चाहे साल कितने भी क्यों न जाए जखम नही भर सकते हैं
भोपाल। हम लगातार २५ सालों से भोपाल में हुई गैस ट्रेजडी की बरसी मानते आ रहे हैं और अब काला दिवस मनाकर शांत हो जाते हैं, लेकिन जखम हरे हैं। कुछ भी भुलाना आसन नही है। मीडिया ने गेस ट्रेजडी को मीडिया ने हमेशा विषय को तवज्जो दी है। कुछ लेख जिन्हें विभिन्न वेबसाइट पर प्रकाशित किया जा चुका है को इस ब्लॉग पर साभार लिया जा रहा है। भोपाल गैस त्रासदी के घाव अभी भरे नहीं कोई क्या करे जब उसकी सुनने वाला कोई नहीं हो. जब सरकारों ने अपने कान बंद कर लिए हों और मीडिया के लिए रोचक कार्यक्रमों के मायने बदल गए हों. भोपाल गैस पीड़ितों का कहना है कि ऐसा ही कुछ उनके साथ हुआ है, हालांकि उन्होंने हिम्मत नहीं हारी है. चौबीस साल पहले घटी घटना को शायद लोगों ने भुला दिया हो, लेकिन उसके घाव अब भी जन्म ले रहे बच्चों के शरीरों पर देखे जा सकते हैं. अपने दुख दर्द केंद्र सरकार के सामने रखने के लिए बीस फ़रवरी 2008 को भोपाल गैस पीड़ितों ने दिल्ली तक सड़क यात्रा की शुरुआत की. कई मीलों लंबी ये यात्रा 28 मार्च को दिल्ली में ख़त्म हुई. लेकिन पीड़ितों का कहना है कि सरकार को इसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी. तपती धूप में धरना गैस पीड़...