bhopal.
ब्ुद्धिजीवियों की यह बात कि अब रामायण सरकारी आयोजनों तक सीमित रह गई है और टीवी, इंटरनेट, वीडियो गेम, फिल्में रामलीला जैसे सांस्कृतिक आयोजनों पर हावी हो गई है उसे झरखेड़ा गांव के लोग झुठलाते हैं। जहां अब एक रामलीला का मंचन करने के लिए सरकारी मदद के लिए ताकते हैं या चंदे की बाट जोहते हैं,
वहीं दूसरी रामलीला होती है छोटे राम मंदिर पर और यहां के मुखिया हैं इमरत सिंह मेवाड़ा। कैलाष पाटीदार बताते हैं गत 80 वर्ष से यहां रामलीला का आयोजन होता आ रहा है और अब तो समस्त वेषभूषा व अन्य सामग्री गांव वालों ने मिलकर खरीद ली है। शुरूआत की वजह पूछने पर बताया कि गांव में हिंगलाज देवी का मंदिर है और हर साल रामनवमी की रात में इस मंदिर पर निसान (झंडा) चढ़ाया जाता है। इस झंडे को चढ़ाने के लिए गांव में उत्सव मनाया जाता है।
झरखेड़ा की रामलीला कई मायनों में खास है। सबसे बड़ी बात की इस गांव में भले ही दो रामलीला होती हैं, लेकिन एक भी कलाकार बाहर का नहीं रहता। गांव के ही लोग रामायण के पात्रों का किरदार अदा करते हैं और इनमें गांव के सरपंच रामबाबू पाटीदार भी शामिल हैं जो मेघनाद का पात्र निभाते हैं।
बड़े मंदिर पर जहां राम का देवानंद शर्मा, लक्ष्मण का जीतेंद्र पाटीदार, सीता का देवेद्र बैरागी, हनुमान का मुकेष पाटीदार, रावण का किरदार रामस्वरूप पाटीदार बनते हैं तो वहीं छोटे मंदिर पर राम का राज कुषवाह, लक्ष्मण का अजय सेन, सीता का विषाल कुषवाह, रावण का कन्हैयालाल और हनुमान का रमेष पाटीदार निभाते हैं। छोटे मंदिर पर दो कलाकार ऐसे हैं जो पूरी रामलीला के दौरान कई पात्र निभाते हैं। इनमें भैयालाल दषरथ, अंगद, परसराम, मायावी रावण और अगस्त ऋषि का किरदार अदा करते हैं। वहीं इनके बेटे जयनारायण नागापुत्र, बलि, खर-दूषण, का पात्र अदा करते हैं। छोटे मंदिर पर रामलीला शुरू होने के पहले देवी प्रकाष सेन नर्तकी बन लोगों को रामायण की महत्व बताते हैं।
हमारे गांव की संस्कृति शुरू से ही ऐसी हैं। हम हर वर्ष बड़ी धूमधाम से रामलीला का मंचन करते हैं और हमें हर घर से बराबर का सहयोग मिलता है। हमारे गांव के हर घर में बच्चा कलाकार है और पूरी षिद्दत के साथ वे अपना काम करते हैं। रामलीला के अंतिम दिनों में जतरा (गांव का मेला) भरती है। दषहरे के दिन सभी लोग अपने घरों को सजाते हैं और राम की पूजा करते हैं।
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