bhopal.
ब्ुद्धिजीवियों की यह बात कि अब रामायण सरकारी आयोजनों तक सीमित रह गई है और टीवी, इंटरनेट, वीडियो गेम, फिल्में रामलीला जैसे सांस्कृतिक आयोजनों पर हावी हो गई है उसे झरखेड़ा गांव के लोग झुठलाते हैं। जहां अब एक रामलीला का मंचन करने के लिए सरकारी मदद के लिए ताकते हैं या चंदे की बाट जोहते हैं,
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झरखेड़ा की रामलीला कई मायनों में खास है। सबसे बड़ी बात की इस गांव में भले ही दो रामलीला होती हैं, लेकिन एक भी कलाकार बाहर का नहीं रहता। गांव के ही लोग रामायण के पात्रों का किरदार अदा करते हैं और इनमें गांव के सरपंच रामबाबू पाटीदार भी शामिल हैं जो मेघनाद का पात्र निभाते हैं।
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हमारे गांव की संस्कृति शुरू से ही ऐसी हैं। हम हर वर्ष बड़ी धूमधाम से रामलीला का मंचन करते हैं और हमें हर घर से बराबर का सहयोग मिलता है। हमारे गांव के हर घर में बच्चा कलाकार है और पूरी षिद्दत के साथ वे अपना काम करते हैं। रामलीला के अंतिम दिनों में जतरा (गांव का मेला) भरती है। दषहरे के दिन सभी लोग अपने घरों को सजाते हैं और राम की पूजा करते हैं।
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