Friday, December 25, 2015

मोदी का मास्टर स्ट्रोक

बस कयास लग रहे हैं, असली मकसद समझ से बाहर है
आज मोदी ने जबरदस्त मास्टर स्ट्रोक खेला। उन्होंने अचानक पाकिस्तान जाकर और किसी खास मित्र की तरह नवाज शरीफ से मुलाकात लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया। किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि मोदी पाकिस्तान घूमकर भी आ गए और कोई हो-हल्ला नहीं हुआ। परंपरा अनुसार कांग्रेस ने इस यात्रा का विरोध यह कहकर कर दिया कि पहले से मीटिंग फिक्स थी। लेकिन उनकी तरफ से यह बात बिना किसी प्रमाणिकता के कहीं जाने का एक ही मतलब है कि जैसे कोई खिसयानी बिल्ली खंबा नोंच रही है। कांग्रेस के एक और प्रवक्ता ने तो यह तक कह दिया कि किसी उद्योगपति ने यह मीटिंग फिक्स कराई, लेकिन उस उद्योगपति का नाम वे नहीं बता पाए। खैर हम बात करें यात्रा कि इसके मायने किसी को भी समझ में नहीं आए हैं। जानकार, बुद्धिजीवी, मीडिया, विरोधी और अन्य केवल कयास लगा रहे हैं कि आखिर सब अचानक कैसे हो गया? पाकिस्तान में मोदी के कदम पड़ते ही चर्चा, चिलपों शुरू हो गया। इस दौरान देखा कि कष्मीर के नेता, आर्मी के विषेषज्ञ इसे अच्छी पहल बता रहे हैं, लेकिन कुछ और भी संदेष हैं जिस पर शायद किसी का ध्यान नहीं गया।
पहला तो यह कि मोदी पाकिस्तान यात्रा को बहुत ज्यादा तूल नहीं देना चाहते थे और उनके दिमाग में 25 दिसम्बर की तारीख पहले से तय थी। क्योंकि यह सिर्फ संयोग नहीं हो सकता है कि आज अटल बिहारी वाजपेयी के साथ जिन्ना और नवाज शरीफ का भी जन्मदिन है। वहीं नवाज शरीफ की नवाजी मेहरूनिसां की शादी है। निष्चित रूप से योजना पहले ही मोदी के दिमाग में जन्म ले चुकी थी। बस वे इस यात्रा पर कोई बवाल नहीं चाहते थे। यदि घोषित करके पाकिस्तान यात्रा की जाती तो विरोधियों के साथ षिवसेना व पार्टी के अंदर ही इस बात का विरोध शुरू हो जाता। अब चूंकि यात्रा हो ही गई है तो सिर्फ विलाप करने या खुषियां मनाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है। एक और बात जो मोदी ने सबको समझाई है कि वे पाकिस्तान को बहुत बड़ा नहीं समझते हैं और जैसे देष में भ्रमण करते हैं वैसे ही उनके लिए पाकिस्तान है। यानि वे जो कहते थे कि भारत के लिए पाकिस्तान छोटी समस्या यह है तो यह बात मोदी के काम में नजर भी आ रही है। वे चहल कदमी करते हुए गए और फिर भारत आ गए। इस यात्रा के बाद परिणाम क्या आएंगे, ये तो आना वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन फिलहाल मोदी का कद बढ़ा है और नवाज अपने बचे-खुचे बाल नोंचते हुए सोच रहे होंगे कि वे इसका क्या जवाब दें। क्योंकि मोदी तो शादी के बहाने आ गए, लेकिन नवाज तो ऐसा भी नहीं कर पाएंगे।
कहीं जेटली को बचाने के लिए तो नहीं उठाया कदम!
इस यात्रा के कई सारे मायने हैं और एक मायना यह भी लगता है कि इस पूरी यात्रा से मीडिया व देष का पूरा ध्यान बंट गया है। जबकि कल तक डीडीसीए घोटाले के बहाने लगातार जेटली पर निषाना साधा जा रहा था। विरोधी भी मजबूरन सब काम छोड़कर मोदी की पाकिस्तान यात्रा पर राग अलापने लगे हैं। मोदी ने अपने एक कदम से हवा का रूख बदल दिया है और संभवतः अगले एक-दो दिन में वे समस्या को ही खत्म कर दें। इस बीच केजरीवाल ने डीडीसीए के लिए आयोग बनाने की नाकाम कोषिष भी कर डाली।

Thursday, October 22, 2015

मध्यप्रदेश के शक्ति पीठ

जय माता दी
इस नवरात्रि 'भारत आज' में आपके लिए मैं लेकर आया हूं मप्र में स्थित शक्ति पीठ और प्रसिद्ध देवी मंदिरों की जानकारी। जी हां देश के इस ह्दय प्रदेश में ढेरों देवी मंदिर और शक्ति पीठ हैं, लेकिन कुछ ऐसे हैं जिनका नाम आते ही सिर श्रद्धा से झुक जाता है।

-मप्र की आस्था का केंद्र है सलकनपुर
भोपाल से 78 किलोमीटर दूर स्थित सलकनपुर एक छोटा सा कस्बा है, लेकिन यहां मप्र के कोने-कोने से भक्त आते हैं, क्योंकि यहां माँ विजयासन का मंदिर स्थापित है। हरी-भरी वादियों और ऊंचे पर्वत पर विराजमान मां विंध्यावासिनी के दर्शन करने के लिए नवरात्रि के अलावा भी पूरे साल भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन क्वार और वैशाख के नवरात्रों में यहां पूरे नौ दिन मेला लगता है। जनता को कोई परेशानी नहीं हो इसके लिए मंदिर प्रबंधन द्वारा उच्चकोटि की व्यवस्थाएं की गई हैं। अब तो मंदिर के पास में एसी रूम और हाल उपलब्ध है, जिनकी बुकिंग ऑनलाइन की जाती है। वहीं मंदिर तक पहुंचने के लिए तीन रास्ते तैयार किए जा चुके हैं। इनमें पहला रास्ता लगभग 1000 सीढ़ियां का है, जहां से पैदल यात्री जाते हैं। दूसरे रास्ते से वाहन सीधे पहाड़ी पर पहुुंचते हैं और तीसरा रास्ता उड़नखटोला है जो रोपवे की मदद से मंदिर तक पहुंचाता है। सलकनपुर में विराजी सिद्धेश्वरी मां विजयासन की ये स्वयंभू प्रतिमा माता पार्वती की है जो वात्सल्य भाव से अपनी गोद में भगवान गणेश को लिए हुए बैठी हैं इसी मंदिर में महालक्ष्मी, महासरस्वती और भगवान भैरव भी विराजमान हैं। पुराणों के अनुसार देवी विजयासन माता पार्वती का ही अवतार हैं, जिन्होंने देवताओं के आग्रह पर रक्तबीज नामक राक्षस का वध कर संपूर्ण सृष्टि की रक्षा की थी। देवी विजयासन को कई भक्त कुल देवी के रूप में पूजते हैं। मां जहां एक तरफ कुंवारी कन्याओं को मनचाहे जीवनसाथी का आशीर्वाद देती हैं तो वहीं संतान का वरदान देकर भक्तों की सूनी गोद भर देती हैं।
एक कथा यह भी है
सलकनपुर देवी धाम के महंत प्रभुदयाल शर्मा ने बताया कि जिस स्थान पर रक्त बीज नामक राक्षस का वध करने के पश्चात मां दुर्गा जिस आसन पर आरूढ हुई वही सिद्ध पीठ आज मां विजयासन के नाम से जाना जाता है। यूं तो मां विजयासन के कई प्रमाण है पर इनमे से बंजारों की कथा बहुत लोकप्रिय है। प्राचीन काल में बंजारों का समुह यहा विन्ध्याचल पर्वत पर निवास करते थे एवं उनका जीवन-यापन पशु व्यवसाय करके बीतता था। बंजारांे जिन मवेशियों चराने थे उन्हीं में से कुछ पशु अदृष्य हो गए। करीब एक सप्ताह तक खोजने के बाद जब हताश हो गए तो बंजारो के ढेरे पर बंजारों को एक कन्या जिसने अपना नाम विन्ध्यवासिनी बताया ने दर्शन दिए और कहा दादा कि आप क्या खोज रहे है? बंजोरों ने अपने खोए हुए पशुओं के बारें में बताया तो विंध्यावासिनी ने कहा कि क्या आपने माता की पूजा अर्चना की? तब बंजारों ने कहा की हमें माता का स्थान पता नही है तो कन्या ने वहां एक पत्थर फेंका और उस पत्थर की दिशा में देखने पर बंजारों को मां विन्ध्यवासिनी यानी मां विजयासन विराजमान दिखाई दी। आज जिस मूर्ति के दर्शन करते हैं उसके बारें में किवदंती है कि वह तब बंजारों ने स्थापित की थी। बंजारों को देवी के दर्शन के बाद अपने पशु भी मिल गए। तभी से आज तक बंजारे वैशाख, ज्यैष्ठ, चैत्र, कुंआर माह मे नवरात्री पर्व पर लाखों की संख्या मे यहां मत्था टेकने जरूर आते हैं।

-सूनी गोद को भर देती है हरसिद्धी माता
राजधानी से 35 किमी दूर स्थित हरसिद्धी माता मंदिर में इन दिनों हजारों भक्तों का तांता लगा हुआ है। भोपाल से बैरसिया जाने वाली रोड से चार किमी अंदर स्थित माता के इस मंदिर को तरावली वाली माता के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्रि शुरू होते ही दूर-दूर से भक्तों के आने का सिलसिला यहां शुरू हो जाता है और आखिरी तक एक लाख से भी ज्यादा लोग यहां जुट जाते हैं। प्रतिदिन भंडारे आयोजित किए जाते हैं और युवक नौ दिन तक यहां सेवा करते हैं। मान्यता है कि जिन माताओं की कोख सूनी रहती है वे जब यहां आकर मान्यता करती हैं तो संतान की प्राप्ति जरूर होती है। पूरा मंदिर परिसर 51 एकड़ में फैला हुआ है और ढाई लाख स्क्वायर फीट में केवल माता का मंदिर बना हुआ है।
जहां तारे अस्त हुए वहीं बना गया तरावली वाली माता का मंदिर
किवदंती है कि 2030 साल पहले काशी नरेश गुजरात की पावागढ़ माता के दर्शन करने गए और वहीं से माता मां दुर्गा की एक मूर्ति लेकर आए। काशी नरेश ने काशी में मां की स्थापना की और सेवा करने लगे। कहा जाता है कि माता प्रसन्न होकर प्रतिदिन काशी नरेश को सवा मन सोना देती थी। काशी नरेश इस सोने को जनता में बांट दिया करते। यह चर्चा उज्जैन तक फैल गई और यहां की जनता भी काशी के लिए पलायन करने लगी। तब उज्जैन में विक्रमादित्य का राज्य था। इस प्रकार जनता के पलायन करने से चिंतित विक्रमादित्य बेताल के साथ काशी पहुंचे। वहां बेताल की मदद से काशी नरेश काे गहरी निंद्रा में भेजकर स्वयं मां दुर्गा की पूजा करने लगे। माता ने प्रसन्न होकर उन्हें भी सवा मन सोना दिया, जिसे विक्रमादित्य ने काशी नरेश को लौटाने की पेशकश की। काशी नरेश ने विक्रमादित्य को पहचान लिया और कहा कि क्या चाहते हो? तब विक्रमादित्य ने मां को अपने साथ ले जाने की मांग की। काशी नरेश नहीं माने तो विक्रमादित्य ने 12 वर्ष तक काशी में रहकर तपस्या की और मां दुर्गा के प्रसन्न होने पर दो वरदान मांगे। पहला उनका वह अस्त्र जिससे वह मृत व्यक्ति को फिर से जीवित कर देती थी और दूसरा उज्जैन चलने का। तब माता ने कहा कि वे साथ चलेंगी, लेकिन जहां तारे छिप जाएंगे वहीं रुक जाएंगी। विक्रमादित्य ने यह बात मान ली, क्योंकि उनके साथ चमत्कारी बेताल जो था। लेकिन माता की इच्छा कुछ और थी और उज्जैन पहुंचने के पहले तार अस्त हो गए। तार अस्त होने के कारण उक्त स्थान का नाम तरावली पड़ा। माता इसी स्थान पर रुक गई तो विक्रमादित्य ने फिर उज्जैन चलने जिद की। लेकिन माता नहीं मानी। तब विक्रमादित्य ने दोबारा 12 वर्ष तक तपस्या की और अपनी बलि मां को चढ़ा दी, लेकिन मां ने विक्रमादित्य को फिर जीवित कर दिया। ऐसा तीन बार हुआ, लेकिन विक्रमादित्य नहीं माने तब चौथी बार मां ने अपनी बलि चढ़ाकर सिर विक्रमादित्य को दे दिया और कहा कि मेरे सिर को उज्जैन में स्थापित करो। अब एक ही मां के तीन रूप यानी चरण काशी में अन्नपूर्णा के रूप में, धड़ तरावली में और सिर उज्जैन में हरसिद्धी माता के रूप में पूजे जाते हैं।


भारत सरकार का वस्त्र मंत्रालय कर रहा है कारीगरों के साथ धोखा

कारीगरों को उनका सामान बेचने का अवसर देने वाले हैंडीक्राफ्ट मेले फर्जी लोगों के अड्‌डे बनकर रह गए हैं। ताजा मामला है गौहर महल में चल रहे गांधी शिल्प बाजार का, जहां फर्जी आईडी कार्ड पर दुकानें आवंटित की गई और अफसर मौजूद होकर भी मौन साधे हैं।
भीम सिंह मीणा
गौहर महल में गांधी शिल्प बाजार मेला 16 अक्टूबर से प्रारंभ हुआ है, जो कि २५ अक्टूबर तक चलेगा। यह मेला मप्र हस्तशिल्प विकास निगम और भारत सरकार के डवलपमेंट कमिश्नर (प्लानिंंग)ऑफ हैंडीक्रॉफट यानी डीसीएच द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया है। लेकिन दुकानें आवंटित करने का अधिकार डीसीएच के अफसरों को ही है। डीबी स्टार को मंगलवार की शाम सूचना मिली कि यहां की दुकान नंबर 94 जिस व्यक्ति के नाम से अावंटित हुई है उसका आई कार्ड नकली है। तत्काल मौके पर पहुंचकर देखा और लोगों से बात की तो सही में एक ही नाम के दो आदमी सामने आए। जिस नाम के कार्ड को लेकर हो-हल्ला हुआ वह शुजा अब्बास आब्दी के नाम से डीसीएच ने ही वर्ष 2009 में जारी किया था। दरअसल जब डीबी स्टार मौके पर पहुुंचा तो तब तक काफी हंगामा हो चुका था, क्योंकि असली शुजा अब्बास आब्दी सामने आ गया और उसने नकली शुजा अब्बास आब्दी के कार्ड को अपने पास ले लिया। डीबी स्टार ने वे दोनों कार्ड देखे और पाया कि एक ही डिटेल वाले कार्ड पर फोटो अलग-अलग लगे हुए हैं। इसमें जो व्यक्ति असली शुजा अब्बास आब्दी होने का दावा कर रहा था उनसे बात करने पर एक अलग कहानी सामने निकलकर आई। बातचीत से पता चला कि उक्त कार्ड भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय द्वारा प्रत्येक कारीगर को जारी किया जाता था। इसी कार्ड से शिल्प या हैंडीक्रॉफ्ट मेलों में दुकानें आवंटित की जाती हैं। उक्त कार्ड छह साल पहले जारी किया, लेकिन इसके असली मालिक यानी को कुछ समय पहले मिला। आज जब असली शुजा ने स्वयं के नाम से दुकान नंबर 94 में एक व्यक्ति को बैठे पाया तो आपत्ति ली और मौके पर मौजूद अफसरों को भी बताया। लेकिन डीसीएच के असिस्टेंट डायरेक्टर संतोष कुमार ने इस मामले में कोई एक्शन नहीं लिया और न ही अन्य दुकानदारों से उनके आई कार्ड मांगकर जांच की। जब डीबी स्टार ने बात की तो गोलमोल जवाब देते रहे। इस पूरे मामले की जानकारी डवलपमेंट कमिश्नर प्लानिंग ऑफिस में दी तो तत्काल कार्यवाही करने का जवाब मिला।
देखते ही देखते बदल गया आदमी
हैंडीक्रॉफ्ट मेलों में किस कदर धांधली और मनमानी की जा रही है यह मामला उसकी एक बानगी है। मंगलवार रात में जब नकली शुजा अब्बासी पकड़ा गया तो तत्काल 94 नंबर की दुकान में अनिल कुमार लोधी नामक आदमी आकर बैठ गया। जबकि थोड़ी देर पहले तक वहां नकली शुजा अब्बासी बैठा हुआ था। इस बात को साबित करती है वह रिकॉर्डिंग जिसमें नकली शुजा अब्बासी स्वीकार कर रहा है कि वह नकली है। डीबी स्टार ने उस नकली शुजा अब्बासी को मेले में ही ढूंढ निकाला और बात की तो उसने किसी भी सवाल का कोई जवाब नहीं दिया। हैरत की बात तो यह है कि मौके पर मौजूद डवलपमेंट कमिश्नर के असिस्टेंट डायरेक्टर संतोष कुमार जानते-बूझते भी कार्यवाही करने को तैयार नहीं थे।
असली खेल यह है
इस बार गौहर महल में आयोजित शिल्प बाजार मेले में गौहर महल के अलावा पीछे पड़े मैदान में भी 100 दुकानें आवंटित की गई हैं। इन दुकानों को आवंटित करने के पहले सादा कागज पर एक आवेदन लिया जाता है। 16 अक्टूबर 2015 को भी जब दुकानें आवंटित हो रही थी तो डीबी स्टार टीम मौके पर थी। वहां देखा कि एक-एक करके लोगों को भीतर बुलाया जाता और दुकान दे दी जाती। आरोप है कि एक दुकान के लिए मोटा कमीशन अफसरों के दलालों द्वारा वसूला जाता है। शायद यही कारण है कि पूरे मेले में कौन सी दुकान किस व्यक्ति को आवंटित हुई है इसकी सूची तक नहीं लगाई जाती। चूंकि आधे से ज्यादा दुकानदार जुगाड़ से दुकानें लगाते हैं तो वे सब देखकर भी खामोश रहते हैं और जो असली कारीगर शिकायत भी करते हैं तो उस पर कार्यवाही नहीं की जाती है।

Sunday, October 11, 2015

भोपाल बन रहा है युवाओं का शहर

राजधानी भोपाल के बारें में हमेशा कहा जाता रहा है कि यह बाबुओं का शहर है और चाल बेहद सुस्त है। लेकिन बीते एक साल में यहां आकर पढ़ाई और नौकरी करने वाले युवाओं ने इस जुमले को झुठलाना शुरू कर दिया है। अब भोपाल के नौजवान सूरज उगने के साथ सड़कों पर नजर आते हैं तो देर रात तक फूड जाने पर इनका जमावड़ा रहता है। 
भीम सिंह मीणा
भोपाल का रहने वाला उत्कर्ष एमपी नगर जोन दो की एक कोचिंग से आईआईटी की तैयारी कर रहा है। पहले उसके दोस्त केवल भोपाल के निवासी हुआ करते थे, लेकिन अब प्रदेश के अन्य राज्यों से आने वाले युवा उसकी मित्रमंडली में शामिल हैं। उत्कर्ष ही नहीं, बल्कि शहर में अब प्रत्येक विद्यार्थी का मित्रमंडल अंतर्राज्यीय हो गया है। दरअसल यह बदलाव बीते एक-दो साल से हाे रहा था और इस समय अपने चरम पर है। यह सामने तब आया जब नगर निगम भोपाल द्वारा शहर के हॉस्टल की संख्या जांची गई तो पता चला कि अचानक शहर के कुछ इलाके पूरी तरह से स्टूडेंट स्ट्रीट के रूप में पहचाने जाने लगे हैं। निगम अफसरों को लगातार शिकायत मिल रही थी कि रहवासी क्षेत्रों में लोगों ने अपने घर स्टूडेंटस को दे दिए हैं। निगम ने एक टीम बनाकर पूरे भोपाल की इंटरनल रिपोर्ट जुटाई तो एक बड़ा आंकड़ा सामने आया। हॉस्टलों की संख्या बढ़ने के अलावा खानपान, फैशन और गैजेट्स आदि में भी बदलाव आया है। आलम यह है कि देश-विदेश के बड़े ब्रांड, जिन्हें खरीदने के लिए दूसरे शहर जाना पड़ता था वे भोपाल में आसानी से उपलब्ध हो रहे हैं। डीबी स्टार ने इस दावे की जांच करने के लिए शहर के उन लोगों से बात की जो भोपाल में खानपान, गैजेट्स, हॉस्टल और कपड़ों के व्यवसाय से जुड़े हैं। इसकी भी पड़ताल की कि आखिर इतनी संख्या संख्या में युवा भोपाल क्यों आ रहे हैं। इस पड़ताल में यह भी खुलासा हुआ कि युवा बाहर से तो आ ही रहे हैं, लेकिन शहर के युवाओं ने दूसरे शहरों की तरफ जाने का मोह छोड़ दिया।
राष्ट्रीय संस्थान और कोचिंग ने बढ़ाई संख्या
युवाओं की संख्या में बढ़ोतरी होन की दो मुख्य वजह हैं। एक तो यहां देश की नामी-गिरामी कोचिंग ने अपने सेंटर शुरू दिए अौर कुछ बड़ी कोचिंग ने वीडियो या ऑनलाइन सेवाएं देना प्रारंभ कर दी है। इससे कोटा व दूसरे शहरों में जाकर कोचिंग करने वाले स्टूडेंट अब भोपाल में ही रहकर कॉम्पटिशन एक्जाम की तैयारी कर रहे हैं। दूसरी बड़ी वजह है शहर के भीतर राष्ट्रीय संस्थानों की शुरूआत। इनमें नीलबड़ के पास नेशनल लॉ इंस्टीट्यूट यूनिवर्सिटी, एमपी नगर में माखनलाल राष्ट्रीय पत्रकारिता विवि, माता मंदिर के पास मैनिट (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी), कोलार रोड पर निफ्ट (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फेशन टेक्नोलॉजी), भदभदा के पास इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट, गोविंदपुरा में डिजास्टर मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट, श्यामला हिल्स पर एनआईटीटीआर, नवीबाग स्थित सिऐक (सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग) और जेके रोड स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लास्टिक इंजीनियरिंग आदि प्रमुख हैं। इन सभी में करीब दो हजार से ज्यादा सीटें हैं, जिन पर बाहर के छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। इनके अलावा तीन बड़े मेडिकल कॉलेज और करीब पांच डेंटल कॉलेज भी यहां हैं। इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट कॉलेज की तो भरमार है।
फूड जोन हुए विकसित
युवाओं की आमद का एक बड़ा प्रमाण है भोपाल के लगभग सभी हिस्सों में बड़े स्तर पर फूड जोन का विकसित होना। बड़ी होटल्स और रेस्तरां ने तो परिवार के साथ स्टूडेंट के लिए एक अलग जगह बनाई है। लेकिन सड़क किनारे बड़ी संख्या जंक फुड की खुली दुकानें इस तथ्य को और मजबूत करती है। नगर निगम की ही एक और रिपोर्ट में लिखा है कि एमपी नगर के दोनों जोन, दो नंबर से बारह नंबर तक के सभी बाजार, न्यू मार्केट, जेके रोड आदि इलाकों में करीब 600 गुमटियां केवल खानपान की चल रही हैं।
यूथ के प्रेशर में पहले दिन मिलते हैं गैजेट्स
दो साल पहले तक शहर में एक ब्रांडेड कार्डलैस के लिए भी आठ से दस दिन तक इंतजार करना पड़ता था। लेकिन यूथ का आगमन से अब चाहे आई फोन हो या फिर कोई अन्य गैजेट्स लांचिंग के तत्काल बाद पूरे देश के साथ भोपाल में आसानी से मिल जाते हैं। दस नंबर स्थित आशा कलेक्शन और शहर के सभी मॉल्स में युवाओं को आसानी से गैजेट्स की दुकानों पर खरीदारी करते देखा जा सकता है। आलम यह है कि पूरे शहर में 400 से 500 मोबाइल प्रतिदिन बेचे जाते हैं और इन्हें खरीदने वाले 60 प्रतिशत युवा ही हैं।

Monday, April 27, 2015

संगठन मजबूत करना है तो पद के प्रति निष्ठावान रहें

जब किसी संगठन का प्रमुख अपने पद के लिए निष्ठावान नहीं होता तो वह पूरे संगठन को जोखिम में डाल देता है। वह संगठन के विकास की राह में कांटा बन जाता है। जब अपने पद से जुड़ी जिम्मेदारियों के लिए वफादारी निभाएगा, तभी संगठन या संस्था (कंपनी) को प्रगति के पथ पर अग्रसर करने के योग्य हो सकेगा। उसे वह पद संभालने के बाद, संगठन के छोटे-मोटे मामलों या रोजमर्रा की परेशानियों पर केंद्रित नहीं रहना चाहिए। यदि वह ऐसा करता है तो वह संगठन का सबसे महंगा क्लर्क बन जाता है। इसके बजाय किसी संगठन प्रमुख व पदाधिकारी से अपेक्षा की जाती है कि वह अाने वाले कले के लिए एक नजरिया विकसित करे। दूसरों के साथ गठजोड़ व सहयोग आदि की चर्चा कर। संगठनात्मक संस्कृति तैयार करें, अपने से नीचे काम करने वालों को चुने, विविधता पर ध्यान दे और सबसे अहम बात यह है कि वह सभी तंत्रों को सुचारू रूप से गतिशील बनाए रखने पर ध्यान दे। उसका प्राथमिक उत्तरदायित्व यही बनता है कि वह संगठन को आने वाले कल के लिए तैयार रखे और आने वाला कल हमारे स्कूल शिक्षा पूर्ण करने वाले युवा साथी हैं।
-भीमसिंह सीहरा
पत्रकार, लेखक, ब्लॉगर एवं चिंतक
(नोट- यह मेरे निजी विचार हैं जो विभिन्न पुस्तकों के अध्ययन के बाद प्रकट कर रहा हूं। यदि अच्छे लगे तो इन्हें सभी लोगों तक पहुंचाने में सहयोग करें अन्यथा मिटा दें। कोई आपत्ति होने पर सीधे मेरे व्हाटस एप नंबर 9826020993 पर संदेश भेजें। यदि आप ऐसा करते हैं तो मैं आपका आभारी रहुंगा।)

Sunday, April 26, 2015

भूकम्प के वो 30 सेकिंड मेरा पूरा वजूद हिला गए

नेपाल से भोपाल तक भूकंप और मैं भी हुआ प्रभावित
प्रतिदिन की तरह मैं सुबह 10.30 बजे तक ऑफिस (दैनिक भास्कर) पहुंचा और अपने काम में जुट गया। तब तक हमारे ऑफिस का टीवी बंद था और मैं दुनिया में हो रही हलचल से बेखबर अपनी न्यूज स्टोरी को पूरी करने में जुटा हुआ था। उस समय तक एक-दो लोग ही ऑफिस में बैठे थे, लेकिन 11.30 बजे तक सभी आ गए। मैं अपने काम में जुटा था और मेरी बगल में Sr फोटो जर्नलिस्ट सतीश टेवरे, उनके बगल में साथी पत्रकार राधेश्याम दांगी और आखिर में सब एडिटर शमी कुरैशी बैठे हुए थे। अचानक ऐसा लगा कि मेरी टेबिल हिल रही है और बहुत जोर-जोर से। पहले तो मैंने ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब ज्यादा हिलने लगी तो साथी टेवरे जी को घूरकर देखा तो पता चला कि वे मुझे घूर रहे हैं। मैं सवाल करता इसके पहले ही कुरैशी जी ने राधेश्याम से पूछ लिया कि टेबिल क्यों हिला रहे हो। राधे बोले कि मैं नहीं हिला रहा हूं तो सब एक-दूसरे का मूंह देखने लगे कि आखिर टेबिल हिला कौन रहा है। इतने में एक शोर उठा और Sr Artist श्री गौतम चक्रवर्ती व उनके साथी भागते हुए आए और बोले की भागो भूकंप आया है। कुछ पल तक समझ में ही नहीं आया कि हो क्या रहा है और मैं अपनी जगह ही बैठा रहा। तब तक कंपनी जारी था और पूरा कम्प्युटर व टेबिल हिल रही थी। जब समझ में आया तो मैं भी बाकी लोगों के साथ उठकर भागा और हम सब दैनिक भास्कर के परिसर में एकत्रित हो गए। नीचे खड़े लोग हमें हैरानी से देख रहे थे कि ये भागकर क्यों आ रहे हैं। दरअसल हम दैनिक भास्कर के चौथे माले पर बैठते हैं और वहां कंपनी हो रहा था। लेकिन नीचे और पहले माले पर बैठे लोगों को इस बात का अहसास नहीं था कि क्या हो रहा है? इतनी देर में सामने वाली बिल्डिंग से भी लोग निकलकर आने लगे। हम संभल भी नहीं पाए थे कि एक और शोर सुनाई दिया और ये वे लोग थे जो अपनी जान बचाकर बिल्डिंग से उतर रहे थे। सभी बदहवास और बेखकर एक-दूसरे को अपने अनुभव सुना रहे थे। पूरा दैनिक भास्कर स्टॉफ परिसर में आकर खड़ा हो गया था। इतने याद आया कि भूकंप तो पूरे शहर में और मेरा घर भी इसी शहर में है। तत्काल घर कॉल करके श्रीमती जी से बात की तो उन्होंने बताया कि वहां भी हलचल हुई थी। मां और बहन का हालचाल जाना। इतने में पूरे शहर से कॉल आना शुरू हो गए कि यहां भी भूकंप आया है। करीब 10 से 15 मिनट तक हम नीचे ही तेज धूप में खड़े रहे और फिर ऊपर अपने ऑफिस में आए। तब तक हमारे एक साथी ने टीवी चालू कर दी थी और हम टीवी पर देख रहे थे कि किस तरह नेपाल भूकंप का शिकार हो गया है। टीवी पर लाशों और ध्वस्त हो चुके मकानों के ही दृश्य थे। एक पत्रकार होने के बाद भी यह सब देख नहीं पाया और टीवी छोड़ वापिस अपने काम में लग गया। लेकिन एक बात फिर स्पष्ट हो गई कि हम सबसे ताकतवर प्राणी होने का दम भरने वाले इंसान प्रकृति के सामने किसी तिनके से ज्यादा औकात नहीं रखते हैं। इसलिए दोस्तों जो जीवन मिला है उसे जिंदादिली से जिएं और दूसरों के लिए जिएं। समाज और देश के लिए ज्यादा से ज्यादा काम करें, क्योंकि यही यादें आपकी रह जाएंगी।
-भीमसिंह मीणा 

Sunday, February 1, 2015

...वो ढाबे वाली लड़की

फोटो प्रतीकात्मक
वो एक हवा के झाैंके की तरह आई और अपनी कहानी सुनाकर चली गई। उसके दर्द को सुनकर वक्त थम सा गया था। वो सांवली सी लड़की। कपड़े से साफ लग रहा था कि राजस्थान या राजस्थान की सीमा से लगे इलाके की रहने वाली है। जब मैं उससे बात कर रहा था तो लोग मुझे घूर रहे थे। तब मुझे अपनी किस्मत पर रश्क हो रहा था, लेकिन बाद में जब हकीकत पता चली तो हाथ-पैर ठंडे पड़ गए। जिससे बात कर रहा था वो मेरे सामने तो थी, लेेकिन किसी अन्य को उसकी परछाई तक नहीं दिखाई दी। कहते हैं न कि कुछ घटनाओं को भूल पाना आसान नहीं होता है। खासतौर से तब जबकि मामला लड़की और डर से जुड़ा हो। जिस मामले की बात मैं कर रहा हूं वह कुछ दिन पहले की ही है। पहले तो लगा कि इसे छिपाकर रखना चाहिए, लेकिन बाद में लगा कि इस अनुभव को शेयर किया जाए। 
        यह बात कुछ दिन पहले की ही है जब मैं अपनी ससुराल रतलाम एक विवाह के सिलसिले में गया था। रतलाम के ही पास सैलाना नामक एक छोटा सा कस्बा है। यहां कभी सैलाना रियासत हुआ करती थी और कुछ दिन पहले तक यहां राजपरिवार भी रहता था। लेकिन अब वे लोग इंदौर शहर में रहते हैं। काफी भव्य महल यहां बना हुआ है। इसी महल के पीछे एक कैक्टस पार्क है। पिछले दिनों में यहां घूमने आया तो यहां के चौकीदार ने मुझे एक लड़की की कहानी सुनाई। कहानी हकीकत थी कि अफसाना यह तो पता नहीं, लेकिन सुनकर काफी मजा आया। कहानी में एक राजस्थानी लड़की थी और उसे सैलाना रियासत के एक सिपाही से प्रेम हो गया था। सिपाही एक छोटी सी लड़ाई में मारा गया और वो लड़की अकेली रह गई। सिपाही की मौत ने उसे बावला बना दिया था और वो सैलाना के आसपास ही अपने सिपाही को खोजा करती। अचानक एक दिन उसकी लाश सैलाना से थोड़ा आगे झरनेश्वर नामक कोई स्थान है वहां मिली। कई तरह की बातें हुई। किसी ने कहा कि उसके साथ बलात्कार हुआ और इसके बाद मार दिया गया। किसी ने कहा कि उसने अपने सिपाही के चले जाने के बाद जान दे दी। बात होती रही और गांव वालों ने ही जैसे-तैसे उसका अंतिम संस्कार कर दिया। बात आई-गई हो और अब तो पूरे सैलाना में इसकी चर्चा भी नहीं होती। मेरे जैसे कोई भूले-भटके पर्यटक चले जाए तो कुछ नया जानने के चक्कर में ऐसी कहानियां सुन लेते हैं।
          खैर मैं वहां से वापस आ गया और अगले दिन मंदसौर गया। असली कहानी मंदसौर से लौटते वक्त शुरू हुई। लौटते हुए मुझे रात के करीब दो बज गए। मुझे रात में घूमना बड़ा अच्छा लगता है और ढाबों व चायब की दुकानों पर सेल्फी लेना तो और भी मजेदार। मैंने ड्राइवर से किसी ढाबे पर कार रोकने के लिए कहा। उसने मंदसौर से निकलने के बाद ढोढर के पहले एक ढाबे पर कार रोक दी।  ढाबा काफी बड़ा था, लेकिन ज्यादा गाड़ियां और ग्राहक नहीं होने के कारण ढाबे के कर्मचारी झपकियां ले रहे थे। ड्राइवर ढाबे के भीतर चाय का आर्डर देने चला गया और मैं खुले मैदान में टहलने लगा। टहलते-टहलते किसी के रोने की आवाज आई। मैं आवाज की दिशा में बढ़ा और जिस तरफ बढ़ रहा था वे ढाबे के दायीं तरफ का हिस्सा था। खाली मैदान, पीछे खेत और धुंध के अलावा मुझे कुछ दिखाई नहीं दिया। मैँ वापस लौटने ही वाला था कि फिर किसी के सिसकने की आवाज आई। मैं फिर उस तरफ बढ़ा तो ढाबे की दीवार से सटकर कंबल ओढ़े एक महिला बैठी थी और अपने घुटनों पर सिर रखकर सिसक रही थी। मैंने पास जाना उचित नहीं समझा और दूर से ही खड़े होकर उसे आवाज दी।
उसने सिर नहीं उठाया।
मैंने फिर आवाज दी।
इस बार उसने ऊपर चेहरा किया तो मैं थोड़ा आश्चर्य में पढ़ गया, क्योंकि वो एक लड़की थी और चेहरे पर गोदना गुदे हुए थे। उसकी बड़ी-बड़ी आंखे और उनसे बहते आंसू मुझे दिखाई दिए। मैं वहीं जड़वत हो गया और दिमाग में विचारों की आंधी चलने लगी। समझ में नहीं आया। 
मैंने पूछ- तुम कौन हो और यहां क्यों बैठी हो?
कोई जवाब नहीं और फिर सिर घुटनों के बीच चला गया। सिसकने की आवाज सुनाई दी।
बोलती क्यों नहीं। कौन हो तुम? - फिर मैंने पूछा
उसने सिर उठाया और बोली - दुखियारी हूं। मेरे बारें में जानकर क्या करोगे?
मेरे अंदर का पत्रकार जाग गया। मुझे मामला दिलचस्प लगा।
मैंने कहा - तुम इस हालत में यहां बैठी हो। ठंड नहीं लग रही? और फिर इधर क्यों बैठी हो। चलो ढाबे पर। कोई तुम्हारे साथ है?
ढेर सारे सवाल और सिर्फ एक जवाब - जो मेरा था वो छिन गया।
कुछ समझ में नहीं आया और लगा कि जरूर इसके साथ गलत हुआ और किसी ने इसका सामान छीन लिया। 
मैंने कहा - कोई बात नहीं। तुम उठो और मुझे बताओ कि तुम्हारे साथ क्या हुआ? शायद मैं कोई मदद कर पाऊं।
.. मेरी मदद अब कोई नहीं कर सकता - फिर छोटा सा जवाब
मैंने फिर कहा - नहीं मुझे बताओ। मैं एक पत्रकार हूं और तुम्हारी मदद कर सकता हूं।
.. तो फिर मेरी बात सुनोगे - उसने कहा
हां-हां क्यों नहीं । - मैंने कहा
तो सुनो ... 
और वो बोलती गई। मैं सुनता गया। समय को जैसे पंख लग गए। उसका एक-एक शब्द मेरे कानों में किसी टंकार की तरह पड़ रहा था। अचानक मुझे किसी ने हिलाया। पलटकर देखा तो मेरा ड्राइवर राजू था।
उसने कहा - आपको क्या हो गया साहब। किससे बात कर रहे हैं? और क्या हाल बन गया।
.. मैं तो उस लड़की से बात कर रहा था - मैंने कहा
किस लड़की से? - राजू ने कहा
मैंने दूसरी दिशा सिर घुमाकर हाथ उठाया तो लड़की वाली जगह पर कुछ नहीं था। लेकिन मैं सर्द रात में पसीने से तर-बतर हो चुका था।
मैंने राजू की तरफ देखा तो वो मुझे ही देख रहा था।
मैंने उससे पूछा - मुझे यहां खड़े हुए कितनी देर हो ग?
पांच मिनट- उसने कहा
थोड़ा रुककर फिर बोला - आपकी चाय कब से तैयार है। मुझे लगा कि आप आ जाओगे। थोड़ी देर इंतजार किया। नहीं आए तो बुलाने आया। देखा कि आप ढाबे के इस कोने की तरफ देख रहे थे और माथे पर पसीना आ रहा था। कुछ देर चुप रहा, लेकिन आपकी हालत देखकर घबरा गया था। आपको आवाज दीख् लेकिन आपने सुना ही नहीं। तब मैंने आपको पकड़कर हिलाया।
मैंने माथे का पसीना पोंछा और ढाबे के मुख्य द्वार  की तरफ बढ़ गया। 
राजू चाय लेकर आया और मुझे दी, लेकिन मेरा ध्यान तो कहीं और था। खैर हम वहां से रवाना हुए पूरे रास्ते मैंने राजू से बात नहीं की। सुबह के तीन बजे हम रतलाम पहुंचे। बिस्तर पर पहुंच गया, लेकिन उस लड़की की तस्वीर और कैक्टस पार्क की कहानी अब समझ में आने लगी थी।
वो कहानी क्या थी यह फिर कभी आप लोगों से शेयर करुंगा।
-भीमसिंह मीणा

Saturday, January 17, 2015

सेंसर तेरी 'लीला' अपरंपार

  देश में इस समय दाे बड़ी खबर चर्चा में हैं। पहली दिल्ली के चुनाव और आईपीएस किरण बेदी का भाजपा में जाना। इनके साथ 'आप; की शाजिया  इल्मी का भाजपा में शामिल होना। लेकिन इससे भी बड़ी खबर हो गई है सेंसर बोर्ड की चेयरपर्सन लीला सेमसन और उनके साथ बोर्ड के अन्य सदस्यों का इस्तीफा। इनके इस्तीफे का भी बड़ा ही अजीब कारण है कि फिल्म मैसेंजर ऑफ गॉड को सर्टिफिकेशन अपीलिएट ट्रिब्युनल ने हरी झंडी दे दी है। जबकि सेंसर बोर्ड कमेटी ने इस पर रोक लगाई थी। इस अचानक इस्तीफे ने लीला सेमसन के ऊपर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। सबसे पहला सवाल कि सेंसर बोर्ड का मुख्य काम  फिल्म पर रोक लगाना कतई नहीं होता है, बल्कि फिल्मों की श्रेणी और उन्हें देखने की उम्र तय करना होता है। फिर भी लीला सेमसन ने फिल्म पर न केवल रोक लगाई बल्कि इस्तीफा भी दिया। लेकिन इन्हीं लीला सेमसन को कुछ दिन पहले प्रदर्शित हुई फिल्म 'pk' में कोई आपत्ति नहीं दिखी। भारत के करोड़ों हिन्दुओं ने विरोध किया और मुसलमानों ने भी माना कि फिल्म गलत है, लेकिन लीला सेमसन को यह आपत्तिजनक नहीं लगा। आखिरकार फिल्म का प्रसारण होता है और अब तक यह फिल्म 333 करोड़ रुपए कमा चुकी है। अब कहा जा रहा है कि फिल्म लोगों ने पंसद की, इसलिए वह सही थी और सेंसर बोर्ड का निर्णय भी सही था। ठीक है स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति के नाम पर यह सब भी हो गया और लोगों ने दिल खोलकर इस बात का स्वागत किया। तो फिर राम-रहीम में ऐसा क्या आपत्तिजनक आ गया कि उसे प्रमाण-पत्र नहीं देने पर बन आई।  इस फिल्म को भी प्रमाण पत्र दीजिए और होने दीजिए प्रदर्शित। जनता खुद कर देगी इंसाफ कि फिल्म ने उसकी भावनाओं को कितनी ठेस पहुंचाई है।
                             थोड़ा सा पीछे जाएं तो कई बातें ऐसी हैँ जिनसे लीला सेमसन के ऊपर भी सवाल खड़े होंगे। पीछे के कारणों पर जाएं तो पूरी तस्वीर साफ हो जाती है। दरअसल लीला सेमसन को कांग्रेस ने सेंसर बोर्ड का चेयरमेन बनाया था। इनका कार्यकाल भी समाप्त हो गया है और इन्होंने अपने कार्यकाल को बढ़ाने के लिए जुगत लगाई थी, जो कामयाब नहीं हो सकी। अब जबकि कार्यकाल खत्म हो गया है तो कुछ विवाद खड़े कर दिए और शामिल हो गए राजनीतिक शहीदों की सूची में। लीला सेमसन अप्रैल 2011 से बोर्ड की अध्यक्ष हैं। सवाल यह भी है कि इसके पहले भी कई बार सरकार की तरफ से निर्देश मिलते रहे हैं तो तब क्यों लीला को कुछ दिखाई नहीं दिया। इसके पीछे की एक और कहानी यह है कि राम-रहीम जो डेरा सच्चा सौदा के मुखिया हैं ने भाजपा को हरियाणा चुनाव में सहयोग किया था। इसके बाद राम-रहीम ने फिल्म मैसेंजर ऑफ गॉड यानी MSG बनाई। लीला ने अपनी वफादारी निभाते हुए MSG पर रोक लगा दी और इससे कांग्रेस भी काफी खुश हुई। सीधे-सीधे लीला के नंबर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के सामने बढ़ गए हैं। दूसरी बात लीला ने जितने भी आरोप लगाए कि केंद्र सरकार ने MSG के प्रदर्शन के लिए दबाव बनाया, लेकिन उसका कोई भी प्रमाण पेश नहीं कर सकी। अब यह मामला पूरी तरह से राजनीतिक हो गया है न कि धर्म का विषय रहा।
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क्या सच में मप्र पुलिस इतनी साहसी हो गई कि एक सत्ताधारी दल के मंत्री पुत्र को बेल्ट से पीट सके?

  क्या सच में मप्र पुलिस इतनी साहसी हो गई कि एक सत्ताधारी दल के मंत्री पुत्र को बेल्ट से पीट सके? अब तक तो यकीन नहीं हो रहा था, लेकिन खबर दै...