Thursday, April 25, 2013

चीन की भड़काऊ पैंतरेबाजी का अर्थ?

चीन गजब का पैंतरेबाज मुल्क है। एक ओर वह भव्य और गरिमामय महाशक्ति का आचरण करते हुए दिखाई देना चाहता है और दूसरी ओर ओछी छेडख़ानियों से बाज नहीं आता। अभी 15 अप्रैल को उसकी फौज ने सीमांत के दौलत बेग ओल्डी क्षेत्र में घुसकर अपने तंबू खड़े कर दिए हैं। वे नियंत्रण-रेखा के पार भारतीय सीमा में 10 किलोमीटर तक अंदर घुस आए हैं। लगभग ऐसा ही उन्होंने जून 1986 में सोमदोरोंग चू में किया था। वहां से उन्होंने 1995 में अपने आप वापसी करके भारत को प्रसन्न कर दिया था।
वास्तव में भारत-चीन सीमा चार हजार किलोमीटर से भी ज्यादा लंबी है। उसमें जंगल, पहाड़, झरने, नदियां, झीलें तथा अनेक अबूझ क्षेत्र हैं। यह पता ही नहीं चलता कि कौन-सी जगह चीनी है और कौन-सी भारतीय? नियंत्रण-रेखा भी अनेक स्थानों पर अंदाज से ही जानी और मानी जाती है। ऐसी स्थिति में दोनों ओर से नियंत्रण-रेखा का उल्लंघन आसानी से होता रहता है। जानबूझकर भी होता ही होगा, लेकिन अक्सर दूसरे पक्ष को आपत्ति होने पर पहला पक्ष अपनी जगह वापस लौट जाता है लेकिन इस बार चीनी फौज पिछले 10-12 दिनों से भारतीय सीमा क्षेत्र में ऐसे जम गई है, जैसे कि वह सोमदोरोंग चू में जम गई थी। दो बार दोनों पक्षों के अफसरों की बैठक भी हो गई है, लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला।

Friday, April 19, 2013

गुजरात दंगे का सच


गुजरात दंगे का सच आज जहा देखो वहा गुजरात के दंगो के बारे में ही सुनने और देखने को मिलता है फिर चाहे वो गूगल हो या फेसबुक हो या फिर टीवी चैनेल | रोज रोज नए खुलाशे हो रहे हैं | रोज गुजरात की सरकार को कटघरे में खड़ा किया जाता है| सबका निशाना केवल एक नरेन्द्र मोदी | जिसे देखो वो अपने को को जज दिखाता है| हर कोई सेकुलर के नाम पर एक ही स्वर में गुजरात दंगो की भर्त्सना करते हैं |

कारसेवको को मारने के लिए ट्रेन को जलाने की कई दिनों से योजना बन रही थी-
साबरमती ट्रेन हादसे में मौत की सजा प्राप्त अब्दुल रजाक कुरकुर के अमन गेस्टहाउस पर ही कारसेवको को जिन्दा जलाने की कई हप्तो से योजना बनी थी ... इसके गेस्टहाउस से कई पीपे पेट्रोल बरामद हुए थे |
पेट्रोल पम्प के कर्मचारीयो ने भी कई मुसलमानों को महीने से पीपे में पेट्रोल खरीदने की बात कही थी और उन्हें पहचान परेड में पहचाना भी था .. पेट्रोल को सिगनल फालिया के पास और अमन गेस्टहाउस में जमा किया जाता था |
गोधरा से तत्कालीन सहायक स्टेशन मास्टर के द्वारा वडोदरा मंडल ट्रेफिक कंट्रोलर को भेजी गयी गुप्त रिपोर्ट ::- 
गोधरा के तत्कालीन सहायक स्टेशन मास्टर राजेन्द्र मीणा ने वडोदरा मंडल के ट्रेफिक कंट्रोलर को आरपीएफ के गुप्तचर शाखा के जानकारी के आधार पर एक रिपोर्ट भेजी थी जिसमे उन्होंने कहा था की गोधरा आउटर पर किसी भी सवारी ट्रेन को रोकना और खासकर अयोध्या जाने वाली या आने वाली साबरमती एक्सप्रेस को रोकना बहुत खतरनाक होगा क्योकि कुछ संदिग्ध लोग कारसेवको को नुकसान पहुचाने की योजना बना रहे है उन्होंने लिखा था की ट्राफिक को इस तरह से कंट्रोल किया जाए की साबरमती ट्रेन को आउटर पर रुकना न पड़े
गौरतलब है की जिस जगह यानी सिगनल फलिया पर साबरमती ट्रेन को जलाया गया था ठीक उसी जगह पर 28 November 1990 को पांच हिन्दू टीचरों को जलाकर मारा गया था जिसमे दो महिला टीचर थी ..इस केस में भी बीस मुसलमानों को आरोपी पाया गया था 
आखिर ट्रेन हादसे के दो दिनों के बाद गुजरात में दंगे क्यों भडके ?
मित्रो कभी आपने सोचा है कि जब ट्रेन 27 फरवरी को जलाई गयी तो गुजरात में पहली हिंसा दो दिन के बाद यानी 29 फरवरी को क्यों हुई ?
मित्रो साबरमती हादसे की किसी भी मुस्लिम सन्गठन ने निंदा नही की .. उलटे जमायत ये इस्लामी हिन्द के तत्कालीन प्रमुख ने इसके लिए कारसेवको को ही जिम्मेदार ठहरा दिया .. शबाना आजमी ने भी कहा की कारसेवको को उनके किये की सजा मिली है ..आखिर क्या जरूरत थी अयोध्या जाने की ...तीस्ता जावेद सेतलवाड और मल्लिका साराभाई और शबनम हाश्मी ने एक संयुक्त प्रेस कांफेरेस के कहा की हमे ये नही भूलना चाहिए की वो कार सेवक किसी नेक मकसद के नही गये थे बल्कि विवादित जगह पर मन्दिर बनाने गये थे |
मशहूर पत्रकार वीर संघवी ने भी इंडियनएक्सप्रेस में एक आर्टिकल लिखा था ""they condemn the crime, but blame the victims" उन्होंने लिखा था की ऐसे बयानों ने हिन्दुओ को झकझोर दिया था |
जब भी मीडिया गुजरात दंगो की बात करता है तब वो दंगे भडकने के पहले और गोधरा ट्रेन हादसे के बाद 27 February 2002 को गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री और बड़े कांग्रेसी नेता अमरसिंह चौधरी का टीवी पर आकर दिया गया बयान क्यों नही दिखाता ?
मित्रो, अमरसिंह चौधरी ने साबरमती ट्रेन हादसे की निंदा नही की बल्कि उलटे वो कारसेवको को कोसने लगे और मृत कारसेवको के बारे में अनाप सनाप बकने लगे .. और कहा की ये लोग खुद अपनी मौत के जिम्मेदार है ..
इन सब बातो ने गुजरात की जनता को भडकाने का काम लिया ..
अब सवाल उठता है की गुजरात दंगा हुआ क्यों ? 27 फरवरी 2002 साबरमती ट्रेन के बोगियों को जलाया गया गोधरा रेलवे स्टेशन से करीब ८२६ मीटर की दुरी पर स्थित जगह सिगनल फालिया पर | इस ट्रेन में जलने से 58 लोगो को मौत हुई | 25 औरते और 19 बच्चे भी मारे गये |
प्रथम दृष्टया रहे वहा के 14 पुलिस के जवान जो उस समय स्टेशन पर मौजूद थे और उनमे से ३ पुलिस वाले घटना स्थल पर पहुचे और साथ ही पहुचे अग्नि शमन दल के एक जवान सुरेशगिरी गोसाई जी | अगर हम इन चारो लोगो की माने तो म्युनिसिपल काउंसिलर हाजी बिलाल भीड़ को आदेश दे रहे थे ट्रेन के इंजन को जलने का| साथ ही साथ जब ये जवान आग बुझाने की कोशिस कर रहे थे तब ट्रेन पर पत्थरबाजी चालू कर दी गई भीड़ के द्वारा| अब इसके आगे बढ़ कर देखे तो जब गोधरा पुलिस स्टेशन की टीम पहुची तब २ लोग १०,००० की भीड़ को उकसा रहे थे ये थे म्युनिसिपल प्रेसिडेंट मोहम्मद कलोटा और म्युनिसिपल काउंसिलर हाजी बिलाल|
अब सवाल उठता है की मोहम्मद कलोटा और हाजी बिलाल को किसने उकसाया और ये ट्रेन को जलाने क्यों गए?
असल में गोधरा की मुख्य मस्जिद का मौलाना मौलवी हाजी उमर जी ही इस कांड का मुख्य आरोपी पाया गया और उसे अदालत ने फांसी की सजा दी ..जिसे बाद में आजीवन कारावास में तब्दील किया गया | दुसरे आरोपीयो ने विभिन्न जाँच एजेंसियों और कोर्ट में बताया की मौलाना उमरजी कई हप्तो से मस्जिद में नमाज के बाद भडकाऊ तकरीर देता था और कहता था की हमे बदला लेना है ..इन कारसेवको ने बाबरी मस्जिद तोड़ी है इसलिए हर मुसलमान का फर्ज है की वो बदला ले |
सवालो के बाढ़ यही नहीं रुकते हैं बल्कि सवालो की लिस्ट अभी लम्बी है|
अब सवाल उठता है की क्यों मारा गया ऐसे राम भक्तो को| कुछ मीडिया ने बताया की ये मुसलमानों को उकसाने वाले नारे लगा रहे....अब क्या कोई बताएगा की क्या भगवान राम के भजन मुसलमानों को उकसाने वाले लगते हैं?
लेकिन इसके पहले भी एक हादसा हुआ २७ फ़रवरी २००२ को सुबह ७:४३ मिनट ४ घंटे की देरी से जैसे ही साबरमती ट्रेन चली और प्लेटफ़ॉर्म छोड़ा तो प्लेटफ़ॉर्म से १०० मीटर की दुरी पर ही १००० लोगो की भीड़ ने ट्रेन पर पत्थर चलाने चालू कर दिए पर यहाँ रेलवे की पुलिस ने भीड़ को तितर बितर कर दिया और ट्रेन को आगे के लिए रवाना कर दिया| पर जैसे ही ट्रेन मुस्किल से ८०० मीटर चली अलग अलग बोगियों से कई बार चेन खिंची गई | 
बाकि की कहानी जिसपर बीती उसकी जुबानी | उस समय मुस्किल से १५-१६ साल की बच्ची की जुबानी |
ये बच्ची थी कक्षा ११ में पढने वाली गायत्री पंचाल जो की उस समय अपने परिवार के साथ अयोध्या से लौट रही थी की माने तो ट्रेन में राम धुन चल रहा था और ट्रेन जैसे ही गोधरा से आगे बढ़ी एक दम से रोक दिया गई चेन खिंच कर | उसके बाद देखने में आया की एक भीड़ हथियारों से लैस हो कर ट्रेन की तरफ बढ़ रही है | हथियार भी कैसे लाठी डंडा नहीं बल्कि तलवार, गुप्ती, भाले, पेट्रोल बम्ब, एसिड बल्ब्स और पता नहीं क्या क्या | भीड़ को देख कर ट्रेन में सवार यात्रियों ने खिड़की और दरवाजे बंद कर लिए पर भीड़ में से जो अन्दर घुस आए थे वो कार सेवको को मार रहे थे और उनके सामानों को लूट रहे थे और साथ ही बहार खड़ी भीड़ मरो-काटो के नारे लगा रही थी | एक लाउड स्पीकर जो की पास के मस्जिद पर था उससे बार बार ये आदेश दिया जा रहा था की "मारो, काटो. लादेन ना दुश्मनों ने मारो" | साथ ही बहार खड़ी भीड़ ने पेट्रोल डाल कर आग लगाना चालू कर दिया जिससे कोई जिन्दा ना बचे| ट्रेन की बोगी में चारो तरफ पेट्रोल भरा हुआ था| दरवाजे बहार से बंद कर दिए गए थे ताकि कोई बहार ना निकल सके| एस-६ और एस-७ के वैक्यूम पाइप कट दिया गया था ताकि ट्रेन आगे बढ़ ही नहीं सके| जो लोग जलती ट्रेन से बहार निकल पाए कैसे भी उन्हें काट दिया गया तेज हथियारों से कुछ वही गहरे घाव की वजह से मारे गए और कुछ बुरी तरह घायल हो गए|
गोधरा फायर सर्विस के जवानो का बयान 
नानावती औरशाह आयोग को दिए अपने बयानों में फायर बिग्रेड के लोगो ने कहा की जबहमे सुचनामिली की ट्रेन जलाई गयी है तो हम तुरंत पहुचे लेकिन सिग्लन फालिया के पास कई मुस्लिम महिलाये और बच्चे हमारा सामने लेट गये ..और कई लोग चिल्ला रहे थे की इनको तब तक मत जाने देना जबतक की ट्रेन पूरी तरह जल न जाये |
हिन्दू सड़क पर उतारे 29 फ़रवरी 2002 के दोपहर से | पूरा दो दिन हिन्दू शांति से घरो में बैठा रहा| अगर वो दंगा हिंदुवो या मोदी को करना था तो 27 फ़रवरी 2002 की सुबह 8 बजे से क्यों नहीं चालू हुआ? जबकि मोदी ने 28 फ़रवरी 2002 की शाम को ही आर्मी को सडको पर लाने का आदेश दिया जो की अगले ही दिन १ मार्च २००२ को हो गया और सडको पर आर्मी उतर आयी गुजरात को जलने से बचाने के लिए | पर भीड़ के आगे आर्मी भी कम पड़ रही थी तो १ मार्च २००२ को ही मोदी ने अपने पडोसी राज्यों से सुरक्षा कर्मियों की मांग करी| ये पडोसी राज्य थे महाराष्ट्र (कांग्रेस शासित- विलाश राव देशमुख मुख्य मंत्री), मध्य प्रदेश (कांग्रेस शासित- दिग विजय सिंह मुख्य मंत्री), राजस्थान (कांग्रेस शासित- अशोक गहलोत मुख्य मंत्री) और पंजाब (कांग्रेस शासित- अमरिंदर सिंह मुख्य मंत्री) | क्या कभी किसी ने भी इन माननीय मुख्यमंत्रियों से एक बार भी पुछा की अपने सुरक्षा कर्मी क्यों नहीं भेजे गुजरात में जबकि गुजरात ने आपसे सहायता मांगी थी | या ये एक सोची समझी गूढ़ राजनीती द्वेष का परिचायक था इन प्रदेशो के मुख्यमंत्रियों का गुजरात को सुरक्षा कर्मियों का ना भेजना|
साबरमती ट्रेन हादसा और लालूप्रसाद यादव की घटिया राजनीती जो बाद में गलत साबित हुई 
साबरमती ट्रेन हादसे के ढाई साल के बाद जब घटिया और नीच सोच रखने वाले लालूप्रसाद यादव रेलमंत्री बने तो उन्होंने इस हादसे पर अपनी नीच और गिरी हुई राजनितिक रोटी सेकने के लिए रेलवे के द्वारा बनर्जी आयोग बनाया .. और इस आयोग को पहले ही बता दिया गया था की आपको क्या रिपोर्ट देनी है | असल में कुछ महीनों के बाद बिहार विधानसभा के चुनाव होने वाले थे और लालूप्रसाद यादव चाहते थे की किसी भी हिंदूवादी दल को इसका फायदा न मिले बल्कि हिंदूवादी संघटनों को और कारसेवको को ही दोषी ठहरा दिया जाये |
सोचिये जो बोगी ढाई सालो तक खुले आसमान के पड़ी रही उस बोगी की जाँच करके बनर्जी आयोग ने कहा की ट्रेन अंदर से जलाई गयी थी .. मतलब वो कहना चाह रहे थे की सभी कारसेवको को सामूहिक आत्मदाह करने की इच्छा हो गयी इसलिए उन्होंने खुद ही ट्रेन में आग लगा ली और किसी ने भी बाहर निकलने की कोशिस नही की | मजे की बात देखिये की जस्टिस बनर्जी ने जनवरी २००५ को यानी बिहार चुनाव घोषित होने के ठीक दो दिन पहले अपना विवादास्पद रिपोर्ट सार्वजनिक किये ताकि इस रिपोर्ट के आधार पर लालूप्रसाद यादव बिहार के मुसलमानों को भड़काकर उनका वोट हासिल कर सके |
लेकिन गोधरा ट्रेन हादसे में जख्मी हुए नीलकंठ तुलसीदास भाटिया नामक एक शक्स ने बनर्जी आयोग के झूठे रिपोर्ट को गुजरात हाईकोर्ट में चेलेंज किया | गुजरात हाईकोर्ट ने विश्व के जानेमाने फायर विशेषज्ञ और फोरेंसिक एक्पर्ट का एक पैनेल बनाया . और जस्टिस उमेश चन्द्र बनर्जी को इस पैनेल के सामने पेश होने का सम्मन दिया ... तीन सम्मनो के बाद पेश हुए बनर्जी साहब ने ये नही बता पाया की आखिर उन्होंने ये कैसे निष्कर्ष निकला की ट्रेन में आग भीतर से लगी है .. जबकि आग के पैटर्न और सभी गवाहों और खुद अभियुक्तों के बयानों पे अनुसार आग बाहर से लगाई गयी थी और दरवाजो को बाहर से बंद कर दिया गया था ..जस्टिस बनर्जी कोई जबाब नही दिए और कोर्ट में कहा की वो एक आयोग के मुखिया होने के नाते किसी भी सवाल का जबाब देने के लिए बाध्य नही है .. मेरा काम था रेलवे को रिपोर्ट देना इसे सही या गलत मानना तो रेलवे का काम है |
यानी ये पूरी तरह साबित हो गया था की लालूप्रसाद यादव में जस्टिस उमेशचन्द्र बनर्जी आयोग का गठन सिर्फ अपने राजनीतक रोटिया सेकने के लिए ही किया था | इस आयोग को लालू ने पहले ही बता दिया था की मुझे किस तरह की जाँच रिपोर्ट चाहिए |
फिर ओक्टूबर २००६ के गुजरात हाईकोर्ट की चार जजों की बेंच ने जिसमे सभी जज एक राय पर सहमत थे उन्होंने लालू के बनर्जी आयोग की रिपोर्ट को ख़ारिज कर दिया और टिप्पड़ी करते हुए कहा की कोई रिटायर जज किसी नेता के हाथ की कटपुतली न बने ..गुजरात हाईकोर्ट ने बनर्जी रिपोर्ट को रद्दी, बकवास कहा .. अपनी टिप्पड़ी में गुजरात हाईकोर्ट ने कहा
"Gujarat High Court quashed the conclusions of the Banerjee Committee and ruled that the panel was "unconstitutional, illegal and null and void", and declared its formation as a "colourable exercise of power with mala fide intentions", and its argument of accidental fire "opposed to the prima facie accepted facts on record."
लेकिन ताज्ज्जुब हैकी मीडिया और दोगले सेकुलर लोग सिर्फ एक तरफी बाते ही चलाते है 
sabhar
********जितेन्द्र प्रताप सिंह ********* fb se
link

जब झरखेड़ा गांव का हर निवासी बन जाता है रामायण का पात्र

जब पूरे देष में रामलीला अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है तब राजधानी से 25 किमी दूर जिले की सीमा पर बसे झरखेड़ा गांव में दो-दो रामलीला का मंचन चल रहा है। चैत्र नवरात के पहले दिन से दषहरे की दोपहर तक यहां रामलीला का मंचन किया जाता है और इसे देखने के लिए आसपास के लोग हजारांे की संख्या में यहां आते हैं।
bhopal.
ब्ुद्धिजीवियों की यह बात कि अब रामायण सरकारी आयोजनों तक सीमित रह गई है और टीवी, इंटरनेट, वीडियो गेम, फिल्में रामलीला जैसे सांस्कृतिक आयोजनों पर हावी हो गई है उसे झरखेड़ा गांव के लोग झुठलाते हैं। जहां अब एक रामलीला का मंचन करने के लिए सरकारी मदद के लिए ताकते हैं या चंदे की बाट जोहते हैं,
 तब यहा के निवासी एक ही गांव में दो रामलीला करते हैं। सुखद बात यह है कि दोनांे रामलीला को लेकर पूरे गांव में कोई वैमनस्य नहीं है और एक दूसरे के सहयोग से दस दिन तक ये आयोजन चलता है। एक रामलीला गांव के बड़े राम मंदिर पर करते हैं और इसके मुखिया हैं कैलाष चंद्र पाटीदार।

 वहीं दूसरी रामलीला होती है छोटे राम मंदिर पर और यहां के मुखिया हैं इमरत सिंह मेवाड़ा। कैलाष पाटीदार बताते हैं गत 80 वर्ष से यहां रामलीला का आयोजन होता आ रहा है और अब तो समस्त वेषभूषा व अन्य सामग्री गांव वालों ने मिलकर खरीद ली है। शुरूआत की वजह पूछने पर बताया कि गांव में हिंगलाज देवी का मंदिर है और हर साल रामनवमी की रात में इस मंदिर पर निसान (झंडा) चढ़ाया जाता है। इस झंडे को चढ़ाने के लिए गांव में उत्सव मनाया जाता है।
 गौरलतब है कि हिंगलाज देवी के देष में बहुत कम मंदिर है और एक मंदिर पाकिस्तान में है। नवमी की रात में गांव से लोग जुलुस के रूप में मंदिर जाकर निसान चढ़ाते हैं। दषहरे के दिन में रामलीला का समापन किया जाता है। इस रामलीला को देखने के लिए आसपास के करीब 10 से ज्यादा गांव के लोग आते हैं। इनमें दोराहा, सोनकच्छ, तूमड़ा, सतोनिया, जमुनिया आदि शामिल हैं। खास बात यह है कि झरखेड़ा गांव काफी बड़ा है और करीब 7 हजार की आबादी यहीं की है।

गांव सरपंच भी निभाते हैं किरदार
झरखेड़ा की रामलीला कई मायनों में खास है। सबसे बड़ी बात की इस गांव में भले ही दो रामलीला होती हैं, लेकिन एक भी कलाकार बाहर का नहीं रहता। गांव के ही लोग रामायण के पात्रों का किरदार अदा करते हैं और इनमें गांव के सरपंच रामबाबू पाटीदार भी शामिल हैं जो मेघनाद का पात्र निभाते हैं। 
बड़े मंदिर पर जहां राम का देवानंद शर्मा, लक्ष्मण का जीतेंद्र पाटीदार, सीता का देवेद्र बैरागी, हनुमान का मुकेष पाटीदार, रावण का किरदार रामस्वरूप पाटीदार बनते हैं तो वहीं छोटे मंदिर पर राम का राज कुषवाह, लक्ष्मण का अजय सेन, सीता का विषाल कुषवाह, रावण का कन्हैयालाल और हनुमान का रमेष पाटीदार निभाते हैं। छोटे मंदिर पर दो कलाकार ऐसे हैं जो पूरी रामलीला के दौरान कई पात्र निभाते हैं। इनमें भैयालाल दषरथ, अंगद, परसराम, मायावी रावण और अगस्त ऋषि का किरदार अदा करते हैं। वहीं इनके बेटे जयनारायण नागापुत्र, बलि, खर-दूषण, का पात्र अदा करते हैं। छोटे मंदिर पर रामलीला शुरू होने के पहले देवी प्रकाष सेन नर्तकी बन लोगों को रामायण की महत्व बताते हैं।
हमारे हर घर का बच्चा कलाकार है
हमारे गांव की संस्कृति शुरू से ही ऐसी हैं। हम हर वर्ष बड़ी धूमधाम से रामलीला का मंचन करते हैं और हमें हर घर से बराबर का सहयोग मिलता है। हमारे गांव के हर घर में बच्चा कलाकार है और पूरी षिद्दत के साथ वे अपना काम करते हैं। रामलीला के अंतिम दिनों में जतरा (गांव का मेला) भरती है। दषहरे के दिन सभी लोग अपने घरों को सजाते हैं और राम की पूजा करते हैं।