Saturday, November 13, 2010

आखिर इतना हंगामा क्या है बरपा?

केसी सुदर्शन द्वारा सोनिया गांधी को लेकर की गई टिप्पणी से पूरे देश में बवाल है। मुद्दा कांग्रेस कार्यकर्ता वर्सेस आरएसएस हो गया। आरएसएस माहौल को देखकर बेकफुट पर चला गया, लेकिन कांग्रेस कार्यकर्ता पीछे हटने को तैयार नहीं। ऐसे में एक बात जेहन में आती है कि आखिर सोनिया गांधी का बेकग्राउंड क्या है? यही बता रहा हैं इस लेख के जरिए।

यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी को फोब्र्स मैगजीन ने २००४ में सबसे शक्तिशाली महिलाओं की सूची में उनको तीसरा स्थान और २००७ में छठवां दिया। टाइम मैगजीन ने २००७-०८ में टाइम मैगजीन ने उन्हें १०० सबसे प्रभावशाली हस्तियों में शामिल किया। कभी अंग्रेजी बोलने वाली, एलाइन फ्रॉक और लॉन्ग गाउन पहनने वाली सोनिया आज पूरी तरह से भारतीय बहू हैं। कभी उनकी नागरिकता को लेकर उन पर हल्ला बोला गया तो कभी विदेशी मूल का मुद्दा उठाया गया। उतार-चढ़ाव से भरी उनकी जिंदगी में एक बार फिर से भूचाल आ गया है। इस बार उन पर सीआईए एजेंट होने, इंदिरा गांधी की हत्या और राजीव गांधी की हत्या का आरोप लगाया गया है। पूर्व संघ प्रमुख के सुदर्शन ने बड़ी बेबाकी से ये आरोप लगाए। हालांकि, इसके तुरंत बाद बचाव की मुद्रा में आए संघ ने साफ कर दिया कि इस बारे में कभी संघ में चर्चा नहीं हुई और यह पूर्ण रूप से सुदर्शन के अपने विचार हैं। फिलहाल कांग्रेस इस मुद्दे पर पीछे हटने के मूड में नहीं दिख रही है।
तीन साल की दोस्ती फिर शादी
सोनिया का जन्म इटली से ३० किमी दूर एक छोटो से गांव लुसियाना में ९ दिसंबर १९४६ को हुआ था। उनका बचपन ऑरबेसानो में गुजरा। उनके पिता भवनों का निर्माण करने वाले ठेकेदार थे, उनकी मृत्यु १९८३ में हुई थी। १९६४ में वह अंग्रेजी की पढ़ाई करने के लिए कैंब्रिज के बेल एजुकेशन ट्रस्ट के लैंग्वेज स्कूल चली गईं। १९६५ में सोनिया की राजीव गांधी से पहली बार मुलाकात एक ग्रीक रेस्टोरेंट में हुई। उस वक्त राजीव गांधी कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के ट्रिनिटी कॉलेज में पढ़ रहे थे। दोनों ने तीन साल की दोस्ती के बाद १९६८ में शादी कर ली।
राजनीति में नहीं थी दिलपस्पी
भारत आने के बाद राजीव और सोनिया गांधी दोनों को ही राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी। १९७७ में इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी का प्रधानमंत्री पद चला गया था और इसी दौरान थोड़े समय के लिए राजीव और सोनिया विदेश चले गए थे। उनके छोटे भाई संजय गांधी की २३ जून १९८० में प्लेन क्रैशन में मृत्यु और मां इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव को मजबूरी में राजनीति में आना पड़ा। राजीव के उनकी बहू मेनका गांधी के खिलाफ अमेठी से चुनाव लडऩे के दौरान सोनिया गांधी ने उनके साथ प्रचार किया। हालांकि, तब भी वह राजनीति से खुद को दूर रखती थीं और राजनीति में नहीं आना चाहती थीं। इसके बाद राजीव गांधी की हत्या ने उन्हें तोड़ कर रख दिया। कांग्रेस की कमान पीवी नरसिंह राव के हाथों में आ गई। १९९६ में आम चुनाव में कांग्रेस की कमान सीताराम केसरी के हाथों में चली गई।
बच्चों को भीख मांगते देख लूंगी
पति की हत्या होने के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने सोनिया से बिना पूछे ही उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाए जाने की घोषणा कर दी। सोनिया ने इसे स्वीकार नहीं किया। राजनीति और राजनीतिज्ञों के प्रति अपनी घृणा व अविश्वास के चलते उन्होंने एक बार कहा था कि मैं अपने बच्चों को भीख मांगते देख लूंगी, लेकिन मैं राजनीति में कदम नहीं रखूंगी। काफी समय तक राजनीति में कदम न रख कर उन्होंने अपने बेटे और बेटी का पालन पोषण करने पर अपना ध्यान केंद्रित किया। उधर, पीवी नरसिंहाराव के कमजोर प्रधानमंत्रित्व काल के कारण कांग्रेस 1996 का आम चुनाव भी हार गई। उसके बाद सीताराम केसरी के कांग्रेस के कमजोर अध्यक्ष होने से कांग्रेस का समर्थन कम होता जा रहा था, जिससे कांग्रेस के नेताओं ने फिर से नेहरु-गांधी परिवार के किसी सदस्य की जरूरत महसूस की। उनके दबाव में सोनिया गांधी ने 1997 में कोलकाता के प्लेनरी सेशन में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण की और उसके 62 दिनों के अंदर 1998 में वो कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गयीं।
विवादों में उछाला नाम
वोटिंग रजिस्ट्रेशन: १९८० में भारत की नागरिकता पाने से पहले सोनिया का नाम दिल्ली को वोटिंग लिस्ट में था। तब उनके पास इटली की नागरिकता थी। सोनिया ने अप्रैल १९८३ में भारत की नागरिकता ले ली थी, लेकिन वोटर लिस्ट के लिए रजिस्ट्रेशन जनवरी तक ही होने थे। इसके बावजूद उनका नाम वोटर लिस्ट में था। इसलिए यह विवाद १९८३ में भी एक बार फिर हुआ।
स्विस अकाउंट: स्विटजरलैंड की एक पत्रिका स्विजर इलस्टियारटे ने १९९१ में सोनिया पर आरोप लगाया कि वह स्विटजरलैंड में एक खाते का संचालन करती हैं, जो उनके बेटे के नाम से है। पत्रिका ने यह भी खुलासा किया था कि अकाउंट में दो बिलियन डॉलर हैं। इसके बाद भी काफी विवाद हुआ।
विदेशी मूल का मुद्दा: सोनिया के विदेशी मूल का मुद्दा कई बार उठाया गया। प्रणब मुखर्जी ने २७ अप्रैल १९८३ को कहा कि सोनिया गांधी ने अपना पासपोर्ट इटेलियन एंबेसी में जमा करा दिया था। इसके जवाब में विपक्ष का कहना था कि सिर्फ पासपोर्ट जमा करा देने से यह नहीं माना जा सकता है कि उन्होंने विदेशी नागरिका छोड़ दी है। मगर, १९९२ तक इटली के राष्ट्रीयता कानून के अनुसार वहां दोहरी नागरिकता लेने का प्रावधान नहीं था। इसलिए सोनिया गांधी के १९८३ में भारत की नागरिकता लेने के बाद उनकी इटली की नागरिकता स्वत: समाप्त हो गई। १९९२ के इटली की नागरिकता के नियम के अनुसार, १९९२ से पहले तक जिन व्यक्तियों की नागरिकता चली गई वे ३१ दिसंबर १९९७ से पहले दोबारा नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं। हालांकि, इस बारे में सोनिया ने कभी टिप्पणी नहीं की कि उन्होंने इटली की नागरिकता के लिए दोबारा आवेदन किया है या नहीं। गौरतलब है कि भारत में कोई भी व्यक्ति दोहरी नागरिकता नहीं ले सकता है।
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संघ की आलोचनाएं
महात्मा गांधी की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति से क्षुब्ध होकर 1948 में नाथूराम गोडसे ने उनकी हत्या कर दी थी। इसके बाद संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। गोडसे संघ और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक भूतपूर्व स्वयंसेवक थे। बाद में एक जांच समिति की जांच के बाद संघ को इस आरोप से बरी कर दिया गया और प्रतिबंध समाप्त कर दिया गया। संघ के आलोचकों ने संघ को एक अतिवादी दक्षिणपंथी संगठन बताया जाता रहा है एवं हिंदूवादी और फांसीवादी संगठन के तौर पर संघ की आलोचना की जाती रही है। जबकि संघ के स्वयंसेवकों का कहना है कि सरकार एवं देश की अधिकांश पार्टियां अल्पसंख्यक-तुष्टीकरण में लिप्त रहती हैं। संघ का यह मानना है कि ऐतिहासिक रूप से हिंदू स्वदेश में ही हमेशा से उपेक्षित और उत्पीडि़त रहे हैं। हम सिर्फ हिंदुओं के जायज अधिकारों की बात करते हैं। आलोचकों का कहना है कि ऐसे विचारों एवं प्रचारों से भारत की धर्मनिरपेक्ष बुनियाद कमजोर होती है। संघ की इस बारे में मान्यता है कि हिन्दुत्व एक जीवन पद्धति का नाम है, किसी विशेष पूजा पद्धति को मानने वालों को हिन्दू कहते हों, ऐसा नहीं है। हर वह व्यक्ति जो भारत को अपनी जन्म भूमि मानता है, पितृ भूमि मानता है और पुण्य भूमि मानता है वह हिन्दू है। संघ की यह भी मान्यता है कि भारत यदि धर्मनिरपेक्ष है तो इसका कारण भी केवल यह है कि यहां हिन्दू बहुमत में है। इस क्रम में सबसे विवादास्पद और चर्चित मामला अयोध्या विवाद रहा है।
संघ की उपलब्धियां
संघ की उपस्थिति भारतीय समाज के हर क्षेत्र में महसूस की जा सकती हैं, जिसकी शुरुआत 1925 से हुई। उदाहरण के तौर पर 1962 के भारत-चीन युद्ध में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू संघ की भूमिका से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने संघ को गणतंत्र दिवस के 1963 के परेड में सम्मिलित होने का निमंत्रण दिया। सिर्फ  दो दिनों की पूर्व सूचना पर तीन हजार से भी ज्यादा स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश में वहां उपस्थित हुए थे। वर्तमान समय में संघ के दर्शन का पालन करने वाले कतिपय लोग देश के सर्वोच्च पदों तक पहुंचने मे भी सफल रहे हैं। ऐसे प्रमुख व्यक्तियों में उपराष्ट्रपति पद पर भैरोसिंह शेखावत, प्रधानमंत्री पद पर अटल बिहारी वाजपेयी एवं उप प्रधानमंत्री व गृहमंत्री के पद पर लालकृष्ण आडवाणी शामिल हैं।
कौन है सुदर्शन
ेकुप्पाहल्ली सीतारमय्या सुदर्शन का जन्म १८ जून १९३१ को रायपुर में हुआ था। सुदर्शन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक रह चुके हैं। वेे ९ साल की उम्र में पहली बार आरएसएस की शाखा में शामिल हुए। सुदर्शन ने सागर विश्वविद्यालय से टेलीकंयूनिकेशन में बैचेलर ऑफ इंजिनियरिंग की है। १९५४ में उन्हें आरएसएस का प्रचारक बनाया गया। आरएसएस के पूर्णकालिक सदस्यों को ही प्रचारक बनाया जाता है। एक प्रचारक के तौर पर सुदर्शन की पहली नियुक्ति रायगढ़ जिले में हुई थी। १९६४ में सुदर्शन को मध्य भारत का प्रांत प्रचारक बनाया गया। इतनी कम उम्र में ही प्रांत प्रचारक बनने से आरएसएस से जुड़े लोगों को लगने लगा था कि सुदर्शन जल्द ही आरएसएस की कमान भी संभालेंगे। १९६९ में सुदर्शन संयोजक के पद पर भी रहे। वे आरएसएस के बौद्धिक सेल के प्रमुख भी रहे। वे अलग-अलग मौकों पर शारीरिक और बौद्धिक दोनों सेल के हेड रहे हैं आमतौर पर आरएसएस में ऐसा कम होता है। सुदर्शन २००० से २००९ तक संघ के प्रमुख रहे। सुदर्शन ६ से अधिक भाषाओं के ज्ञानी हैं और इसके अलावा उन्हें कई स्थानीय और क्षेत्रीय बोलियों का भी ज्ञान है।

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