हालांकि ये एक राजनैतिक ब्लॉग है लेकिन फिर भी मैं खुद को यहां पर इस वाकये को पोस्ट करने से नहीं रोक पा रहा। एक ऐसी घटना ने विचलित कर दिया है जिसे आपके साथ बांटना चाहता हूं। ये घटना है मध्यप्रदेश के पन्ना ज़िले से....जहां एक युवक ने नवरात्रि के आख़िरी दिन ख़ुद की बलि दे दी.....युवक ने माता के मंदिर परिसर में हंसिए से अपनी गर्दन काट ली और अपनी बलि दे दी....यहां के लोग अंधविश्वास से किस कदर जकड़े हुए हैं....इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक ओर युवक ये सब कर रहा था....और दूसरी ओर मंदिर परिसर में मौजूद लोग माता की जय-जयकार करके उस युवक को अपनी गर्दन काटने को प्रोत्साहित कर रहे थे. युवक का नाम कृष्णा कुशवाहा है....और ये ख़ुद को दुर्गा मां का परम भक्त बताता था....बुंदेलखंड के इस इलाके में ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि के दौरान जो कुछ भी भक्त माता को जो अर्पित करते हैं......माता उसे वो वापस लौटा देती है.....वैसे तो इस इलाके में पहले भी जीभ अर्पित करने की परंपरा देखी गई है.....कृष्णा ने नवरात्रि में सभी दिन की उपवास किया था....और कल नवमी के दिन उसने माता को अपनी जीभ की जगह अपना सिर अर्पित करने का फैसला किया.....चश्मदीदों की मानें तो कृष्णा ने ख़ुद के द्वारा पुरुषोत्तमपुर की पहाड़ी पर बनाए गए मंदिर में पहुंचा....और मंदिर परिसर के पेड़ पर चढ़ गया....और फिर वहां उसने हंसिये को तार से बांधा...और उस पर अपनी गर्दन को दे मारा.....और फिर क्या था....गर्दन को हंसिये पर मारते ही वो तड़पता हुआ पेड़ से गिर गया.....खास बात ये है कि मंदिर में पहले से ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे....और वो भजन कीर्तन कर रहे थे.....इन लोगों ने भी कृष्णा को रोकने की कोशिश नहीं बल्कि उन लोगों ने कृष्णा को और प्रोत्साहित किया....ये पूरी घटना कितनी दर्दनाक है...अंधविश्वास का ऐसा नमूना शायद ही आपने कभी देखा हो...किस तरह अंधविश्वास में पड़ कर कृष्णा ने ख़ुद की बलि दे दी। घटना की सूचना के बाद पुलिस मौके पर पहुंची ज़रूर....लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी.। मेरे पास इस घटना की तस्वीरें भी हैं लेकिन वो इतनी विभीत्स हैं कि आपको विचलित कर सकती हैं। इसलिए मैं उन्हे यहां प्रदर्शित करना उचित नहीं समझता। वैसे तो मध्यप्रदेश सरकार लोगों के अंधविश्वास को खत्म करने के उपाय करने के दावे करती रहती है....लेकिन इस घटना ने एक बार फिर इन दावों को खोखला साबित कर दिया है....
अब बताईए, दुनिया कहां की कहां पहुंच गई और ये लोग किन बेड़ियों में जकड़े हुए हैं। इसे अंधविश्वास की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या कहेंगे। ये श्रद्धा है या मूर्खता...? इन जड़बुद्धि लोगों को न तो समझाया जा सकता है और न ही इनमें जागृति लाई जा सकती है। ऐसे लोगों का एक ही इलाज है, वो ये कि ये सभी इसी तरह से अंधविश्वास में सामूहिक रूप से अपनी बलि दे दें। कम से कम इन जैसे कलंक तो मिटेंगे देश से। इन्ही लोगों की वजह से आज दुनिया भर में भारत को हेय दृष्टि से देखा जाता है।
-आदर्श राठौर
Friday, April 3, 2009
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