Sunday, April 26, 2015

भूकम्प के वो 30 सेकिंड मेरा पूरा वजूद हिला गए

नेपाल से भोपाल तक भूकंप और मैं भी हुआ प्रभावित
प्रतिदिन की तरह मैं सुबह 10.30 बजे तक ऑफिस (दैनिक भास्कर) पहुंचा और अपने काम में जुट गया। तब तक हमारे ऑफिस का टीवी बंद था और मैं दुनिया में हो रही हलचल से बेखबर अपनी न्यूज स्टोरी को पूरी करने में जुटा हुआ था। उस समय तक एक-दो लोग ही ऑफिस में बैठे थे, लेकिन 11.30 बजे तक सभी आ गए। मैं अपने काम में जुटा था और मेरी बगल में Sr फोटो जर्नलिस्ट सतीश टेवरे, उनके बगल में साथी पत्रकार राधेश्याम दांगी और आखिर में सब एडिटर शमी कुरैशी बैठे हुए थे। अचानक ऐसा लगा कि मेरी टेबिल हिल रही है और बहुत जोर-जोर से। पहले तो मैंने ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब ज्यादा हिलने लगी तो साथी टेवरे जी को घूरकर देखा तो पता चला कि वे मुझे घूर रहे हैं। मैं सवाल करता इसके पहले ही कुरैशी जी ने राधेश्याम से पूछ लिया कि टेबिल क्यों हिला रहे हो। राधे बोले कि मैं नहीं हिला रहा हूं तो सब एक-दूसरे का मूंह देखने लगे कि आखिर टेबिल हिला कौन रहा है। इतने में एक शोर उठा और Sr Artist श्री गौतम चक्रवर्ती व उनके साथी भागते हुए आए और बोले की भागो भूकंप आया है। कुछ पल तक समझ में ही नहीं आया कि हो क्या रहा है और मैं अपनी जगह ही बैठा रहा। तब तक कंपनी जारी था और पूरा कम्प्युटर व टेबिल हिल रही थी। जब समझ में आया तो मैं भी बाकी लोगों के साथ उठकर भागा और हम सब दैनिक भास्कर के परिसर में एकत्रित हो गए। नीचे खड़े लोग हमें हैरानी से देख रहे थे कि ये भागकर क्यों आ रहे हैं। दरअसल हम दैनिक भास्कर के चौथे माले पर बैठते हैं और वहां कंपनी हो रहा था। लेकिन नीचे और पहले माले पर बैठे लोगों को इस बात का अहसास नहीं था कि क्या हो रहा है? इतनी देर में सामने वाली बिल्डिंग से भी लोग निकलकर आने लगे। हम संभल भी नहीं पाए थे कि एक और शोर सुनाई दिया और ये वे लोग थे जो अपनी जान बचाकर बिल्डिंग से उतर रहे थे। सभी बदहवास और बेखकर एक-दूसरे को अपने अनुभव सुना रहे थे। पूरा दैनिक भास्कर स्टॉफ परिसर में आकर खड़ा हो गया था। इतने याद आया कि भूकंप तो पूरे शहर में और मेरा घर भी इसी शहर में है। तत्काल घर कॉल करके श्रीमती जी से बात की तो उन्होंने बताया कि वहां भी हलचल हुई थी। मां और बहन का हालचाल जाना। इतने में पूरे शहर से कॉल आना शुरू हो गए कि यहां भी भूकंप आया है। करीब 10 से 15 मिनट तक हम नीचे ही तेज धूप में खड़े रहे और फिर ऊपर अपने ऑफिस में आए। तब तक हमारे एक साथी ने टीवी चालू कर दी थी और हम टीवी पर देख रहे थे कि किस तरह नेपाल भूकंप का शिकार हो गया है। टीवी पर लाशों और ध्वस्त हो चुके मकानों के ही दृश्य थे। एक पत्रकार होने के बाद भी यह सब देख नहीं पाया और टीवी छोड़ वापिस अपने काम में लग गया। लेकिन एक बात फिर स्पष्ट हो गई कि हम सबसे ताकतवर प्राणी होने का दम भरने वाले इंसान प्रकृति के सामने किसी तिनके से ज्यादा औकात नहीं रखते हैं। इसलिए दोस्तों जो जीवन मिला है उसे जिंदादिली से जिएं और दूसरों के लिए जिएं। समाज और देश के लिए ज्यादा से ज्यादा काम करें, क्योंकि यही यादें आपकी रह जाएंगी।
-भीमसिंह मीणा 

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