Monday, November 23, 2009

चाहे साल कितने भी क्यों न जाए जखम नही भर सकते हैं

भोपाल। हम लगातार २५ सालों से भोपाल में हुई गैस ट्रेजडी की बरसी मानते आ रहे हैं और अब काला दिवस मनाकर शांत हो जाते हैं, लेकिन जखम हरे हैं। कुछ भी भुलाना आसन नही है। मीडिया ने गेस ट्रेजडी को मीडिया ने हमेशा विषय को तवज्जो दी है। कुछ लेख जिन्हें विभिन्न वेबसाइट पर प्रकाशित किया जा चुका है को इस ब्लॉग पर साभार लिया जा रहा है।
भोपाल गैस त्रासदी के घाव अभी भरे नहीं
कोई क्या करे जब उसकी सुनने वाला कोई नहीं हो. जब सरकारों ने अपने कान बंद कर लिए हों और मीडिया के लिए रोचक कार्यक्रमों के मायने बदल गए हों.
भोपाल गैस पीड़ितों का कहना है कि ऐसा ही कुछ उनके साथ हुआ है, हालांकि उन्होंने हिम्मत नहीं हारी है. चौबीस साल पहले घटी घटना को शायद लोगों ने भुला दिया हो, लेकिन उसके घाव अब भी जन्म ले रहे बच्चों के शरीरों पर देखे जा सकते हैं.
अपने दुख दर्द केंद्र सरकार के सामने रखने के लिए बीस फ़रवरी 2008 को भोपाल गैस पीड़ितों ने दिल्ली तक सड़क यात्रा की शुरुआत की.
कई मीलों लंबी ये यात्रा 28 मार्च को दिल्ली में ख़त्म हुई. लेकिन पीड़ितों का कहना है कि सरकार को इसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी.
तपती धूप में धरना
गैस पीड़ितों ने अपनी बात को रखने के लिए तपती धूप में 38 दिन तक जंतर मंतर पर धरना दिया.
वे बच्चे जो ठीक से देख नहीं सकते, या चल नहीं सकते, उन्होंने इस भयानक गर्मी में भी सब्र नहीं खोया.
मिलिए रशीदा बी से जिन्होंने परिवार के छह सदस्य भोपाल गैस त्रासदी में गँवा दिए.
रशीदा कहती हैं कि पीड़ितों ने संतरी से लेकर मंत्री से गुहार लगाई, लेकिन मात्र आश्वासन के अलावा उनके हाथ कुछ नहीं लगा.
हम कई सांसदों से मिल चुके हैं. हम अर्जुन सिंह, रामविलास पासवान, ऑस्कर फर्नांडिस, यहाँ तक कि प्रधानमत्री के मुख्य सचिव से मिल चुके हैं, लेकिन सबने यही कहा कि हमने आपकी बात प्रधानमंत्री तक पहुँचा दी है लेकिन वो कब आपसे मिलेंगे ये उन्होंने नहीं बताया

रशीदा बी
वो कहती हैं, ''हम कई सांसदों से मिल चुके हैं. हम अर्जुन सिंह, रामविलास पासवान, ऑस्कर फर्नांडिस, यहाँ तक कि प्रधानमत्री के मुख्य सचिव से मिल चुके हैं, लेकिन सबने यही कहा कि हमने आपकी बात प्रधानमंत्री तक पहुँचा दी है लेकिन वो कब आपसे मिलेंगे ये उन्होंने नहीं बताया.''
कोई रास्ता नहीं निकलते देख भोपाल गैस पीड़ितों ने सीधे प्रधानमंत्री आवास तक अपनी आवाज़ पहुँचाने की ठानी.
करीब 50 गैस पीड़ित सोमवार की सुबह दिल्ली के प्रेस क्लब पर एक बस में इकठ्ठा हुए.
भोपाल गैस पीड़ितों के हितों के लिए संघर्षरत एक कार्यकर्ता ने बताया कि उन्हें इसके अलावा कोई रास्ता नहीं दिखा वो सीधे प्रधानमंत्री के घर अचानक पहुँचें और उनसे मामले में दखल देने की गुज़ारिश करें.
उनका कहना था, ''अगर हम मार्च करते हुए आवास तक जाते तो सुरक्षाकर्मी हमें ऐसा नहीं करने देते, इसलिए उन्होंने ऐसा रास्ता चुना है.''
मैं भी बस में सवार हो लिया. इतने सारे बच्चों के लिए बस शायद छोटी थी.
कुछ बच्चे अपनी माँ के गोद में दुबके हुए थे. हमे बताया गया कि बस में बैठे कुछ बच्चे या तो चल नहीं सकते या फिर उन्हें दिखाई देना बंद हो गया है क्योंकि यूनियन कार्बाइड की फ़ैक्ट्री से निकले धुएं ने वर्षों बाद भी उन्हे नहीं बख्शा है.
प्रधानमंत्री से नाराज़गी
बस में बैठे लोग बेहद नाराज़ हैं. सब के ज़हन में बस एक ही सवाल था- दुनिया का इतनी बड़ी त्रासदी के शिकार लोग, जो इतनी दूर से पैदल चलकर आए और बदहवास कर देने वाली गर्मी में जंतर मंतर में शांतिपूर्वक अपनी बात रखी, क्या देश के प्रधानमंत्री के पास उनके लिए दो मिनट भी नहीं है?
आख़िर मनमोहन सिंह उनके भी तो प्रधानमंत्री हैं.
गैस पीड़ितों का कहना है कि सरकार को उनमें कोई दिलचस्पी नहीं है
बच्चों ने अपने कपड़ों के ऊपर काले रंग का कपड़ा ओढ़ रखा था, जिस पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए लिखा था एक सवाल-अग़र हम आपके परिवार के सदस्य होते तो क्या हमारे साथ ऐसा व्यवहार होता?
बस पर मौजूद आसिफ़ा अख़्तर ने हमें बताया कि जब तक बच्चों के लिए अधिकार उन्हें नहीं मिलते, वो वापस नहीं जाएँगे.
प्रधानमंत्री आवास के नज़दीक आते ही बस में हलचल शुरू हो गई. आवास के पास बस की रफ़्तार धीरे होते देख तैनात सुरक्षाकर्मी भी सकते में आ गए और बस की ओर दौड़ना शुरू कर दिया.
इधर कार्यकर्ताओं ने बच्चों को बस के बाहर निकालना शुरू कर दिया. एक तरफ़ सुरक्षाकर्मी बच्चों को बाहर निकलने से रोकने की की कोशिश कर रहे थे, तो दूसरी तरफ बच्चों और साथ आई महिलाओं का इरादा कुछ और ही था.
कुछ बच्चें ज़मीन पर लेट गए, लेकिन सुरक्षाकर्मियों के आगे उनकी एक भी नहीं चल पाई.
उन्हें जल्द ही बस में वापस डाल दिया गया. कुछ लोग भोपाल की तस्वीरें लहराते नज़र आए, लेकिन पुलिसवालों ने कोई कोताही नहीं बरती और उन्हें भी बस में डालकर रवाना कर दिया.
करीब 20 मिनट में ही छोटी सी भीड़ पर काबू पा लिया गया। पुलिसिया डंडा फिर जीत गया.
लेखक विनीत खरे बीबीसी में संवाददाता हैं।
भोपाल गैस पीडितों ने पिछले लगातार तेईस वर्षों से अपने साथ हो रही 'अनदेखी' और 'नाइंसाफी' को उजागर करने और 'प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को उनके वायदे की याद दिलाने' के लिए 'दिल्ली चलो' का रास्ता ढूँढा है.
क़रीब तीन हज़ार गैस पीडितों के दो जत्थे जल्दी ही दिल्ली जाकर धरने, प्रदर्शन और भूख हरताल करेंगे.
सौ से अधिक लोगों का ऐसा ही एक ग्रुप बुधवार को लगभग आठ सौ किलोमीटर पदयात्रा करते हुए दिल्ली के लिए रवाना हुआ जबकि पीडितों का दूसरा समूह रेलगाड़ी से शुक्रवार को चलकर राजधानी पहुँचेगा.
2006 में गैस पीडितों की एक पदयात्रा और फिर दिल्ली के जंतर-मंतर पर लंबे धरने के बाद मनमोहन सिंह ने इस दल की मांग पर एक केंद्रीय समिति का गठन किया था और पीडितों के राहत और पुनर्वास के लिए एक विस्तृत योजना तैयार करने का वायदा किया था.
इस योजना को दिसम्बर 2007 तक तैयार हो जाना था.
स्वयंसेवी कार्यकर्ता रचना ढींगरा ने कहा की यह जत्था गुना, शिवपुरी, ग्वालियर, आगरा और मथुरा होते हुए मार्च के अन्तिम हफ्ते में दिल्ली पहुँचकर जंतर-मंतर पर धरना देगा और अगर ज़रूरत पड़ी तो अनिशचित कालीन भूख हड़ताल भी शुरू करेगा.
तेईस साल पहले यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से हुए गैस रिसाव से सीधे प्रभावित पीडितों के अलावा इस पदयात्रा में अब बंद पड़ी फैक्ट्री के आसपास की बस्तियों में रहने वाले भी शामिल होंगे.
कई अध्ययनों के अनुसार प्लांट में मौजूद रसायनिक कचरा भूतल में सालों से रिस रहा है जिससे आसपास के इलाके का भू जल ज़हरीला हो गया है लेकिन समीप की बस्तियों में रहने वाले लोग उसे ही पीने को मजबूर हैं.
नए आँकड़े
पीडितों और उनके परिवार के पुनर्वास की विस्तृत नीतियों के अलावा संगठनों की मांग है कि भारत सरकार यूनियन कार्बाइड और अब वर्तमान मालिक दाऊ कैमिकल्स के ख़िलाफ़ कानूनी कारवाई करे, दाऊ की भारत में व्यवसायिक गतिविधियों पर रोक लगाए, उससे प्लांट में मौजूद कचरे की सफ़ाई का ख़र्च मांगे और कचरे की मौजूदगी के कारण लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण को हुए नुक़सान की भरपाई करने को कहे.
पीडितों के साथ दुर्घटना के दिन से काम कर रहे अब्दुल जब्बार कहते हैं कि उनके साथ जा रहा यह समूह लोगों को यह बताना चाहता है मुआवज़े के नाम पर पीडितों को जो रक़म मिली है वो नाम मात्र की है क्योंकि दुर्घटना में मारे जाने और उससे प्रभावित लोगों की संख्या में पाँच गुना इज़ाफ़ा हो गया है.
1989 में यूनियन कार्बाइड से सात अरब 15 करोड़ रुपए का जो समझौता हुआ था वह इस आधार पर था कि गैस रिसाव से तीन हज़ार लोगों की मौत हुई थी और एक लाख बीस हज़ार लोग घायल हुए थे.
चार साल पहले जो आधिकारिक आंकडों आए उनके अनुसार अब तक इस दुर्घटना में मारे गए लोगों की संख्या पन्द्रह हज़ार होने और पाँच लाख से अधिक के पीड़ित होने का मामला सामने आया है.
गैस पीडितों के साथ काम कर रही संस्थाओं का दावा है कि उनसे सहानभूति रखने वाली संस्थाएं उनके समर्थन में देश भर में रैलियों, बैठकों और हस्ताक्षर अभियानों का आयोजन कर रही हैं.
साथ ही अमरीका और ब्रिटेन में स्थित भारतीय दूतावासों पर भी उनके समर्थक विरोध प्रदर्शन करेंगे।
फ़ैसल मोहम्मद अलीबीबीसी संवाददाता, भोपाळ
जबलपुर की एक स्थानीय अदालत ने एक अंतरिम आदेश के जरिए भोपाल गैस त्रासदी को लेकर लिखी गई एक किताब पर रोक लगा दी है।
इट वाज द फाईव पास्ट मिडनाइट इन भोपाल पर स्थायी रूप से रोक लगाने की मांग को लेकर दायर याचिका की सुनवाई करते हुए अदालत ने अपने अगले आदेश तक के लिए इसके मुद्रण, प्रकाशन, बिक्री और वितरण पर रोक लगा दी।
फ्रींसीसी लेखक डोमिनिक लापियर और जेवियर मोरो की इस किताब का प्रकाशन फुल सर्किल पब्लिकेशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली ने वर्ष 2001 में किया था और यह साल 1984 में हुई भेपाल गैस त्रासदी पर आधारित है।
मध्य प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक स्वराज पुरी ने किताब के कुछ हिस्सों पर एतराज जताते हुए इस पर रोक लगाने के लिए याचिका दायर की थी। इस पर सुनवाई करते हुए अतिरिक्त जिला जज राजीव सिंह ने कल यह आदेश पारित किया।
गैस त्रासदी के समय पुरी भोपाल के पुलिस अधीक्षक थे। उनका कहना है कि किताब के कुछ हिस्सों के अनुसार दुर्घटना के बाद पुलिस की कार्रवाई नकारात्मक थी। इससे उनकी मानहानि होती है।
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Thursday, November 19, 2009

आओ बनाये नकली स्वर्णिम मध्यप्रदेश?????

भोपाल। मध्य प्रदेश में भ्रम की स्थिति है की हम क्या वाकई स्वर्णिम मध्य प्रदेश के सपने को साकार होते देख रहे हैं या मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का भाषण का शानदार हिस्सा है। बहरहाल ये बहस मुझे नही करीं है, क्योंकि भोपाल टीवी जगत के पत्रकार काशीनाथ ने स्वर्णिम मध्य प्रदेश की हकीकत की सही पोल बहुत अच्छे ढंग से दखल पर खोली है।
मध्य प्रदेश को स्वर्णिम प्रदेश बनाना है, इसके वासियों में मध्य प्रदेशी होने का गर्व पैदा करना है, हमारे प्रदेश का एक अपना गीत होगा, अकेले सरकार नहीं जनता को भी प्रदेश की तरक्की से जोडेंगे ये वो बातें हैं जो हमने एक नवम्बर को भोपाल के मोती लाल नेहरु स्टेडियम में मध्य प्रदेश के स्थापना दिवस के कार्य क्रम में सुनी थी और बड़े ही गर्व के साथ हमारे सूबे के सूबेदार शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल सहित पूरे प्रदेश में इस तरह के आयोजन में मौजूद हर प्रदेश वासी को एक शपथ भी राज्यपाल के जरिये दिलाई थी। उसी दिन ये भी कहा गया की इस साल स्थापना दिवस का जलसा एक दिन नहीं पूरे सात दिन चलेगा और जनता को अपना प्रदेश की भावना से ओत प्रोत करके ही दम लिया जायेगा. ये जलसा चल पड़ा पहले दिन की शाम को भोपाल के रविन्द्र भवन के मुक्ताकाशी मंच पर गीतकार शान ने अपना जलवा बिखेर दिया. रॉक एंड डांस और झूमते युवाओं की टोलियों से लगा की अपना मध्य प्रदेश स्वर्णिम बन रहा है. अलग अलग जिलों और संभागों में विकास की तमाम चर्चाएँ भी चलती रही. लोगों में एक भाव आया भी की अपना प्रदेश है और इसकी तरक्की में हम सब जुट जाएँ तो बड़ी मुश्किल भी आसान हो जायेगी. फिर सरकार साथ है तो काम भी शुरु होगा. ६वे दिन की बात है सूबेदार शिवराज सिंह जी सूबे के एक जिले सतना आये विन्ध्य इलाके का ये जिला उद्योग खासकर सीमेंट उद्योग के लिए प्रसिद्ध भी है. सतना में मौका था गरीब उत्थान सम्मलेन का तमाम गरीब इकठ्ठा थे उनको लग रहा था की प्रदेश को स्वर्णिम बनाने का महाभियान चल रहा है.राजा आये है तो आज तो गरीब नहीं गरीबी हटाने की कोई मुहिम या बात होगी जादू का पिटारा भले ही ना खुले जादू की छड़ी तो दिखेगी जो नया रास्ता दिखाएगी हुआ भी कुछ ऐसा ही हमारे शिवराज जी ने हुंकार भरी और कहा की अब ये नहीं चलेगा की जमीन हमारी, खनिज हमारा, प्रदेश हमारा और उद्योग लगाने वाले हमारे मध्य प्रदेशी को रोजगार ना देकर बिहारी या और दुसरे प्रदेश के लोगों को रोजगार दें. यहाँ उद्योग लगोगे तो रोजगार भी यहाँ के लोगों को देना होगा. जनता खुश, सभी को लगा की हमारे मध्य प्रदेश की नई चाल चरित्र और चेहरा होगा. गरीबी भी दूर होगी और रोजगार भी मिलेगा. आज शिव ने अपना रौद्र रूप दिखा दिया है अब जो आड़े आएगा वो भस्म हो जायेगा. शिव की जनता को के हक पर अब कोई डाका नहीं डाल पायेगा. जनता खुश की चलो पहली बार किसी ने अपने प्रदेश वासी होने का एहसास कराया है. बात बड़ी थी और दमदार भी. सो सबकी नजर में आ गई. वाकई ये पहला मौका था जब मध्य प्रदेश में बड़ी चर्चा बनी और लगा की किसी ने ये बीडा उठाया है.( सही या गलत की बहस अभी नहीं करना चाहते और बहस भी लम्बी है. इसको आगे चलाया भी जा सकता है. और मुंबई की घटना के बाद तो और भी जरुरी है.)शिव के शब्द बाण कैमरा ने पकड़ लिए और इस मामले ने दुसरे दिन यानि ७ नवम्बर (स्थापना दिवस सप्ताह का आखरी दिन) को सुबह से टीवी चेनल्स पर हंगामा खडा हो गया. पहला स्लग चला " शिव चले राज की चाल" चेनल्स ने शिवराज सिंह की तुलना राज ठाकरे से करते हुए खबर को उठा दिया. हम पत्रकारों को भी ख़ुशी की चलो आज प्रदेश की खबर और मुख्यमंत्री हर चेनल की हेड लाइन है. खूब चेट और फोनों होने लगे पत्रकार साथी भी बढ़ चढ़ कर हांकने लगे. सरकार सकते में ये क्या हो रहा है. बिहार के नेता भी बाईट देने लगे पक्ष और विपक्ष दोनों तरह की प्रतिक्रिया आने लगी कुल जमा एक तेज हलचल का दिन. लेकिन तभी दोपहर के तीन बजे प्रदेश के ही दुसरे जिले इंदौर में ये क्या हमारे शिवराज जी ने कहा की मेरा कहने का आशय ये नहीं था मध्य प्रदेश के दरवाजे सभी के लिए खुले है. यानि ठीक २४ घंटे के अन्दर मुख्यमंत्री ने अपना कहा पलट दिया. लो अब क्या करोगे चेनल वाले चुप सबको लगा था अच्छा मसाला मिला खूब खेलेंगे. शाम को प्राइम टाइम में भी चेट करेंगे और खेलेंगे. कभी कभी तो मौका आता है जब मध्य प्रदेश से कोई खबर इतनी बिकती है. मुख्यमंत्री ने जो कहा उसको बदल दिया और बात बीत गई. खैर मैं भी मानता हूँ की किसी भाषा, प्रदेश, जाति, बोली और मजहब के नाम पर या का सहारा लेकर किसी भी तरह के विकास की बात संविधान के खिलाफ तो है ही भारत की बहुरंगी बसाहट, जिन्दगी, रिवाज, तासीर के भी खिलाफ है. लेकिन फिर भी मैंने सोचा ये बात तो शिव ने कही थी आम तौर पर ये माना जाता है की शिव ने जो भी कहा या वरदान दिया, उससे वो वापस नहीं हुए फिर चाहे श्रीराम की विरूद्व रावन का मामला हो या भस्मासुर का. शिव ने कह दिया तो कह दिया जो होगा देखेंगे. लेकिन हमारे शिव तो २४ घंटे में ही रण छोड़ कर अलग हो गए. वो तो रण छोड़ निकले. अब जनता परेशान की अपना प्रदेश क्या बनेगा. हुंकार भर कर राजा ही पीछे हो जाये तो प्रजा की क्या बिसात. फिर लगा की इतना भावुक होने की जरुरत नहीं नहीं है. प्रदेश के असली वारिस या बाशिंदे आदिवासी हैं जो अब भी फटेहाल ही हैं उनकी बात तो हो नहीं रही थी, आदिवासी को ये भी मालूम है की स्वर्णिम प्रदेश तो तब था जब उनका राज था और ये बावन गढ़ओ का सूबा हुआ करता था. आज तो इस पर बाहर से आये और दो और तीन पीढी पहले बसे लोगों का प्रदेश है अब स्वर्णिम भी बना तो आदिवासी तक पहुँच पायेगा इसकी उम्मीद भी उसको कम ही है. कोई रण छोडे तो कोई बात नहीं लेकिन मैं तो अपने प्रदेश को स्वर्णिम ही देखना चाहता हूँ और जो बन पड़ेगा करूँगा भी क्यूंकि में सियासतदा तो नहीं इस सूबे का आम आदमी हूँ मेरे कहने और करने में अदला बदली की गुंजाइश कम ही है. मैं दम से कहता हूँ जय मध्य प्रदेश सब आओ मिल कर बनाओ स्वर्णिम और देश.

फ़िर खुली राजनेताओं और प्रशासन के दावो की पोल

भोपाल। मध्य प्रदेश में आमजन के उत्पीड़न की स्थिति सरकार के नियंत्रण से बाहर जा चुकी है। प्रशासन हमेशा की तरह ख़ामोशी की चादर ओड़े हुए है। जबलपुर की एक लोमहर्षक घटना इसका प्रमाण है।
कहाँ खो गई प्रशासन की संवेदनशीलता
कहाँ खो गई प्रशासन की संवेदनशीलताभगवानदेव ईसरानीजबलपुर के मदन महल इलाके में नाले से निकासी पर पड़ोसियों के आपसी विवाद और उसके निदान में पुलिस एवं स्थानीय प्रशासन की उदासीनता व उपेक्षा से क्षुब्ध एक युवक सुनील सेन ने कुल्हाड़ी से अपनी माँ, बहन, दो बेटों और एक भतीजे की हत्या कर दी । एक बुजुर्ग पड़ोसी को भी मार डाला । ऐसी ही लोमहर्षक घटना मुंबई के ठाणे इलाके से सामने आई है । फ्रांसिस गोम्स नाम के इस व्यक्ति ने अपनी पत्नी सहित तीन जवान बेटियों को सात साल तक एक कमरे में इस डर से कैद रखा कि वे घर से बाहर जाएंगी तो उनके साथ दुष्कृत्य हो जाएगा । दोनों घटनाएँ मूलतः प्रशासनिक चूक और उससे उत्पन्न स्थितियों, बल्कि व्यवस्था के प्रति गहरे अविश्वास का ही परिणाम है । इन्हें सिर्फ मानसिक रोगी का कृत्य मानकर या होनी कहकर टालना सत्य से मुँह मोड़ना है। राजनीतिक हस्तक्षेप सहित विभिन्न कारणों से प्रशासनिक संवेदनशीलता में अदालतों में लंबित मामलों की वजह से हर क्षेत्र में अधिकांश अपराधी सजा नहीं पा पाते । अपराधियों में प्रशासन व कानून का डर समाप्त हो जाने का परिणाम आज समाज का हर वर्ग किसी न किसी रूप में भुगत रहा है । जनसमस्याओं के प्रति प्रशासन की असंवेदनशीलता के कारण ही धरने, प्रदर्शनों ने अब चक्काजाम, रेल रोको और शासकीय सम्पत्ति की तोड़फोड़ का रूप ले लिया है । पढ़ी-लिखी और समझदार जमात नक्सलियों की समर्थक होती हम देख रहे हैं । अपराधी तत्वों के हौसले इस हद तक हैं कि पिछले दिनों भोपाल के ही निशातपुरा थाना क्षेत्र में दो टी।आई. सहित आधा दर्जन पुलिसकर्मी अपराधियों के हमले से घायल हुए । पुलिस महानिदेशक के उपस्थित रहते इन्दौर में कंट्रोल रूम प्रभारी को पीट दिया गया । १ अप्रैल २००४ से ३१ दिसम्बर २००७ के दौरान शासकीय अफसरों व कर्मचारियों की मारपीट, उनकी प्रताड़ना के दर्ज मामलों की संख्या ७१२८ है । यदि ये हालात आम जनता के बदल रहे आचरण का संकेत है तो इसके निदान में विलंब घातक हो सकता है । हमें यह मानना होगा कि महिलाओं, बालिकाओं के साथ बलात्कार, व्यभिचार, छोड़छाड़ गंभीर समस्या बन गया है । शासन बालिकाओं की पैदाइश व पोषण से लेकर उनकी शादी और महिलाओं के सुरक्षित प्रसव तक की व्यवस्था कर रहा है, लेकिन आज भी उनके सुरक्षित शौच, सम्मानित जीवन व सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था हम नहीं कर पाए हैं । फ्रांसिस गोम्स की मानसिक स्थिति का अंदाजा इस प्रदेश की कुछ घटनाओं से लगाया जा सकता है, क्योंकि ऐसी ही घटनाएँ और उसके परिणाम कमजोर बुद्धि वाले व्यक्तियों या पीड़ितों के अंतर्मन में घर कर जाती है और गहरे अवसाद का कारण बनती है । सर्वे में ये बात सामने आई है कि कन्या भ्रूण हत्या का एक कारण अगर दहेज और दहेज प्रताड़ना है तो दूसरा बड़ा कारण कानून व्यवस्था की स्थिति भी है, जिसके कारण बालिकाओं के स्वाभिमान की रक्षा करने में माँ-बाप खुद को असमर्थ पाते हैं । प्रदेश में एक समय उम्मीद का आया था, लेकिन तत्कालीन गृहमंत्री की संवेदनशीलता और क्रियाशीलता जब तक रंग लाती, तब तक वे बदल दिए गए । मार्च १९९० में शीतला सहाय ने प्रभावी ढंग से गृहमंत्री के रूप में काम प्रारंभ किया । उन्होंने माना कि वीआईपी ड्यूटी, कानून व्यवस्था तथा मामलों की तफ्तीश एक ही अमले के द्वारा नहीं होना चाहिए । तफ्तीश के अमले को दूसरे कामों में नहीं लगाया जाना चाहिए, ताकि जन-समस्याओं और अपराधों का निराकरण समय पर हो सके । उन्होंने यह साहसकि घोषाा भी की कि थाने में रिपोर्ट लिखी जाना अनिवार्य हो, ताकि अपने-अपने इलाकों में अपराध कम बताने के लिए थाने का स्टाफ आंकड़ों की बाजीगरी न कर सके, लेकिन तीन माह बाद जून १९९० में वे सिंचाई मंत्री बना दिए गए । वर्ष १९९० में बलात्कार के मामलों की संख्या १७०५ थी, जो फरवरी २००८ में बढ़कर १२२३८ हो गई है । दिसम्बर २००३ से जून २००७ तक सामूहिक बलात्कार के १२१७ मामले हुए । इनमें से अवयस्क बालिकाओं के साथ घटे मामले ७२६ थे । यह सब बताने का उद्देश्य प्रशासन की संवेदनशीलता को जाग्रत करना ही है, क्योंकि बिना इसके समस्या का निदान संभव नहीं है । कानून का सम्मान वापस लाने के प्रयास हुए बिना जनता का विश्वास वापस नहीं लाया जा सकता । पुलिस प्रशासन से लेकर सीबीआई तक से आम जनता का विश्वास अकारण नहीं घटा है, वर्तमान संसदीय व्यवस्था और राजनेताओं के प्रति आम जनता में उपेक्षा का भाव बढ़ने की भी ठोस वजहें हैं और उसका परिणाम है राजनेताओं पर जूते-चप्पल फेंकने की घटनाएँ । इसे समय रहते रोकना होगा अन्यथा जनाक्रोश कल क्या रूप लेगा, इसे कोई नहीं बता सकता । कानून व्यवस्था में सुधार हर प्राथमिकता से ऊपर है । प्रदेश की लाडली को लक्ष्मी के साथ सम्मान से जीने का हक भी देना होगा ।
लेखक मध्यप्रदेश विधानसभा के सचिव भगवानदेव ईसरानी हैं

Wednesday, November 11, 2009

सदन से भी क्यों मांगते हो माफ़ी

हिंदू, हिन्दी, हिन्दुश्थान ही रहेगा सबसे ऊँचा
भोपाल। अभी-अभी महाराष्ट्र विधानसभा में फ़िर हंगामा हुआ। अफ़सोस की बात है की ये हंगामा उनके द्वारा ही किया गया, जिन्होंने मंगलवार को विधायक अबू काज़मी के साथ मारपीट की थी। महाराष्ट्र की नवगठित विधानसभा के विशेष सत्र के अंतिम दिन आज विपक्षी शिवसेना व भाजपा के विधायकों ने शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के खिलाफ़ समाजवादी पार्टी विधायक अबू आसिम आजमी की कथित विवादास्पद टिप्पणी को लेकर काफ़ी हंगामा मचाया और अबू आजमी की गिरफ्तारी की मांग की। अब ये लोग
अपने आका बाल ठाकरे को सामने रखकर ख़ुद को जनता के सामने पाक साफ घोषित करना चाहते हैं। अब काग रहे हैं की वे सदन से माफ़ी मांग लेंगे लेकिन अबू काज़मी से माफ़ी नहीं मंगेंगऐ। में तो खटा हबन की सदन से भी क्यों माफ़ी मांग रहे हो। क्योंकि शर्मशार तो सदन को किया था। अबू काज़मी भी कोई ढूढ़ के धुले नही होंगे लेकिन सदन क्यों इन विधायक रूपी गुंडों को सहे।
सुबह के सत्र में शिवसेना विधायक दल के नेता सुभाष देसाई और सदन में विपक्ष के नेता एकनाथ खड़से भाजपा के नेतृत्व में सदस्यों की नारेबाजी और हंगामे के बीच सदन की कार्रवाई तीन बार स्थगित करनी पड़ी. श्री आजमी ने कल कथित रूप से संवाददाताओं से कहा था कि बाल ठाकरे बूढ़े हो चले हैं और बच्चों की तरह बातें करते हैं. श्री आजमी ने यह शिवसेना के मुखपत्र मराठी दैनिक सामना में छपे संपादकी के बारे में पूछने पर यह कथित टिप्पणी की थी. शिवसेना विधायकों ने श्री आजमी का विधान भवन के बाहर घेराव किया था पर श्री आजमी ने ऐसी कोई टिप्पणी करने से इनकार किया था. इसी के बाद आज हंगामा हुआ। दरअसल राज ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र नवर्निमाण सेना (मनसे) ने आज कहा कि वह अपने कृत्य के लिए सदन से माफी मांगेगी न कि समाजवादी पार्टी के नेता अबु आजमी से, जिन पर मनसे विधायकों ने हमला किया था। अब मनसे नेता अतुल सरपोतदार bअडे नैतिक होने का ढोंग कर रहे हैं और कह रहे हैं की , "हम सदन से माफी मांगेगे क्योंकि हमारा इरादा सदन की छवि को धूमिल करने का नहीं था।

Thursday, August 27, 2009

क्या मंत्री के पीऐ की हत्या हुई है?

हाल ही में मध्य प्रदेश के उर्जा मंत्री अनूप मिश्रा के पीए श्रोती की मौत हो गई है। लेकिन कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा ने इसे नैसर्गिक मौत न मानकर एक हत्या माना है। उनके अपने तर्क भी है। दरअसल श्रोती को २१ अगस्त को सामान्य मलेरिया होने पर स्थानीय जेपी अस्पताल में भरती कराया था। उपचार के बाद उन्हें उसी दिन छुट्टी भी दे दी गयी। इसी दिन शाम को उन्हें दोबारा जेपी अस्पताल में भरती कराया गया। डाक्टरों ने उन्हें भर्ती कर लिया और जब जांच की तो श्रोती को पल्सीपरेम मलेरिया बताया। ये भी बताया की पल्सीपरेम मलेरिया की वजह से श्री श्रोती के शरीर का तापमान १०७.२ तक बढ गया। जिसकी वजह से उनकी नसों को फटना बताया। ये बताया की रक्त प्रवाह बढ गया है। केके मिश्रा ने सवाल उठाया है की जब श्री श्रोती की तबीयत इतनी गंभीर थी तो फ़िर उन्हें सीधे निजी अस्पताल में क्यों भर्ती नही कराया और क्यों ख़राब व्यवस्था वाले जेपी अस्पताल में भर्ती किया। उनका कहना है की जरूर दाल में कला है, इसीलिए तो मंत्री ख़ुद पूरे समय मौजूद रहें। इस आरोप के साथ एक बार फ़िर नई बहस छिड़ गई है।

Wednesday, June 3, 2009

बेसहारा हुए शिवराजसिंह चौहान और नरेन्द्रसिंह तोमर

भोपाल। लोकसभा चुनाव में मात खाने के बाद भाजपा का आईटी प्रकोष्ठ निष्क्रिय हो गया है। बड़ी धूम धाम के साथ शुरू किए गए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और अब मुरैना सीट से संसद नरेंद्र सिंह तोमर के ब्लॉग बेसहारा हो गए हैं।
मध्य प्रदेश में भाजपा ने लोकसभा में मात क्या खाई कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर कि वेबसाईट व ब्लॉग बेसहारा हो गए हैं। प्रचार अभियान के दौरान सुचना प्रोद्यिगिकी धूमधाम के बीच आरंभ किए गए। ब्लॉग व वेबसाईट पर एक महीने से अपडेट नही है। ब्लोग्स पर पुराणी पोस्ट धूल खा रही है। और भाजपा को एक वोट देने कि मांग अब भी कायम है।
जीतेगी भाजपा जीतेगा कमल-"केन्द्र में हो भाजपा सरकार, मध्यप्रदेश में चले दो गुनी रफ्तार" ये नारे वेब साईट के मुखमंडल पर अब भी सुशोभित है। जबकि नतीजे सामने आने के बाद भी भाजपा के सुचना प्रोद्यिगिकी प्रकोष्ठ के उन दो हजार आईटी के जानकारों को इन्हे अपडेट करने कि नही सूझी है। जो प्रदेश के प्रचार अभियान में जुटे थे। गौरतलब है कि प्रकोष्ठ में भोपाल में २४ अप्रैल को मुख्यमंत्री के हाथों प्रदेश अध्यक्ष के ब्लॉग और वेब साईट का शुभारंभ तकनीकी तामझाम के साथ कराया था
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का ब्लॉग- http://blog.shivrajsinghchouhan.in/
18 se 26 अप्रैल के बीच हुई कुल 4 पोस्ट
पहली पोस्ट में स्वर्णिम मध्यप्रदेश कि अवधारणा पर चर्चा, दूसरी तरफ़ एक वोट भाजपा को, मध्यप्रदेश 100 कदम विकास कि और। जबकि तीसरी पोस्ट में पीएम -सीएम के चुनाव एक साथ करने कि पैरवी और आखिरी पोस्ट विवेकानंद के व्यक्तित्व पर है।
नरेंद्र सिंह तोमर का ब्लॉग - http://blog.nstomar.in/
28 अप्रैल से 2 मई के बीच कुल 4 पोस्ट
पहली पोस्ट में समाज के हर वर्ग से जुड़ने का संकल्प, दूसरे में मुरैना के चहुंमुखी विकास कि 11 घोषनाये, तीसरी पोस्ट लोकतंत्र के महायज्ञ में वोट कि आहुति परऔर आखरी पोस्ट में मध्यप्रदेश के मतदाताओं को साधुवाद दिया है।

Monday, April 27, 2009

शिवराज, लोधी फंसे

इलाक़े में कम ही दिखने वाले बीजेपी के उम्मीदवार शिवराज सिंह लोधी वैसे जनता के बीच अपनी हरकतों को लेकर बदनाम है उस पर सरकारी इमारतों का चुनाव में इस्तेमाल कर फिर एक नई मुसीबत में फंस गए हैं... लोगों को लगता है कि शिवराज सिंह लोधी वैसे ही एक तो उनके हाल पूछने नहीं आते उस पर लगातार चुनाव आचार संहिता का मखौल उड़ा कर बदनाम हो रहे हैं...आम मतदाताओं को लग रहा है कि मैदान में पिछड़ता देख शिवराज सिंह लोधी ये भूल गए हैं कि क्या उचित है क्या नहीं...
अजीब हरकतों, कार्यकर्ताओं से बदतमीज़ी और लोगों के बीच कमज़ोर जनसम्पर्क को लेकर शिवराज सिंह लोधी की हालत वैसे ही काफ़ी पतली है उस पर वे लगातार आचार संहिता की ग़लतियां करते जा रहे हैं... अगर यही हाल रहा तो शिवराज सिंह लोधी को कोई करिश्मा ही बचा सकता है

भूपेन्द्र की बुरी स्थिती

मध्य प्रदेश बीजेपी के नेता भूपेंद्र सिंह पिछला विधानसभा चुनाव हार चुके हैं... लेकिन कुर्सी की चाहत है कि पूरी नहीं होती... अबकी बार नज़रें सांसद की कुर्सी पर टिकी हैं... इसलिये विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त भुलाकर एक बार फिर लोगों से वोट माँग रहे हैं... बीजेपी के प्रत्याशी बनकर मैदान में उतरे भूपेंद्र सिंह शायद ये भूल रहे हैं कि सागर की जिस जनता ने उन्हें पाँच महीने पहले हार का स्वाद चखाया था... वही जनता उनके पिछले कारनामों के लिए उन्हें आसानी से माफ नहीं करेगी... क्योंकि ये वही भूपेंद्र सिंह हैं... जिन पर अपनों को फायदा पहुँचाने के आरोप हैं... ये वही भूपेंद्र सिंह हैं... जिनके परिवार पर एक पुलिस अधिकारी की हत्या का आरोप है... जी हाँ भूपेंद्र सिंह के भतीजे पर ये आरोप है कि उसने एसआई मदन दुबे की हत्या की है... इस वारदात के बाद जहाँ ब्राह्मण मतदाताओं ने भूपेंद्र सिंह से दूरी बना ली है... तो शहरी लोगों का भरोसा भी भूपेंद्र सिंह जीत नहीं पाये हैं...

दो बार विधायक का चुनाव हार चुके भूपेंद्र सिंह के पास शायद इस बात का जवाब भी नहीं होगा... कि इस बार आखिर किस बूते वे इलाके की जनता के सामने हाथ पसार रहे हैं... क्योंकि भूपेंद्र सिंह से पहले सागर के सांसद रहे बीजेपी लीडर वीरेंद्र सिंह की छवि भी बेहद खराब रही है... ऊपर से पार्टी के भीतर भी भूपेंद्र सिंह को लेकर विरोध के स्वर सुनाई देने के बाद... पार्टी से टिकट लेने के बावजूद भूपेंद्र सिंह की मुश्किलें बेहद बढ़ी हुई हैं... आखिर लोगों को भी तो हक है... अपना नुमाइंदा चुनने से पहले उसे परखने का... अब भूपेंद्र सिंह उस पर खरे नहीं उतरते... तो इसका खामियाजा तो उन्हें भुगतना ही पड़ेगा...

Sunday, April 19, 2009

और कितना गिरोगे भाई?

"ये वाकया तब का है जब जॉर्ज बुश भारत आया था। उसके स्वागत में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 40-50 लोगों को रात्रिभोज में बुलाया था। मुझे भी बुलावा आया था। मैं गया लेकिन छाती पर एक बैज लगाकर, उसपर लिखा था खून के बदले तेल नहीं मिलेगा। मेरे वहां ऐसे जाते ही प्रधानमंत्री ने जॉर्ज को कहीं और ले जाना चाहा लेकिन मैंने वहीं से जॉर्ज बुश की तरफ बोलते हुए डांटना शुरु कर दिया। ये देख कर जॉर्ज बुश थर्र-थर्र कांपने लगा। बुश को अभी किसी पत्रकार ने जूता मारा है, मैं तो ......." ये कहना है शाहिद सिद्दीकी का। सालों तक एसपी का दामन थामे बैठे शाहिद सिद्दीकी इस बार बिजनौर लोकसभा सीट से बीएसपी के उम्मीदवार हैं। वोटर्स को रिझाने के लिए नेता कितनी मूर्खतापूर्ण बातें कर सकते हैं इस घटना से साफ ज़ाहिर होता है। सिद्दीकी साहब ने ये बात बिजनौर में अपने संबोधन के दौरान कही। अब आप सोच रहे होंगे कि भला बिजनौर लोकसभा सीट में चुनाव प्रचार हो रहा है तो जॉर्ज बुश का इससे क्या सम्बन्ध? तो जनाब इसमें गहरा सम्बन्ध है। दरअसल सिद्दीका साहब को पता है कि जनता है चुनावी दावों और वादों पर यकीन करना छोड़ दिया है। ऐसे में उन्होंने एक ऐसा तीर छोड़ा जिससे मतदाता का दिल भी घायल हो जाए और विपक्ष के दिल में भी चुभन पैदा हो। इस चुनावी तीर को चुनाव प्रचार मैनुअल में ब्ह्रास्त्र कहते हैं। जी हां, किसी की धार्मिक भावना पर चोट करना। सिद्दीकी साहब बिजनौर में मुस्लिम बहुल इलाके में जनसभा को संबोधित कर रहे थे। अमेरिका के इराक और अफगानिस्तान पर हमला करने को सिद्दीकी भुनान चाहते थे। वो उपरोक्त घटना का जिक्र करके बिजनौर के मुसलमानों को बताना चाह रहे थे कि इराक और अफगानिस्तान के मुस्लिमों के साथ अन्याय करने वाले जॉर्ज को उन्होंने दिल्ली में अपमानित कर दिया। वाह री राजनीति, तू भी क्या-क्या करवाती है। खैर इतना ही होता तो बाद अलग थी। इसे एक चुटकी समझकर नज़रअंदाज़ किया जा सकता था। लेकिन इसके बाद सिद्दीकी ने वही राग छेड़ दिया जिसे आज हर कोई गा रहा है। सिद्दीकी ने मेरठ के दंगों और अक्टूबर 1990 में हुए बिजनौर के दंगों का जिक्र छेड़कर एक बार फिर जनता के ज़ख्मों को कुरेदा। साथ ही उन्होंने बिजनौर दंगों के लिए मुलायम सिंह यादव को जिम्मेदार ठहराया। लेकिन जाने क्यों सिद्दीकी साहब ये क्यों भूल गए कि वह खुद सालों तक मुलायम के साथ बने रहे हैं। फिर आज क्यो उनको एकाएक ये ध्यान हो आया? उन्होंने मुलायम-कल्याण पर लाशों के ढेर पर राजनीति करने का भी आरोप लगाया। यही नहीं उन्होंने वरुण गांधी के भड़काऊ भाषण के अंशों का इस्तेमाल किया। यानि पूरा भाषण मुद्दों पर कम भावनाओं पर चोट करने पर ज्यादा केंद्रित रहा। भले ही सिद्दीकी ने अपने तीर से जॉर्ज बुश को साध रखा हो लेकिन उनका असली निशाना वोटर ही है। यही वजह है कि अपने मुंह मियां मिट्ठु बनने से साथ ही उन्होंने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति से साथ भारत के प्रधानमंत्री को भी अपने सामने बौना साबित कर दिया। क्यों नहीं ऐसे नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की जाती। कहां है देश की लाखों माओं का दर्द समझने वाली मायावती जिसे राहुल गांधी के भाषण के बाद तो तो रासुका लगाने की ज़रूरत पड़ती है लेकिन अपनी पार्टी के नेताओं के मुंह से निकलता ज़हर दिखाई नहीं देता। जिन-जिन बाहुबलियों को माया ने टिकट दिया है जाने आज तक वो कितनी मांओं की गोद सूनी कर चुके हैं।

Friday, April 3, 2009

अंधविश्वास की पराकाष्ठा...

हालांकि ये एक राजनैतिक ब्लॉग है लेकिन फिर भी मैं खुद को यहां पर इस वाकये को पोस्ट करने से नहीं रोक पा रहा। एक ऐसी घटना ने विचलित कर दिया है जिसे आपके साथ बांटना चाहता हूं। ये घटना है मध्यप्रदेश के पन्ना ज़िले से....जहां एक युवक ने नवरात्रि के आख़िरी दिन ख़ुद की बलि दे दी.....युवक ने माता के मंदिर परिसर में हंसिए से अपनी गर्दन काट ली और अपनी बलि दे दी....यहां के लोग अंधविश्वास से किस कदर जकड़े हुए हैं....इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक ओर युवक ये सब कर रहा था....और दूसरी ओर मंदिर परिसर में मौजूद लोग माता की जय-जयकार करके उस युवक को अपनी गर्दन काटने को प्रोत्साहित कर रहे थे. युवक का नाम कृष्णा कुशवाहा है....और ये ख़ुद को  दुर्गा मां का परम भक्त बताता था....बुंदेलखंड के इस इलाके में ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि के दौरान जो कुछ भी भक्त माता को जो अर्पित करते हैं......माता उसे वो वापस लौटा देती है.....वैसे तो इस इलाके में पहले भी जीभ अर्पित करने की परंपरा देखी गई है.....कृष्णा ने नवरात्रि में सभी दिन की उपवास किया था....और कल नवमी के दिन उसने माता को अपनी जीभ की जगह अपना सिर अर्पित करने का फैसला किया.....चश्मदीदों की मानें तो कृष्णा ने ख़ुद के द्वारा पुरुषोत्तमपुर की पहाड़ी पर बनाए गए मंदिर में पहुंचा....और मंदिर परिसर के पेड़ पर चढ़ गया....और फिर वहां उसने हंसिये को तार से बांधा...और उस पर अपनी गर्दन को दे मारा.....और फिर क्या था....गर्दन को हंसिये पर मारते ही वो तड़पता हुआ पेड़ से गिर गया.....खास बात ये है कि मंदिर में पहले से ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे....और वो भजन कीर्तन कर रहे थे.....इन लोगों ने भी कृष्णा को रोकने की कोशिश नहीं बल्कि उन लोगों ने कृष्णा को और प्रोत्साहित किया....ये पूरी घटना कितनी दर्दनाक है...अंधविश्वास का ऐसा नमूना शायद ही आपने कभी देखा हो...किस तरह अंधविश्वास में पड़ कर कृष्णा ने ख़ुद की बलि दे दी। घटना की सूचना के बाद पुलिस मौके पर पहुंची ज़रूर....लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी.। मेरे पास इस घटना की तस्वीरें भी हैं लेकिन वो इतनी विभीत्स हैं कि आपको विचलित कर सकती हैं। इसलिए मैं उन्हे यहां प्रदर्शित करना उचित नहीं समझता। वैसे तो मध्यप्रदेश सरकार लोगों के अंधविश्वास को खत्म करने के उपाय करने के दावे करती रहती है....लेकिन इस घटना ने एक बार फिर इन दावों को खोखला साबित कर दिया है....

अब बताईए, दुनिया कहां की कहां पहुंच गई और ये लोग किन बेड़ियों में जकड़े हुए हैं। इसे अंधविश्वास की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या कहेंगे। ये श्रद्धा है या मूर्खता...? इन जड़बुद्धि लोगों को न तो समझाया जा सकता है और न ही इनमें जागृति लाई जा सकती है। ऐसे लोगों का एक ही इलाज है, वो ये कि ये सभी इसी तरह से अंधविश्वास में सामूहिक रूप से अपनी बलि दे दें। कम से कम इन जैसे कलंक तो मिटेंगे देश से। इन्ही लोगों की वजह से आज दुनिया भर में भारत को हेय दृष्टि से देखा जाता है।
-आदर्श राठौर

आचार संहिता नहीं रोकती विकास कार्य

Friday, February 13, 2009

शिवराज नहीं थाम पा रहे हैं दलाली का रथ

ये बडी विचित्र स्थिति है कि जब पूरे प्रदेश की जनता अपने मुखिया को गरम तवे बैठकर ईमानदार मानने को तैयार है, इसके बावजूद उनके मुखिया अपनी जनता के हितों के मंत्रियों के हितों पर ज्‍यादा ध्‍यान दे रहे हैं। या कहें कि वे मंत्रियों की तरफ भ्रष्‍टाचार करने पर बिल्‍कुल ध्‍यान नहीं दे रहे हैं फिर चाहे मंत्री कितना ही भ्रष्‍ट क्‍यों न हो। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से प्रदेश की साढे छह करोड जनता को बडी आशाएं हैं। वह भी तब जब शिवराज दोबारा मुख्‍यमंत्री बने। ये अलग बात है कि इस चुनाव में कांग्रेस ने हार को जीत में बदलने के लिए कुछ भी नहीं किया। जबकि प्रदेश में भाजपा के मंत्रियों द्वारा किए गए भ्रष्‍टाचार से कौन त्रस्‍त नहीं था। खैर ये अलग विषय है।
मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दूसरी पारी के कुछ पहले और अब जो कुछ कर रहे है, उसमें गाँव की मिट्टी तथा आम आदमी के पसीने की गंध की बजाय कारपोरेट और डिजाइनर नेताओं की गंध आ रही है उन्‍होंने अभी अपने मंत्रियों की राजनितिक-प्रशासनिक क्षमता और दक्षता को परखने के लिए पचमढ़ी में शिविर आयोजित किया शिवराज सिंह चौहान बताये कि वे राजनीति में तीस साल से है क्या इससे पहले उन्‍होंने कोई राजनीति की पाठशाला ज्वाइन की थी? लालू यादव और लाल कृष्ण आडवानी आईआईएम से पढ़े हुए है ? नही फ़िर यह चोचलेबाजी क्यों ? दरअसल ये कवायद वे लोग करते हैं , जो पांच सितारा होटल्स और कारपोरेट हाउसेस की दल्लागिरी करके राजनीति में आते हैं या राजनीति से दल्लागिरी करते हैं चुनाव पूर्व हुई भोपाल की रैली हो या चुनाव के ठीक बाद मुख्‍यमंत्री शपथ ग्रहण समारोह , सबमे करोडो रुपए फूंके गए क्या इन आयोजनों पर सरकारी अथवा पार्टी फंड से खर्च हुआ ? नही ! इन आयोजनों पर दलालों ने खर्च किया, जो कि शिवराज सिंह चौहान की ईमानदारी पर सवालिया निशान लगाती है। भाई प्रदेश की मुख्‍यमंत्री पर ऐतबार करती है तो उनकी जिम्मेदारी पुरे तंत्र को भष्टाचार मुक्त बनाने की हैं इसकी शुरुआत योजनाओं के मूल से होना चाहिए अफसर, राजनेता, ठेकेदार और बिचोलियों का गठजोड़ नई योजनाओ - पालिसियों पर कड़ी नजर रखता है
यह चिंतनीय और शोभनीय है। शिवराज सिंह चौहान भली भांति जानते है कि कौन भ्रष्ट है और कौन दलाल हैं , फ़िर भी वे मौन क्यों हैं? क्या संघ के कतिपय मठाधीशों के हस्तिनापुर से आप बंधे हुए हैं? अगर हां तो कोई बात नही अगर नही तो मुख्‍यमंत्री को सफाई अभियान चलाना चाहिए।

Saturday, February 7, 2009

विदेश नीति नहीं अमेरिका नीति कहिए महाराज...

जी हां, पाकिस्तान में इन दिनों यही नारे लग रह हैं। भारत के विदेश मंत्री प्रणब जिस तरह से रोज़ एक ही तरह की बयानबाज़ी कर रहे हैं उससे पाकिस्तान के आतंकी और षडयंत्रकारी बहुत खुश हैं। प्रणब कहीं से भी आते हैं, कुछ भी करते हैं और मीडिया उनके सामने आ जाए तो बिना सवाल पूछे ही बोलना शुरु कर देते हैं, पाकिस्तान हल्के में न ले, हमारे पास सभी विकल्प खुले हैं, पाकिस्तान ने कार्रवाई नहीं की है, उसे फ्लां करना होगा, नहीं तो ये ...वो ..............................। भारत सबूत देने की बात तो कहता है लेकिन अब तक पेश किए गए सबूत पाकिस्तान को दोषी ठहराए जाने के लिए नाकाफी हैं। भारत की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस वजह से किरकरी हो चुकी है। अगर इस बार भारत नाकाम रहा तो विश्व समुदाय को भरोसे में लेना काफी मुश्किल हो जाएगा। सीधे सपाट लहजे में कहा जाए तो एक बात साफ हो जाती है कि हम एक अक्षम और लापरवाह देश हैं। बिना प्रायोगिक साक्ष्यों के प्रणब की बयानबाज़ी साफ कर रही है भारत के पास अब कुछ भी नहीं बचा है। भारत पाकिस्तान के खिलाफ कोई कदम भी नहीं उठा सकता। भारत की अमेरिका परस्त नीति उसे कभी ऐसा करने की इजाज़त नहीं देगी। भारत कोई भी काम करने से पहले अमेरिका से अनुमति लेता है। ऐसे में साफ है कि अमेरिका कभी पाकिस्तान पर कार्रवाई करने की अनुमति नहीं देगा।
हम कहने को तो संप्रभु राष्ट्र में रहते हैं लेकिन हकीकत ये है कि हमारी संप्रभुता अमेरिका के पास गिरवी पड़ी है। ऐसे में हमारे नेता बयानबाज़ी के अलावा और कुछ कर भी नहीं सकते।

Friday, February 6, 2009

मध्‍यप्रदेश में सेक्‍स का तडका-एक दलाल की जुबानी

मध्‍यप्रदेश की छवि शांत प्रदेश के रूप में होती है, लेकिन जबलपुर और भोपाल में एक के बाद एक पकडे गए सेक्‍सरैकेट इसकी तस्‍वीर बदल रहे हैं। यहां राजनीति के साथ फलफूल रहा है देह-व्‍यापार। इसके लिए जिम्‍मेदार कौन है यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है। लेकिन इतना तय है कि यह व्‍यापार राजधानी के साथ पूरे भोपाल की फिजा को बिगाड रहा है। देह-व्‍यापार के एक दलाल ने स्‍वयं मुझे पूरा हाल सुनाया जब वह इंटरसिटी इंदौर से भोपाल आ रहा था। उसने बताया कि स्थिति यह है कि एक कोड नंबर लो, मनपसंद साथी पाओ और ऐश करो। न पुलिस का खौफ, न जगह की चिंता। देह व्यापार के दलालों और कॉलगर्ल के रहस्यमयी संसार में झांकने की एक कोशिश॥
कोड नंबर लो, मनपसंद साथी पाओ
कितने भी दावे किए जाएं लेकिन शहर में देह बेचने का धंधा फलफूल रहा है, दलाल नए-नए रास्ते निकाल पुलिस-प्रशासन की नाक में दम किए हुए हैं। नए तरीके के रूप में दलालों ने ग्राहकों को कोड नंबर जारी किए हैं। मोबाइल पर कोड नंबर बताइए और बस सौदा पटा। वांछित जगह पर कॉलगर्ल आपको मिल जाएगी। पूरा धंधा इतने व्यवस्थित तरीके से जारी है कि कोड नंबर देकर किसी मॉल या शापिंग सेंटर के बाहर से कॉलगर्ल और ग्राहक किसी आम युवा साथी की तरह पुलिस के सामने से ही हाथ में हाथ डाले निकल जाएंगे।

देह बैंक-कमसिन लड़कियों की डिमांड
भोपाल पुलिस द्वारा की गई एक छानबीन से पता चला कि जबलपुर, इंदौर, ग्‍वालियर और मुंबई के दलालों के बीच देह व्यापार का पूरा बैंक ही चलता है। ना सिर्फ ये अपने डाटा का आदान-प्रदान करते हैं बल्कि एक-दूसरे को कॉलगर्ल की सप्लाई भी करते हैं। सेक्स रैकेट को चलाने के लिए दलाल अन्य राज्यों में जाकर वहां मौजूद दलालों के माध्यम से कमसिन और खूबसूरत लड़कियों को लाते हैं। इसका खुलासा दलाल राजू (बदला हुआ नाम) से हुआ, इसने जबलपुर स्थित दलाल के पास से कुछ युवतियों को लाया था। शहर से भी बाहर भी इन लड़कियों की सप्लाई की जाती है। राजू ने बताया कि शहर में शौकीन लोगों में कमसिन लड़कियों की सबसे ज्यादा डिमांड है। इनके लिए ग्राहक ज्यादा से ज्यादा रुपए देने को तैयार रहते हैं। इन्हीं शौकीनों के लिए हमें कम उम्र की लड़कियों की दूर-दूर तक जाकर खोज करनी पड़ती है।

दलाल नेटवर्क-लाख की चोखी कमाई
जबलपुर का दलाल मुंबई से लेकर इंदौर तक या अन्य राज्यों में चल रहे देह व्यापार के धंधों में शामिल होता है। इनसे मिलाकर पूरा नेटवर्क बनाता है। इसका हिस्सा हुए बिना कोई यहां धंधा नहीं कर सकता है। एक अन्य दलाल बाबू ने बताया। हम बंगाल से एक महीने में कॉन्ट्राक्ट पर एक युवती को 50 हजार रुपए में लाते हैं और अगर लड़की देखने में सुंदर व कमसिन है तो कीमत भी बढ़कर 1 लाख हो जाती है। उनकी कमाई भी चोखी होती है हमें भी ठीक-ठाक सा पैसा मिल जाता है। कई बार इन लड़कियों की नुमाइश भी की जाती है ताकि कद्रदान इनमें से अपनी पसंद की चुन सके, हां ऐसे मामलों में कीमत जरूर डबल हो जाती है।

नाइट पार्टी-एसएमएस से सूचना
बाबू ने बताया कि दलालों का अलग-अलग शहरों में अलग-अलग फ्लैट रहता है, जहां पर इन युवतियों को रखते हैं। प्रत्येक दलाल मोबाइल या फोन से अपने आकाओं से जुड़ा रहता है। नई लड़कियों के बाजार में आ जाने पर ये हम अपने पुराने ग्राहकों को एसएसएस के जरिए तत्काल सूचित कर देते हैं। इसके बाद ग्राहक अपने अनुसार नाइट पार्टी का आयोजन करता है। ये नाइट पार्टियां भी इन लड़कियों की नुमाइश का जरिया होती हैं। वहां भी कई कद्रदान आते हैं, जिसे चाहो चुनो। एक युवती के लिए दलाल को 1 लाख रुपए मिला, जबकि कॉलगर्ल के रेट अलग होते हैं। लड़की एक दिन में पांच से छ प्रोग्राम करती हैं। इसका उसे प्रतिदिन के हिसाब से 5 हजार रुपया अलग से मिलता, उसके खाने-पीने और अन्य खर्चे के लिए मिलते हैं। हालांकि है तो ये महंगा धंधा लेकिन शहर के शौकीनों के लिए तो कुछ भी नहीं है।

पता नहीं क्या-क्या करना पड़ता है
बाहर राज्य से आई कॉलगर्ल अपना असली पहचान कभी नहीं बताती हैं। एक कॉलगर्ल से मिलने के बाद उसने अपना नाम काजल बताया और कहा कि हमारे देश में बहुत भुखमरी है। हमें परिवार का भरण-पोषण करने के लिए मजबूरन इस धंधे में आना पड़ा। उसने बताया कि मैं पहले कोलकता से मुंबई और मुंबई से अहमदाबाद गई थी और फिर मध्‍यप्रदेश आ गई क्‍योंकि यहां पकडे जाने का डर कम होता है। काजल ने इंदौर के लोगों का गुणगान करते हुए कहा कल तक उसे जहां 100 रूपए मिलते थे अब वहीं लोग खुश होकर 500 रूपए दे देते हैं। उसने अपनी व्यथा बताते हुए कहा दलालों के मनमानी पैसा लेने के बाद ग्राहक भी अपना पैसा उसके साथ हर ढंग का काम करके वसूल करना चाहते हैं, यहां तक कि उसे ओरल सेक्स, मसाज के साथ सभी सेवाएं देनी पड़ती हैं।

हर सप्ताह चाहिए नया माल : दलाल
इस नेटवर्क को चलाने वाला राजू इंदौरी (बदला हुआ नाम) ने बताया कि, सर मंदी की क्या बात करते हो, यहां तो हर सप्ताह नए माल की डिमांड करने वाले ग्राहकों की संख्या बहुत है। सूरत में लगभग 60 से 70 दलाल सक्रिय हैं, जो मोबाइल के माध्यम से धंधे को चलाते हैं। उसने बताया कि इंदौर के कपडा बाजार और भोपाल के पुराने स्थित कई व्‍यापारी के कुछ ग्राहक हमारे नियमित ग्राहक हैं। उसने बताया कि खुले रूप से यह धंधा भले ही बंद हो गया हो लेकिन आज भी इंदौर में रूपवान सुंदरियों का मिलना कोई मुश्किल नहीं है। अब तो ग्राहक भी होशियार हो गए हैं। वे अब एक दलाल का नंबर नहीं बल्कि कई दलालों का नंबर अपने पास रखते हैं।

Wednesday, February 4, 2009

राजनीति के खेल में मिलेगी पप्‍पुओं को जगह

बहुत दिनों से सोच रहा थाक‍ि राजनीति के बारे में अपने विचारों को व्‍यक्‍त करुं लेकिन ऐसा हो न सका । फिर आज नया दिन निकला नया विचार आया और मैंने राजनीति इन दिनों के नाम से एक नया ब्‍लॉग बना दिया। चूंकि माहौल लोक सभा चुनाव का है तो बात की जाए देश्‍ा यानि भारत की राजनीति की। पूरे देश्‍ा में राजनीति की चर्चा है यह सही है लेकिन उस पूरी चर्चा में सबसे ज्‍यादा जो मुझे आकर्षित कर रही है वह है पप्‍पुओं को राजनीति में मौका देने की बात। हालांकि इस समय देश में कांग्रेस और समाजवादी गठबंधन टूटने और कल्‍याण सिंह के भाषण की सबसे ज्‍यादा चर्चा है। क्‍योंकि यही दो मसले ऐसे हैं जिनका आने वाले लोकसभा चुनाव में सबसे ज्‍यादा होने वाला है। फिलहाल मेरे इस नये नवेले लेख की हैडिंग है उसके अनुसार में हम पास और फेल की बात कर रहे हैं। इस समय कौन पास होगा और कौन नहीं इसका अंदाजा लगाना काफी मुश्किल है, लेकिन इतना तय करना कतई मुश्किल नहीं है कि आने वाले चुनावों से देश की राजनीति और भविष्‍य को नई धारा व नई दिशा मिलेगी। इसका सबसे बडा कारण है पप्‍पुओं को प्राथमिकता से मौका दिया जाना। कांग्रेस अपने पप्‍पु राहुल गांधी जो कि गांधी नाम पर तेजी से आगे बढ् रहे हैं। जैसे कि भाजपा राम के नाम पर आगे बढती रही है। खैर ये हम युवाओं के लिए तो बेहतर अवसर ही होगा जब देश में एक साथ वाकई युवा नेता देखने को मिलेगे (अगर बूढे पप्‍पुओं को दिक्‍कत न हुई तो)। इस राह में बढे धोखे हैं लेकिन उम्‍मीद पर दुनिया कायम है।
आज ज्‍यादा नहीं लिखुंगा क्‍योंकि मामला राजनीति का है और इसलिए मुझे थोडा अध्‍धयन करना होगा और सभी ब्‍लॉगर बंधुओं से आशा है कि उन्‍हें मेरे ब्‍लॉग में जो आपत्ति होंगी वे उसे मुझे जरूर बताएंगे और राजनीति के बारे में लिखने में मेरी मदद करेंगे।
-भीमसिंह मीणा

क्या सच में मप्र पुलिस इतनी साहसी हो गई कि एक सत्ताधारी दल के मंत्री पुत्र को बेल्ट से पीट सके?

  क्या सच में मप्र पुलिस इतनी साहसी हो गई कि एक सत्ताधारी दल के मंत्री पुत्र को बेल्ट से पीट सके? अब तक तो यकीन नहीं हो रहा था, लेकिन खबर दै...