Wednesday, September 13, 2017

यह विज्ञापन क्या सिखा रहा है।

अभी पिछले *कुछ दिनों से टी वी के सभी चैंनलों पर Axis bank के होम फाइनेंस का विज्ञापन दिखाया जा रहा है।*जिसमे एक कार में माँ बेटा बैठे हुए आपस मे बात कर रहे है, जिसमे माँ बेटे से उसकी शादी के पहले ही अलग मकान लेने कह रही है, बेटा वजह पूछता है तो माँ कहती है कि बहु आएगी तो उसे एडजस्ट करने में दिक्कत होगी, टोका टोकी होगी, इससे अच्छा तुम अभी से नया घर ले लो । और वह आज्ञाकारी बेटा तुरंत माँ की बात मान लेता है । *अब प्रश्न ये है कि यह विज्ञापन क्या संदेश दे रहा है समाज को ? ऐसे विज्ञापनों के द्वारा हमारे भारतीय संस्कृति और मूल्यों पर करारी चोट की जा रही है।* हर माँ बाप का सपना होता है कि बेटा जब बड़ा होगा तब शादी करके बहु को घर मे लाएंगे, बहुरानी का स्वागत करेंगे, समयानुसार जब नाती पोते होंगे तो उनकी खिलखिलाहट से घर गूंजेगा । दादा दादी की पदवी मिलेगी । पर *इस विज्ञापन के धूर्त संदेश से युवाओं को माँ बाप से दूर करने की शिक्षा दी जा रही है । लानत है ऐसे बैंक और उन एडवरटाइजिंग एजेंसी पर जो हमारे पारिवारिक संस्कारों और मूल्यों पर चोट कर रहे है । इन्हें तुरंत बंद करना चाहिए।*,,,आप सभी इसका विरोध करे । और अधिक से अधिक share कर जनजागृति लाए।

Wednesday, June 7, 2017

पुत्र के राज में पितातुल्य किसानों पर गोलीचालन

सुना था सत्ता के लिए मुगल सम्राट ने अपनों का कत्ल कर दिया था। लेकिन  कलयुग में किसान के बेटे ने अपने पितातुल्य किसानों पर ही गोली चलवा दी। इसके बाद सरकार के गृहमंत्री द्वारा पुलिस गोलीचालन से मुकरना, आंदोलनकारी किसानों को विराेधियों द्वारा भड़काना तथा उन्हें असामाजिक तत्व करार देना आश्चर्यजनक है। फिर सरकार के मुखिया द्वारा मृत किसानों के परिजनों को एक करोड़ रुपए तथा घायलों को पांच लाख रुपए की सहायता देना भी अचंभित करता है। यह राज्य सरकार की अक्षमता, अदूरदर्शिता, अज्ञानता और अति भयभीत होने का प्रमाण है। जब आंदोलनकारी किसान नहीं थे तो कौन थे? गोली पुलिस ने नहीं तो किसने चलाई? अगर पुलिस की गोली से किसान नहीं मरे तो फिर इतना मुआवजा देने का क्या औचित्य है? सरकार के मुखिया और उसके गृहमंत्री द्वारा अटपटे बयान देने से जाहिर है कि शिवराज सरकार कितनी अपरिपक्व है। सरकार की असंवेदनशीलता का इससे बड़ा नमूना क्या होगा कि आंदोलनकारियों से सरकार के किसी भी नुमांइदे ने बात करने की कोशिश नहीं की। आंदोलन को विफल करने के लिए आरएसएस से जुड़े भारतीय किसान संघ से आंदोलन स्थगित कराने का बयान दिलवाया। जबकि संघ का इस आंदोलन से कोई सरोकार नहीं है। एक तरह से मंदसौर की घटना ने एक बार फिर पुलिस के खुफियातंत्र की कलई खोलकर रख दी है। प्रदेश के मालवांचल में पिछले चार-पांच दिन में असंतोष धधक रहा था, लेकिन शिवराज सरकार के चारण-भाट उन्हें हकीकत बताने की बजाए सख्ती से पेश आने, विरोधियों पर वार करने तथा किसान आंदोलन में असामाजिक तत्वों के घुसने की जानकारी देते रहे। जब यह ज्वालामुखी फट गया तब एक दशक से सत्ता के सिंहासन पर काबिज शख्स की हकीकत भी सामने आ गई कि उनका जनता से कितना संवाद है। खुद को किसान और किसान पुत्र कहलाने वाला कर्णधार अपने भाई-बंधुओं से ही कितना दूर है, यह घटना इसका प्रमाण है। किसान के घर में क्या खिचड़ी पक रही है। इस बात से ही उसका बेटा अनभिज्ञ रहा तो इसमें दोष किसका है। बेटे का या भाई-बंधुओं का। एक किसान बेटे के राज में उसके अपने ही मार-गिराए जाए तो क्या जाए? इस धरना से एक बार मुगल तानाशाह औरंगजेब के कारनामों की याद ताजा हो गई, जिसने अपने बड़े भाई का कत्ल कर पिता को आजीवन बंदी बनाकर रखा था। 
वैसे तो दोनों में कोई समानता नहीं है, क्योंकि आैरंगजेब बहुत क्रूर शासक था और शिवराज बहुत ही कमजोर शासक हैं।
- भीम सिंह मीणा, पत्रकार