए बॉलीवुड के कई कलाकारों ने यहां शिरकत की। जिसमें अनुपम खेर पमुख थे। राज्य सरकार ने इस कार्यक्रम के माध्यम से फिल्म निर्माताओं को रिझाने की कोशिश की।
फिल्म निर्देशकों का कहना है कि भोपाल में लोकेशंस से लेकर यहां तहजीब तक शानदार है। इसका यदि उपयोग फिल्मों में किया जाए तो न सिर्फ भोपाल के साथ न्याय होगा बल्कि बॉलीवुड को भी एक आर्कषक लोकेशंस मिल जाएगी। कुछ दिनों पहले ही भोपाल में अपनी नई फिल्म के लिए लोकेशन देखने आए फिल्म निर्देशक मुज्जफर अली को यहां की तहजीब और संस्कृति ने काफी लुभाया। वे कहते हैं कि भोपाल एक बहुत खूबसूरत शहर है। भोपाल गैस त्रासदी पर उन्होंने शीशों का मसीहा नामक एक फिल्म बनाई थी। फिलहाल अली भोपाल में अपनी अगली फिल्म की शूटिंग की तैयारी कर रहे हैं।
बॉलीवुड से लेकर टेलीविजन तक में है भोपाल का दबदबा
बॉलीवुड की बात करें या फिर टेलीविजन की दुनिया की। हर जगह भोपाल का काफी दबदबा देखने को मिलता है। वरिष्ठ कलाकार से लेकर कई लेखक तक भोपाल से जाकर अपनी किस्मत अजमाएं हैं। चाहे वह जया बच्चन के जीजा राजीव वर्मा हों या फिर मॉडल से अभिनेता बने शावर अली खान।
भोपाल पर फिदा हैं सितारे
झीलों की नगरी को जो भी पहली बार देखता है, वह फिदा हो जाता है। चाहे वह आमिर खान हो या फिर रणवीर कपूर। रणवीर कपूर कहते हैं कि भोपाल आने से पहले मैं काफी चिंता में था। लेकिन शूटिंग के दौरान पता चला कि यहां के लोग काफी अच्छे हैं। रणवीर बार-बार भोपाल आना चाहते हैं। वे कहते हैं कि हिंदुस्तान के अन्य शहरों में कई बार शूटिंग के लिए जाना होता है लेकिन भोपाल की बात ही कुछ और है। राजनीति फिल्म की शूटिंग के दौरान जब कैटरीना कैफ भोपाल आई थीं तो उन्हें पहली ही नजर में भोपाल से प्यार हो गया था। वे कहती हैं कि यह शहर पहली नजर में ही पसंद आ गया। यह शांति, हरियाली और खुशमिजाज लोगों का शहर है। किसी शहर की इससे अच्छी पहचान क्या हो सकती है।
रजा मुराद ने दैनिक भास्कर डॉट कॉम को बताया कि भोपाल बहुत खूबसूरत शहर है। यह अभी भी पूरी तरह ऐसा शहर है जिसे छूआ नहीं गया है। यदि यहां फिल्मों की शूटिंग की जाए तो काफी अच्छा होगा। रजा मुराद की बात को आगे बढ़ाते हुए फिल्मकार केतन देसाई कहते हैं कि कुछ दिनों पहले ही नए प्रोजेक्ट के लिए लोकेशन देखने भोपाल आए थे। देसाई कहते हैं कि उन्हें भोपाल और आसपास की कई जगह काफी पसंद आई। वे अपने कई प्रोजेक्ट यहां शुरु करने वाले हैं।
भोपाल के सितारे
फिल्मों में : अनू कपूर, जावेद अली, जावेद अख्तर, शावर अली, रजा मुराद, सैफ अली खान, राजीव वर्मा, जया बच्चन
टीवी में : सारा खान।
भोपाल और आसपास के इलाके में शूटिंग : नया दौर, राजनीति, एक विवाह ऐसा भी, पीपली लाइव, शूल, युवा, तहीकात।

Thursday, July 8, 2010

जिम्मेदारी निभा लेते तो अनुराधा आज माँ बन जाती

भोपाल. सुना है की मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में एक महिला कैदी को पुलिस प्रसाशन की गलती के कारण अपना बछा खोना पड़ा और अब राज्य महिला आयोग उस महिला को इंसाफ दिलाने की तय्यारी शुरू कर चुकी है. यानी एक महिल फिर तैयार है महिला आयोग के डमरू पर नाचने के लिए. दरअसल जी हादसे के लिए जेल और पुलिस प्रसाशन को जिम्मेदार मन जा रहा है उसके लिए तो राज्य महिला आयोग और मानव अधिकार आयोग भी जिम्मेदार हैं क्योंकि इन दोनों ने कभी जाकर नहीं देखा की क्या इन जेलों में महिला कैदियों के लिए कोई उम्दा व्यवस्था है. जब यैसा नहीं किया तो फिर जबरिया इंसाफ दिलाने के धिन्दोरे पीटने से क्या मतलब?
क्या है घटनाक्रम
राज्य महिला आयोग ने महिला कैदी के बच्चों की मौत के मामले में केंद्रीय जेल जाकर मामले की जानकारी ली। जांच के दौरान मिले हुए बयान और प्रस्तुत किए साक्ष्य को देखने के बाद महिला आयोग ने भी माना कि अनुराधा के साथ न केवल पुलिस गार्ड ने बल्कि जेल प्रशासन ने क्रूरता की है। आयोग का मानना है कि यदि उसे समय पर चिकित्सा सुविधा मुहैया की जाती तो उसके दोनों बच्चों को बचाया जा सकता था। आयोग की सदस्य उपमा राय और कमला वाडिया ने पूरे मामले की जांच की।
होशगांबाद पिपरिया की रहने वाली अनुराधा पति राजेश कहार ने राज्य महिला आयोग जो बयान दिए उससे सुनने वालों के रोंगटे खड़े हो गए। उसने आयोग को बताया कि दहेज हत्या के मामले में २८ जून को कोर्ट ने शाम साढ़े छह बजे उसे उम्रकैद की सजा सुनाई। उसके बाद पिपरिया पुलिस उसे और उसकी मां को पुलिस की गाड़ी में बैठाकर वहां से निकली। वहां उसकी मां ने महिला पुलिस गार्ड को बताया कि उसकी बेटी गर्भवती है और उसे छह माह का गर्भ है। उसकी तबियत खराब हो रही है गाड़ी धीरे चलाए, लेकिन पुलिस ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया और न ही गाड़ी रोकी यहां तक की रास्ते में उसे पानी तक नहीं पीने दिया। उसके बाद उसे होशंगाबाद जेल पंहुचा दिया गया। होशंगाबाद जेल में उसे दो दिन रखा गया और वहां पर भी उसका मेडिकल नहीं कराया गया। ३० जून को होशंगाबाद से फिर उसे गाड़ी में बैठा केंद्रीय जेल पहुंचाया गया। यहां पर 1 मई को रुटीन चेकअप के लिए आई नर्स को तबियत खराब होने की जानकारी दी। नर्स ने उसे फौरन जेल अस्पताल पहुंचाया जहां जेल के डॉक्टर ने उसे सुलतानिया रेफर कर दिया। जेल प्रशासन ने आयोग को बताया कि पुलिस गार्ड न मिलने के कारण उसे तुरंत सुलतानिया नहीं भेजा जा सका। तीन जुलाई को जब पुलिस गार्ड मिली तब उसे सुलतानिया भेजा गया। जहां डॉक्टरों ने जांच केबाद उसकी गंभीर हालत को देखते हुए उसे तुरंत भर्ती करने की सलाह दी लेकिन पुलिस गार्ड ने उसे भर्ती कराने से मना कर दिया और उसे जेल भेज दिया जहां जेल डॉक्टर की सलाह पर उसे फिरसे अस्पताल में भर्ती कराया गया तब तक बहुत देर हो चुकी थी। चार जुलाई को अनुराधा के दोनों बच्चों की मौतगर्भ में ही हो चुकी थी और उसकी भी हालत गंभीर हो गई थी। उसे भी बड़ी मुश्किल से बचाया जा सका।
इनका कहना है:
पूरे साक्ष्य और बयानों के सुनने के बाद जो तथ्य सामने आए है उससे एक बात साबित होती है कि जेल प्रशासन और पुलिस गार्ड ने पूरे समय संवेदनहीनता दिखाई है। यदि उसे समय पर चिकित्सा सुविधा मिल जाती तो निश्चत ही दोनों बच्चों की जान बच जाती।
उपमा राय, सदस्य , राज्य महिला आयोग

पार्टी नहीं खुद का दम भी चलता है

भोपाल.बार-बार ये बात सामने आती है की पार्टी बड़ी है या फिर व्यक्ति. लेकिन एक बार ये बात साबित हो गई की व्यक्ति का अपना कद होता है. आंध्र प्रदेश से कांग्रेस सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी के बेटे जगनमोहन रे़ड्डी ने पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के खिलाफ बगावत का झंडा उठा कर ye बात साबित कर दी. जिस प्रकार उनको जनता का समर्थन मिला है वह काबिले गौर है. हालाँकि इसमें एक दर ये भी है की कही जगमोहन का हश्र उमा भारती के जैसा न हो जाए. खैर कल के बारे में किसने सोचा है. जगमोहन ने सोनिया गांधी के मना करने के बावजूद अपने पूर्व तय कार्यक्रम के मुताबिक ही आठ जुलाई से श्रीकाकुलम से अपनी उदार्पू (दिलासा यात्रा) शुरू करने का फैसला किया है। जगनमोहन ने जनता के नाम सोमवार को लिखे अपने खुले पत्र में कहा है कि वह हर सूरत में . अपनी यात्रा शुरू करेंगे। उनका कहना है कि उसी दिन के पिता वाईएसआर का जन्मदिन है इसलिए यात्रा शुरू करने के लिए इससे अच्छा कोई और दिन नहीं हो सकता। जगन की इस यात्रा का जाहिर तौर पर उद्देश्य यह है कि वह उन परिवारों को दिलासा देना चाहते हैं जिनके सदस्यों की वाईएसआर की मौत की खबर सुनकर सदमे के कारण मौत हो गई थी अथवा उन्होंने कथित तौर पर खुदकुशी कर ली थी।
इस यात्रा ने मार्च के महीने में उस समय एक विवादास्पद मो़ड़ ले लिया था जब जगन ने तेलंगाना में अपनी यात्रा ले जाने की कोशिश की और तेलंगाना राज्य के समर्थकों ने उसे रोका। इससे हिंसा भ़डक उठी और पुलिस ने जगन को गिरफ्तार कर लिया। उसकोलेकर जगन और कांग्रेस आलाकमान के बीच काफी क़डवाहट बढ़ गई। आखिर जगन को अपनी यात्रा स्थगित करनी प़डी, क्योंकि पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जगन को यात्रा की अनुमति नहीं दी।
खुद जगन ने अब जनता के नाम अपने खुले पत्र में कहा है कि गत महीने उन्होंने उनकी मां और छोटी बहन के साथ सोनिया गांधी से भेंटकर स्पष्ट किया था कि उनकी यह यात्रा क्यों जरूरी है, लेकिन इसके बाद भी सोनिया यात्रा के पक्ष में दिखाई नहीं दी। जगन ने कहा कि वह एक महान नेता के बेटे होने के रूप में अपना कर्तव्य निभाना चाहते हैं और अपने पिता की मौत के स्थान पर उन्होंने जनता से जो वादा किया था, उसे निभाना चाहते हैं, क्योंकि उनके पिता ने उन्हें केवल अपनी रक्ता ही नहीं बल्कि स्वभाव भी दिया है। चुनौती देने वाले अंदाज में जगन ने आगे कहा है कि उनके लिए यह ज्यादा महत्वपूर्ण बात नहीं है कि वह कितना लंबा जीते हैं बल्कि यह बात अहम है कि वह किस अंदाज में जीते हैं। उन्होंने जनता को आश्वासन देते हुए कहा है कि वह ओदर्यू यात्रा निकालने और हर दुखी परिवार को दिलासा देने का जो वादा किया है, उसे जरूर पूरा करेंगे। अपने सोनिया गांधी से मतभेदों के बारे में जगन कहते हैं कि पिछली भेंट में सोनिया गांधी ने उनसे कहा था कि वह यात्रा निकालने के बजाए सारे दुखी परिवारों को एक जगह बुलाएं और उन्हें कुछ आर्थिक सहायता दें। इस पर उनकी मां विजयलक्ष्मी ने सोनिया गांधी से कहा कि यह बात अच्छी परंपराओं के विरूद्ध होगी। उन्होंने सोनिया गांधी को यह भी याद दिलाया कि जब उनके पति (वाईएसआर) का निधन हो गया था तो सोनिया ने दिल्ली से हैदराबाद आकर उनके परिवार को दिलासा दी थी, न कि परिवार को दिल्ली बुलाया था। दूसरी ओर इस यात्रा से पहले ही आंध्र प्रदेश में कांग्रेस दो गुटों में बंट गई है। मुख्यमंत्री रौसय्या के समर्थक जगनमोहन रेड्डी का विरोध कर रहे हैं और जगन के समर्थक मुख्यमंत्री को निशाना बना रहे हैं। वाईएसआर का जन्मदिन भी टकराव का कारण बन गया है।
जगन चाहते हैं कि सभी विधायक और मंत्री श्रीकाकुलम में उनके कार्यक्रम में आकर उनके पिता को श्रद्धांजलि दें जबकि ऎसी किसी कोशिश को विफल करने के लिए सरकार ने उस रोज विधानसभा का सत्र बुला लिया है और कहा है कि वाईएसआर का जन्मदिन समारोह हैदराबाद में ही मनाया जाएगा। गौरतलब है कि गत सितंबर में उनके पिता की मौत के बाद करीब सभी विधायकों ने जगन को नया मुख्यमंत्री बनाने की मांग की थी और कई मंत्रियों ने भी इसका समर्थन किया था, मगर आलाकमान ने इसे खारिज करते हुए रौसय्या को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया था। अब देखना यह है कि सोनिया गांधी से सीधी टक्कर में कितने मंत्री और विधायक जगनमोहन रेड्डी का साथ देते हैं

Wednesday, July 7, 2010

सेवा करते हैं या फिर केवल आबादी बड़ा रहे हैं

भोपाल. एनजीओ नाम सुनते ही जेहन में सेवा शब्द कौंध जाता है, लेकिन जिस प्रकार से एनजीओ की संख्या बढ रही है उसकी अपेक्षा काम दिखाई नहीं दे रहा है. दैनिक भास्कर की एक खबर से ये कारण एकदम स्पष्ट हो जाता है. भारत में गैर सरकार, गैर लाभकारी संस्‍थाओं या एनजीओ की बाढ़ आई हुई है। यहां सक्रिय एनजीओ की संख्‍या दुनिया भर में सबसे ज्‍यादा है। एक सरकारी अध्‍ययन के मुताबिक 2009 तक इनकी संख्‍या 33 लाख थी। यानी प्रत्‍येक 400 से भी कम भारतीयों पर एक एनजीओ।
यह संख्‍या वास्‍तविक संख्‍या से कहीं कम होगी, क्‍योंकि सरकारी अध्‍ययन में की गई गणना 2008 की ही है। साथ ही, इस गणना में केवल उन्‍हीं संगठनों को शामिल किया गया, जो सोसायटीज रजिस्‍ट्रेशन एक्‍ट, 1860 या फिर मुंबई पब्लिक ट्रस्‍ट एक्‍ट और इस तर्ज पर दूसरे राज्‍य में लागू काननू के तहत निबंधित हैं। जबकि एनजीओ का निबंधन कई कानूनों के तहत कराया जाता है। इमनें इंडियन ट्रस्‍ट एक्‍ट, 1882, पब्लिक ट्रस्‍ट एक्‍ट 1950, इंडियन कंपनीज एक्‍ट, 1956 (धारा 25), रिलीजियस एंडोमेंट एक्‍ट, 1863, चैरिटेबल एंड रिलीजीयस ट्रस्‍ट एक्‍ट, 1920, मुसलमान वक्‍फ एक्‍ट, 1923, वक्‍फ एक्‍ट, 1954 और पब्लिक वक्‍फ्स (एक्‍सटेंशन ऑफ लिमिटेशन एक्‍ट), एक्‍ट, 1959 आदि शामिल हैं।
महाराष्‍ट्र में सबसे ज्‍यादा एनजीओ
सरकारी आंकड़े के मुताबिक सबसे ज्‍यादा (4.8 लाख) एनजीओ महाराष्‍ट्र में निंबंधित हैं। इसके बाद आंध्र प्रदेश (4.6 लाख), उत्‍तर प्रदेश (4.3 लाख), केरल (3.3 लाख), कर्नाटक (1.9 लाख), गुजरात (1.7 लाख), पश्चिम बंगाल (1.7 लाख), तमिलनाडु (1.4 लाख), ओडि़शा (1.3 लाख) और राजस्‍थान (1 लाख) का नंबर है। इन दस राज्‍यों में ही 80 फीसदी से ज्‍यादा एनजीओ हैं।
80 हजार करोड़ रुपये का सवाल
अनुमान है कि ये संस्‍थाएं हर साल 40 हजार से 80 हजार करोड़ रुपये के बीच जुटा लेते हैं। सबसे ज्‍यादा पैसा तो सरकार से ही आता है। ग्‍यारहवीं योजना के दौरान सामाजिक क्षेत्र के लिए 18 हजार करोड़ रुपये का बजट रखा गया था। एनजीओ को पैसा देने वालों में विदेशी दाता दूसरे नंबर पर हैं। 2007-08 में विदेश से 9,700 करोड़ रुपये आए।
निजी क्षेत्र की कंपनियों से भी एनजीओ को काफी पैसा आता है। भारत में तो कम चलन है, पर विदेश में निजी कंपनियां सामाजिक क्षेत्र पर अच्‍छा खर्च करती हैं। भारत की कंपनियां इस मद में अपने सालाना लाभ का एक फीसदी से भी कम खर्च करती हैं, जबकि ब्रिटिश कंपनियां 1.5 और अमेरिकी कंपनियां 2.0 फीसदी तक मुनाफा सामाजिक कार्यों पर खर्च करती हैं।
एनजीओ की संख्‍या पिछले कुछ सालों में बड़ी तेजी से बढ़ी है। सरकारी आंकड़े पर गौर करें तो 1970 तक केवल 1.44 लाख सोसायटीज रजिस्‍टर्ड थीं, पर अगले तीन दशकों में यह संख्‍या क्रमश: 1.79 लाख, 5.52 लाख और 11.22 लाख होती गई। साल 2000 के बाद सबसे ज्‍यादा एनजीओ रजिस्‍टर्ड हुए।
‘सरकारी अध्‍ययन में शामिल तमाम आंकड़े मोटे अनुमान पर आधारित हैं। वास्‍तविक स्थिति का किसी को पता नहीं है, क्‍योंकि पिछले सालों में यह क्षेत्र बड़ी तेजी से बढ़ा है। यही नहीं, इसका कोई आधिकारिक डेटाबेस बनाने की भी कोशिश नहीं हुई है।’

Saturday, June 12, 2010

देश के राष्ट्रपति और इतिहास

भोपाल. कई बार मन सवाल उठता है की देश में राष्ट्रपति तो है लेकिन सीधे तौर पर कभी भी वे दखल नहीं देते. आरोप भी लगते रहे हैं की राष्ट्रपति स्टाम्प पेपर की तरह इस्तेमाल किये जाते हैं. हालाँकि इस मामले में डॉ एपीजे अब्दुल कलाम थोड़े अलग रहे हैं. इस बार राष्ट्रपति से जुडी कुछ जानकारी भारतआज  पर.
भारत के राष्ट्रपति-
भारत के राष्ट्रपति  या भारतीय राष्ट्रपति राष्ट्रप्रमुख और भारत के प्रथम नागरिक हैं, साथ ही भारतीय सशस्त्र सेनाओं के प्रमुख सेनापति भी हैं। सिद्धांतः राष्ट्रपति के पास पर्याप्त शक्ति होती है। पर कुछ अपवादों के अलावा राष्ट्रपति के पद में निहित अधिकांश अधिकार वास्तव में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले मंत्रिपरिषद के द्वारा उपयोग किए जाते हैं।
राष्ट्रपति को भारत के संसद के दोनो सदनों (लोक सभा और राज्य सभा) तथा साथ ही राज्य विधायिकाओं (विधान सभाओं) के निर्वाचित सदस्यों द्वारा पाँच वर्ष की अवधि के लिए चुना जाता है। पदधारकों को पुनः चुनाव में खड़े होने की अनुमति दी गई है। वोट आवंटित करने के लिए एक फार्मूला इस्तेमाल किया गया है ताकि हर राज्य की जनसंख्या और उस राज्य से विधानसभा के सदस्यों द्वारा वोट डालने की संख्या के बीच एक अनुपात रहे और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों और राष्ट्रीय सांसदों के बीच एक समानुपात बनी रहे। अगर किसी उम्मीदवार को बहुमत प्राप्त नहीं होती है तो एक स्थापित प्रणाली है जिससे हारने वाले उम्मीदवारों को प्रतियोगिता से हटा दिया जाता है और उनको मिले वोट अन्य उम्मीदवारों को तबतक हस्तांतरित होता है, जबतक किसी एक को बहुमत नहीं मिलती। उपराष्ट्रपति को लोक सभा और राज्य सभा के सभी (निर्वाचित और नामजद) सदस्यों द्वारा एक सीधे मतदान द्वारा चुना जाता है।
भारत के राष्ट्रपति नई दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में रहते हैं, जिसे रायसीना हिल के नाम से भी जाना जाता है। राष्ट्रपति अधिकतम दो कार्यकाल तक हीं पद पर रह सकते हैं। अब तक केवल पहले राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने हीं इस पद पर दो कार्यकाल पूरा किया है।
महामहिम प्रतिभा पाटिल भारत की 12वीं तथा इस पद को सुशोभीत करने वाली पहली महिला राष्ट्रपति हैं। उन्होंने 25 जुलाई, 2007 को पद व गोपनीयता की शपथ ली थी।
जब एक महिला बनी राष्ट्रपति-
आजादी की 60वीं वर्षगांठ मनाने जा रहे भारतीय गणतंत्र में 12वें राष्ट्रपति के चुनाव के बाद प्रतिभा  पाटिल देश की पहली महिला प्रथम नागरिक होंगी। 15 अगस्त 1947 को आजादी हासिल करने के बाद 26 जनवरी 1950 को देश का संविधान लागू हुआ और 30 जनवरी 1950 को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने देश के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में अपना कार्यभार संभाला।नवविर्नाचित राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल की तरह डॉ. प्रसाद भी पेशे से वकील थे। वह 13 मई 1962 तक इस पद पर रहे।
उनके बाद डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन देश के राष्ट्रपति बने और ठीक 5 साल तक इस पद पर रहे। 13 मई 1967 को डॉ. जाकिर हुसैन ने यह पद संभाला। उनके निधन के कारण 24 अगस्त 1969 में वी.वी. गिरि देश के चौथे राष्ट्रपति चुने गए। उन्होंने इससे पहले 3 मई 1969 से 20 जुलाई 1969 तक कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में यह पद संभाला और उनके बाद 20 जुलाई से 24 अगस्त के बीच मोहम्मद हिदायतुल्लाह कार्यवाहक राष्ट्रपति रहे। डॉ. फखरुद्दीन अली अहमद 24 अगस्त 1974 को देश के पांचवे राष्ट्रपति बने, लेकिन 11 फरवरी 1977 में उनके निधन के कारण बासप्पा दानप्पा जत्ती को 25 जुलाई तक कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया गया और उनके बाद 25 जुलाई 1977 को नीलम संजीव रेड्डी इस शीर्ष संवैधानिक पद पर आसीन हुए। 

इतिहास-15 अगस्त 1947 को भारत ब्रिटेन से स्वतंत्र हुआ था और अन्तरिम व्यवस्था के तहत देश एक राष्ट्रमंडल अधिराज्य बन गया। इस व्यवस्था के तहत भारत के गवर्नर जनरल को भारत के राष्ट्रप्रमुख के रूप में स्थापित किया गया, जिन्हें भारत के अन्तरिम राजा - जॉर्ज VI द्वारा ब्रिटिश सरकार के बजाय भारत के प्रधानमंत्री की सलाह पर नियुक्त करना था।

यह एक अस्थायी उपाय था, परन्तु भारतीय राजनीतिक प्रणाली में साझा राजा के अस्तित्व को जारी रखना सही मायनों में संप्रभु राष्ट्र के लिए उपयुक्त विचार नहीं था। आजादी से पहले भारत के आखरी ब्रिटिश वाइसराय लॉर्ड माउंटबेटन हीं भारत के पहले गवर्नर जनरल बने थे। जल्द ही उन्होंने सी.राजगोपालाचारी को यह पद सौंप दिया, जो भारत के इकलौते भारतीय मूल के गवर्नर जनरल बने थे। इसी बीच डा. राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में संविधान सभा द्नारा 26 नवम्बर 1949 को भारतीय सविंधान का मसौदा तैयार हो चुका था और 26 जनवरी 1950 को औपचारिक रूप से संविधान को स्वीकार किया गया था। इस तारीख का प्रतीकात्मक महत्व था क्योंकि 26 जनवरी 1930 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने ब्रिटेन से पहली बार पूर्ण स्वतंत्रता को आवाज़ दी थी। जब संविधान लागू हुआ और राजेंद्र प्रसाद ने भारत के पहले राष्ट्रपति का पद सभांला तो उसी समय गवर्नर जनरल और राजा का पद एक निर्वाचित राष्ट्रपति द्वारा प्रतिस्थापित हो गया।
इस कदम से भारत की एक राष्ट्रमंडल अधिराज्य की स्थिति समाप्त हो गया। लेकिन यह गणतंत्र राष्ट्रों के राष्ट्रमंडल का सदस्य बना रहा। क्योंकि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू ने तर्क किया की यदि कोई भी राष्ट्र ब्रिटिश सम्राट को "राष्ट्रमंडल के प्रधान" के रूप में स्वीकार करे पर ज़रूरी नहीं है की वह ब्रिटिश सम्राट को अपने राष्ट्रप्रधान की मान्यता दे, उसे राष्ट्रमंडल में रहने की अनुमति दी जानी चाहिए। यह एक अत्यन्त महत्वपूर्ण निर्णय था जिसने बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में नए-स्वतंत्र गणराज्य बने कई अन्य पूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों के राष्ट्रमंडल में रहने के लिए एक मिसाल स्थापित किया।

राष्ट्रपति का चुनाव-

राष्ट्रपति बनने के लिए आवश्यक योग्यता

भारत का कोई नागरिक जिसकी उम्र 35 साल या अधिक हो वो एक राष्ट्रपति बनने के लिए उम्मीदवार हो सकता है। राष्ट्रपति के लिए उम्मीदवार को लोकसभा का सदस्य बनने की योग्यता होना चाहिए और सरकार के अधीन कोई लाभ का पद धारण नहीं करना चाहिए। परन्तु निम्नलिखित कुछ कार्यालय-धारकों को राष्ट्रपति के उम्मीदवार के रूप में खड़ा होने की अनुमति दी गई है:
यदि उपराष्ट्रपति, राज्य के राज्यपाल या मंत्री को राष्ट्रपति चुना जाता है, तो यह उमीद की जाती है की जिस तारीख को वे राष्ट्रपति के रूप में सेवा शुरू करते हैं, उस दिन वह अपना पिछला पद छोड़ चुके होंगे.

चुनाव पद्धति-

जब भी राष्ट्रपति का कार्यकाल खत्म होने वाला होता है, तो एक निर्वाचन मंडल द्वारा नया राष्ट्रपति चुना जाता है। इस निर्वाचन मंडल में संसद के दोनों सदनों और राज्य विधान सभाओं (विधान सभा) के निर्वाचित सदस्य शामिल होते हैं। आनुपातिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था के अनुसार एकल संक्रमणीय मत पद्धति के माध्यम से चुनाव आयोजित किया जाता है। गुप्त मतदान प्रणाली द्वारा मतदान होता है। अनुच्छेद 55 में राष्ट्रपति के चुनाव विस्तृत ब्योरा दिया गया हैं।
हालाकीं राष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों और राज्य विधान सभाओं (विधान सभा) के निर्वाचित सदस्यों द्वारा होता है। पर आमतौर से वे अपनी राजनैतिक दलों द्वारा समर्थित उम्मिद्वारों को हीं अपना मत देते हैं।
 
निर्वाचन मंडल
राज्य विधान सभाओं और संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों द्वारा डाली वोट का मूल्य भारत के संविधान के अनुच्छेद 55 (2) के उपबंधों के अनुसार निर्धारित किया जाता है। 2007 के राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदाता और वोट की संख्या का विवरण नीचे दिया गया है।
भारत में राष्ट्रपति चुनाव संबंधित राज्यों से आनुपातिक प्रतिनिधित्व द्वारा होता है। राज्य विधानसभा के प्रत्येक मत के मूल्य का गणना निम्नलिखित सू्त्र से किया जाता है

क्या सच में मप्र पुलिस इतनी साहसी हो गई कि एक सत्ताधारी दल के मंत्री पुत्र को बेल्ट से पीट सके?

  क्या सच में मप्र पुलिस इतनी साहसी हो गई कि एक सत्ताधारी दल के मंत्री पुत्र को बेल्ट से पीट सके? अब तक तो यकीन नहीं हो रहा था, लेकिन खबर दै...