Monday, August 2, 2010

राम तो घर नहीं दिल में रहते हैं वहा से केसे निकालोगे

भोपाल. मीडिया क्लब पर एक बड़ी उम्दा टिप्पड़ी आई की राम को नकारना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है पड़ी और इसको पड़ने के बाद साफ़ हो गाय की राम के अस्तित्व को नकारने वाले बहुत थोड़े हैं लिकिन उनका जवाब देना पड़ता है. वो टिप्पड़ी यहाँ हु-बहु प्रकाशित कर रहे हैं.

 'राम को नकारना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी'

Pawan Kumar Arvind 

दिल्ली के दरियागंज स्थित प्रकाशन संस्थान द्वारा हाल ही में प्रकाशित एक पुस्तक में भगवान श्रीराम के अस्तित्व को नकारने की प्रवृत्ति का कड़ा प्रतिवाद किया गया है और दलील दी गई है कि इसका सीधा अर्थ तो यह हुआ कि बाकायदा आज भी मौजूद अयोध्या तथा सरयू समेत श्रीराम से जुडे़ अनेक स्थान एवं प्रतीक भी काल्पनिक हैं।
प्रसिद्ध लेखक डॉ. भगवती शरण मिश्र ने अपनी पुस्तक "मैं राम बोल रहा हूँ" में लिखा है- "राम को नकारने वालों को सरयू, अयोध्या, चित्रकूट, कनक, लक्ष्मण किला, हनुमान गढ़ी, रामेश्वरम, जनकपुर आदि को भी नकारना होगा।
इस पुस्तक में लेखक वर्तमान परिस्थितियों पर भगवान श्रीराम के ही मुंह से बेबाक टिप्पणियां करता है और कहता है कि राम को नकारना तो बहुत आसान है पर उनके प्रतीकों को मिटाना दुष्कर ही नहीं असम्भव भी है।
डॉ. मिश्र ने भगवान राम के माध्यम से जो दलीलें दी हैं वे उन्हीं के शब्दों में इस प्रकार हैं- 'राम को नकारोगे तो अयोध्या को भी नकारना पडे़गा। इस पूरे नगर और इसमें गली-गली में स्थित मंदिरों, मठों के अस्तित्व को भी झुठलाना होगा। इसकी विभिन्न छोटी- बडी इमारतों को भी, क्योंकि तब ये सभी एक कल्पना प्रसूत नगर के अंश हो जाएंगे। अयोध्या को नकारो तो कनक भवन के सदृश करोड़ो रुपयों से निर्मित विशाल मंदिर को भी नकारना होगा क्योंकि उसमें राम-सीता अवस्थित हैं और सरयूतीर स्थित वह भव्य लक्ष्मण किला इसे तो लक्ष्मण द्वारा ही निर्मित किया गया था। उसके अस्तित्व को भी नकारना होगा। एक मिथ्या को मिटाना होगा।'
उन्होंने लिखा है- "इस सरयू का क्या करोग, इसे सुखा दोगे, यह तुम्हारे वश की बात नहीं। फिर इसके उद्गम पर ही रोक लगा दो। कुछ कोसों तक भूमि ही जलमग्न होगी न कुछ लोग ही तो विस्थापित होंगे। तुम्हें इसकी चिन्ता नहीं। नर्मदा-परियोजना में तुमने यह सब देखा-झेला है। तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ा है, अब भी नहीं बिगड़ेगा। एक अर्थहीन नदी से तो मुक्ति मिलेगी। पर ध्यान देना, तुम्हारे देश की नदियां ही तुम्हारी जीवन रेखा हैं। इसके किनारे ही नगर-गांव आबाद हुये हैं। सभ्यता-संस्कृति पनपी है। तुम्हारा देश कृषि प्रधान है। कृषि के लिये जल चाहिए। सरयू को मिटाओगे तो इसके तीर बसे नगर-गांव उजड़ जायेंगे। सहस्त्रों की संख्या में इन उजड़े लोगों का क्या करोगे, भारी समस्या है। कुछ बोलने. कुछ करने से पहले सोचना आवश्यक है।

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