Thursday, November 19, 2009

फ़िर खुली राजनेताओं और प्रशासन के दावो की पोल

भोपाल। मध्य प्रदेश में आमजन के उत्पीड़न की स्थिति सरकार के नियंत्रण से बाहर जा चुकी है। प्रशासन हमेशा की तरह ख़ामोशी की चादर ओड़े हुए है। जबलपुर की एक लोमहर्षक घटना इसका प्रमाण है।
कहाँ खो गई प्रशासन की संवेदनशीलता
कहाँ खो गई प्रशासन की संवेदनशीलताभगवानदेव ईसरानीजबलपुर के मदन महल इलाके में नाले से निकासी पर पड़ोसियों के आपसी विवाद और उसके निदान में पुलिस एवं स्थानीय प्रशासन की उदासीनता व उपेक्षा से क्षुब्ध एक युवक सुनील सेन ने कुल्हाड़ी से अपनी माँ, बहन, दो बेटों और एक भतीजे की हत्या कर दी । एक बुजुर्ग पड़ोसी को भी मार डाला । ऐसी ही लोमहर्षक घटना मुंबई के ठाणे इलाके से सामने आई है । फ्रांसिस गोम्स नाम के इस व्यक्ति ने अपनी पत्नी सहित तीन जवान बेटियों को सात साल तक एक कमरे में इस डर से कैद रखा कि वे घर से बाहर जाएंगी तो उनके साथ दुष्कृत्य हो जाएगा । दोनों घटनाएँ मूलतः प्रशासनिक चूक और उससे उत्पन्न स्थितियों, बल्कि व्यवस्था के प्रति गहरे अविश्वास का ही परिणाम है । इन्हें सिर्फ मानसिक रोगी का कृत्य मानकर या होनी कहकर टालना सत्य से मुँह मोड़ना है। राजनीतिक हस्तक्षेप सहित विभिन्न कारणों से प्रशासनिक संवेदनशीलता में अदालतों में लंबित मामलों की वजह से हर क्षेत्र में अधिकांश अपराधी सजा नहीं पा पाते । अपराधियों में प्रशासन व कानून का डर समाप्त हो जाने का परिणाम आज समाज का हर वर्ग किसी न किसी रूप में भुगत रहा है । जनसमस्याओं के प्रति प्रशासन की असंवेदनशीलता के कारण ही धरने, प्रदर्शनों ने अब चक्काजाम, रेल रोको और शासकीय सम्पत्ति की तोड़फोड़ का रूप ले लिया है । पढ़ी-लिखी और समझदार जमात नक्सलियों की समर्थक होती हम देख रहे हैं । अपराधी तत्वों के हौसले इस हद तक हैं कि पिछले दिनों भोपाल के ही निशातपुरा थाना क्षेत्र में दो टी।आई. सहित आधा दर्जन पुलिसकर्मी अपराधियों के हमले से घायल हुए । पुलिस महानिदेशक के उपस्थित रहते इन्दौर में कंट्रोल रूम प्रभारी को पीट दिया गया । १ अप्रैल २००४ से ३१ दिसम्बर २००७ के दौरान शासकीय अफसरों व कर्मचारियों की मारपीट, उनकी प्रताड़ना के दर्ज मामलों की संख्या ७१२८ है । यदि ये हालात आम जनता के बदल रहे आचरण का संकेत है तो इसके निदान में विलंब घातक हो सकता है । हमें यह मानना होगा कि महिलाओं, बालिकाओं के साथ बलात्कार, व्यभिचार, छोड़छाड़ गंभीर समस्या बन गया है । शासन बालिकाओं की पैदाइश व पोषण से लेकर उनकी शादी और महिलाओं के सुरक्षित प्रसव तक की व्यवस्था कर रहा है, लेकिन आज भी उनके सुरक्षित शौच, सम्मानित जीवन व सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था हम नहीं कर पाए हैं । फ्रांसिस गोम्स की मानसिक स्थिति का अंदाजा इस प्रदेश की कुछ घटनाओं से लगाया जा सकता है, क्योंकि ऐसी ही घटनाएँ और उसके परिणाम कमजोर बुद्धि वाले व्यक्तियों या पीड़ितों के अंतर्मन में घर कर जाती है और गहरे अवसाद का कारण बनती है । सर्वे में ये बात सामने आई है कि कन्या भ्रूण हत्या का एक कारण अगर दहेज और दहेज प्रताड़ना है तो दूसरा बड़ा कारण कानून व्यवस्था की स्थिति भी है, जिसके कारण बालिकाओं के स्वाभिमान की रक्षा करने में माँ-बाप खुद को असमर्थ पाते हैं । प्रदेश में एक समय उम्मीद का आया था, लेकिन तत्कालीन गृहमंत्री की संवेदनशीलता और क्रियाशीलता जब तक रंग लाती, तब तक वे बदल दिए गए । मार्च १९९० में शीतला सहाय ने प्रभावी ढंग से गृहमंत्री के रूप में काम प्रारंभ किया । उन्होंने माना कि वीआईपी ड्यूटी, कानून व्यवस्था तथा मामलों की तफ्तीश एक ही अमले के द्वारा नहीं होना चाहिए । तफ्तीश के अमले को दूसरे कामों में नहीं लगाया जाना चाहिए, ताकि जन-समस्याओं और अपराधों का निराकरण समय पर हो सके । उन्होंने यह साहसकि घोषाा भी की कि थाने में रिपोर्ट लिखी जाना अनिवार्य हो, ताकि अपने-अपने इलाकों में अपराध कम बताने के लिए थाने का स्टाफ आंकड़ों की बाजीगरी न कर सके, लेकिन तीन माह बाद जून १९९० में वे सिंचाई मंत्री बना दिए गए । वर्ष १९९० में बलात्कार के मामलों की संख्या १७०५ थी, जो फरवरी २००८ में बढ़कर १२२३८ हो गई है । दिसम्बर २००३ से जून २००७ तक सामूहिक बलात्कार के १२१७ मामले हुए । इनमें से अवयस्क बालिकाओं के साथ घटे मामले ७२६ थे । यह सब बताने का उद्देश्य प्रशासन की संवेदनशीलता को जाग्रत करना ही है, क्योंकि बिना इसके समस्या का निदान संभव नहीं है । कानून का सम्मान वापस लाने के प्रयास हुए बिना जनता का विश्वास वापस नहीं लाया जा सकता । पुलिस प्रशासन से लेकर सीबीआई तक से आम जनता का विश्वास अकारण नहीं घटा है, वर्तमान संसदीय व्यवस्था और राजनेताओं के प्रति आम जनता में उपेक्षा का भाव बढ़ने की भी ठोस वजहें हैं और उसका परिणाम है राजनेताओं पर जूते-चप्पल फेंकने की घटनाएँ । इसे समय रहते रोकना होगा अन्यथा जनाक्रोश कल क्या रूप लेगा, इसे कोई नहीं बता सकता । कानून व्यवस्था में सुधार हर प्राथमिकता से ऊपर है । प्रदेश की लाडली को लक्ष्मी के साथ सम्मान से जीने का हक भी देना होगा ।
लेखक मध्यप्रदेश विधानसभा के सचिव भगवानदेव ईसरानी हैं

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