सेवा करते हैं या फिर केवल आबादी बड़ा रहे हैं

भोपाल. एनजीओ नाम सुनते ही जेहन में सेवा शब्द कौंध जाता है, लेकिन जिस प्रकार से एनजीओ की संख्या बढ रही है उसकी अपेक्षा काम दिखाई नहीं दे रहा है. दैनिक भास्कर की एक खबर से ये कारण एकदम स्पष्ट हो जाता है. भारत में गैर सरकार, गैर लाभकारी संस्‍थाओं या एनजीओ की बाढ़ आई हुई है। यहां सक्रिय एनजीओ की संख्‍या दुनिया भर में सबसे ज्‍यादा है। एक सरकारी अध्‍ययन के मुताबिक 2009 तक इनकी संख्‍या 33 लाख थी। यानी प्रत्‍येक 400 से भी कम भारतीयों पर एक एनजीओ।
यह संख्‍या वास्‍तविक संख्‍या से कहीं कम होगी, क्‍योंकि सरकारी अध्‍ययन में की गई गणना 2008 की ही है। साथ ही, इस गणना में केवल उन्‍हीं संगठनों को शामिल किया गया, जो सोसायटीज रजिस्‍ट्रेशन एक्‍ट, 1860 या फिर मुंबई पब्लिक ट्रस्‍ट एक्‍ट और इस तर्ज पर दूसरे राज्‍य में लागू काननू के तहत निबंधित हैं। जबकि एनजीओ का निबंधन कई कानूनों के तहत कराया जाता है। इमनें इंडियन ट्रस्‍ट एक्‍ट, 1882, पब्लिक ट्रस्‍ट एक्‍ट 1950, इंडियन कंपनीज एक्‍ट, 1956 (धारा 25), रिलीजियस एंडोमेंट एक्‍ट, 1863, चैरिटेबल एंड रिलीजीयस ट्रस्‍ट एक्‍ट, 1920, मुसलमान वक्‍फ एक्‍ट, 1923, वक्‍फ एक्‍ट, 1954 और पब्लिक वक्‍फ्स (एक्‍सटेंशन ऑफ लिमिटेशन एक्‍ट), एक्‍ट, 1959 आदि शामिल हैं।
महाराष्‍ट्र में सबसे ज्‍यादा एनजीओ
सरकारी आंकड़े के मुताबिक सबसे ज्‍यादा (4.8 लाख) एनजीओ महाराष्‍ट्र में निंबंधित हैं। इसके बाद आंध्र प्रदेश (4.6 लाख), उत्‍तर प्रदेश (4.3 लाख), केरल (3.3 लाख), कर्नाटक (1.9 लाख), गुजरात (1.7 लाख), पश्चिम बंगाल (1.7 लाख), तमिलनाडु (1.4 लाख), ओडि़शा (1.3 लाख) और राजस्‍थान (1 लाख) का नंबर है। इन दस राज्‍यों में ही 80 फीसदी से ज्‍यादा एनजीओ हैं।
80 हजार करोड़ रुपये का सवाल
अनुमान है कि ये संस्‍थाएं हर साल 40 हजार से 80 हजार करोड़ रुपये के बीच जुटा लेते हैं। सबसे ज्‍यादा पैसा तो सरकार से ही आता है। ग्‍यारहवीं योजना के दौरान सामाजिक क्षेत्र के लिए 18 हजार करोड़ रुपये का बजट रखा गया था। एनजीओ को पैसा देने वालों में विदेशी दाता दूसरे नंबर पर हैं। 2007-08 में विदेश से 9,700 करोड़ रुपये आए।
निजी क्षेत्र की कंपनियों से भी एनजीओ को काफी पैसा आता है। भारत में तो कम चलन है, पर विदेश में निजी कंपनियां सामाजिक क्षेत्र पर अच्‍छा खर्च करती हैं। भारत की कंपनियां इस मद में अपने सालाना लाभ का एक फीसदी से भी कम खर्च करती हैं, जबकि ब्रिटिश कंपनियां 1.5 और अमेरिकी कंपनियां 2.0 फीसदी तक मुनाफा सामाजिक कार्यों पर खर्च करती हैं।
एनजीओ की संख्‍या पिछले कुछ सालों में बड़ी तेजी से बढ़ी है। सरकारी आंकड़े पर गौर करें तो 1970 तक केवल 1.44 लाख सोसायटीज रजिस्‍टर्ड थीं, पर अगले तीन दशकों में यह संख्‍या क्रमश: 1.79 लाख, 5.52 लाख और 11.22 लाख होती गई। साल 2000 के बाद सबसे ज्‍यादा एनजीओ रजिस्‍टर्ड हुए।
‘सरकारी अध्‍ययन में शामिल तमाम आंकड़े मोटे अनुमान पर आधारित हैं। वास्‍तविक स्थिति का किसी को पता नहीं है, क्‍योंकि पिछले सालों में यह क्षेत्र बड़ी तेजी से बढ़ा है। यही नहीं, इसका कोई आधिकारिक डेटाबेस बनाने की भी कोशिश नहीं हुई है।’

Comments

रंजन said…
पांचो अंगुलिया बराबर नहीं होती... गैर सरकारी संगठनों पर सवाल उठाने से क्या होगा... ये तो केवल ८० हजार करोड का मामला है... सरकार कितने खर्च करती है कितना दीखता है...

बहुत सारे गैर सरकारी सगंठन बेहतरीन कार्य कर रहे है..
सार्थक लेखन।

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