Sunday, October 19, 2014

ये सिर्फ मोदी की जीत नहीं है, बल्कि वंशावली की भी हार है


http://nazariyaa.files.wordpress.com/2012/08/namfrel-v2n14-dynasty.jpgएक बार फिर देश में मोदी-मोदी के नारे लग रहे थे। मोदी मैजिक चल गया था। एक्जिट पोल भी जीत ही गया। तमाम दावे हकीकत में बदल गए। लेकिन यह बदलाव हुआ कैसे। मई से लेकर अक्टूबर तक मोदी की आंधी ने सुनामी का रूप ले लिया है और वो जो कहते थे कि इस देश से कांग्रेस को खत्म करना है तो अब कुछ वैसा ही हो रहा है। लोकसभा चुनाव से लेकर अब कई बातें ऐसी हैं जो गौर करने लायक है। इनमें मोदी का काम करने वाला रुख जनता को बेहद पसंद आ रहा है। ऐसा भी नहीं है कि मोदी ने देश को बहुत ज्यादा बदल दिया है, लेकिन लोगों को यह अहसास दिला दिया है कि अब बदलाव हो रहा है। कल जब डीजल को सरकारी नियंत्रण से मुक्त किया तो कई लोगों ने कहा कि यह कदम महाराष्ट्र-हरियाणा चुनाव से पहले लेना चाहिए था। तब शायद इस चुनाव में ज्यादा फायदा मिलता है। लेकिन यदि वे ऐसा करते तो इस कम कीमत को चुनाव से जोड़कर देखा जाता। हालांकि कीमतें घटने की घटना का इस चुनाव से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन एक महत्वपूर्ण बात जो कि तमाम बातों से अलग है कि मोदी ने अपने पूरे चुनाव प्रचार के दौरान वंशवाद के खिलाफ नारा बुलंद किया है और इस कदम को आम जनता में बहुत ज्यादा पसंद किया जा रहा है। इसकी वजह है कि लोग वाकई शासक नहीं सेवक चाहते हैं। दरअसल वंशवाद ऐसी बीमारी है जो देश के प्रत्येक राजनीतिक दल तक पहुंच गई है और भाजपा भी अब इसकी चपेट में आने लगी थी। लेकिन मोदी ने न केवल इसे रोका बल्कि मुक्ति दिलाने जैसा काम किया है। वरना तो हरियाणा जैसे छोटे प्रदेश एक दो परिवार की निजी जायदाद बन गए थे। इसी प्रकार पंजाब, उत्तर प्रदेश और बिहार भी वंशवाद की चपेट में हैं। महाराष्ट्र में माहौल कुछ ऐसा ही है। राज ठाकरे अलग हो गए, क्योंकि बाला साहेब ठाकरे की विरासत संभालने के लिए उद्ध्व ने स्वयं को आगे कर दिया था। इसके बाद राज ठाकरे अलग हो गए और एक अन्य पार्टी बनाकर देश में राजनीति करने का सपना देखा। अब उद्धव ने अपने बेटे को आगे करना चाहा। यहां तक की मुख्यमंत्री बनने की चाहत में उन्होंने भाजपा से अपना गठबंधन तक खत्म कर लिया। लेकिन आज जब परिणाम आया तो वही उद्धव यह कहते दिखाई दिए कि भाजपा सहयोग मांगती है तो वे विचार करेंगे। इस बार वंशवाद जो कि टिकिट वितरण में सबसे पहले दिखाई देता था भी कम दिखाई दिया। वरना तो अब तक पहली प्राथमिकता राजनेताओं के बेटे, बेटी और दामाद को पहले टिकिट मिल जाती थी। फिर यही वंशावली जीतने के बाद जनता के पैसे से मौज करने के लिए विदेशों की यात्रा करते थे। हां यदि ये वंशावली विधायक या सांसद बनने के बाद थोड़ी बहुत भी जनता की सेवा ईमानदारी से करते तो शायद इतना आक्रोश इनके खिलाफ नहीं बनता। अच्छी बात तो यह रही जिन लोगों ने परिवार वाद के दम पर टिकिट पाया और फिर अपने ही परिवार की सेवा वे हार गए। जब कल के अखबारों में यह बात प्रकाशित होगी तो शायद जनता आगे ऐसे लोगों को सबक सिखाती रहेगी। 

          मोदी लगातार माहौल को बदल रहे हैं और निरंतर नई घोषणाएं कर रहे हैं। लेकिन हम उम्मीद करते हैं कि वे अपने द्वारा कहे गए कामों को भी समयावधि में पूरा करेंगे और देश को नई ऊंचाईयों पर ले जाएंगे।