Sunday, May 19, 2013

उफ़ ये विवाह का मौसम


आप बुआ के यहाँ मंडप लेकर चले जाना. मैं साले की लड़की की शादी अटेंड कर लुंगा और छोटे तुम मौसी के लड़के के फलदान में शामिल हो जाना. ये चर्चा है एक मध्यमवर्गीय परिवार के बीच. जहाँ घर का बड़ा बेटा उनके घर आये निमंत्रण के हिसाब से अलग अलग शादियों में जाने की योजना बना रहा है. दरअसल जैसे ही देवउठनी ग्यारस आती है तो तब से लेकर देवशयनी ग्यारस तक प्रतिदिन विवाह में जाने के लिए ऐसी योजनाए बनती हैं. ये काफी मजेदार होता है और मुश्किल भी होता है. किसी भी साल यदि घर आने वाले सभी निमंत्रण की हिसाब से आप जा पाए तो ये उस साल का आस्कर अवार्ड जीतने जैसा हो जाता है. नेताओं का तो समझ में आता है, लेकिन अब आम आदमी के घर में भी एक दिन में 1 से 7 विवाह आमंत्रण होना आम बात है. फिर यदि ऐसा न हो तो हम मोहल्ले और रिश्तेदारी में ये कैसे जाता पाएंगे की हमारी पहचान कितनी है और हमें कितने अधिक लोग जानते हैं. मजेदार बात ये है की हम किसी को बुलाये चाहे न बुलाये पर दुसरे का बुलावा हमारे पास जरुर आना चाहिए. ये ललक तब और बाद जाती है की यदि किसी खास व्यक्ति के यहाँ शादी है तो आपके यहाँ उसका आमंत्रण जरुर हो. ऐसी शादी के एक फायदा ये होता है की भले ही कोई उपहार लेकर न भी जाए तो कोई पूछने वाला नहीं होता है. बहरहाल हम बात कर रहे थे की एक ही तारीख में अनेक शादी होने से घर में सदस्य कम पड़ जाते हैं. जब विवाह का मौसम ख़त्म होता है तो हम बारिश के मौसम में चर्चा करते हैं की हमने इस बार कितने अधिक विवाह में गए.
चर्चा जारी रहेगी..........

भीमसिंह  मीणा

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