Friday, July 16, 2010

फर्जी वाडा करो,फिर कमाओ और पकडे जाओ तो घर बैठकर खाओ

भोपाल से...
हमारे देश में दलालों और बेईमानो के लिए बहुत जगह है. अब पुरे देश का हिसाब तो अभी नहीं बताया जा सकता है, लेकिन भोपाल में हुए आज एक फैसले से कुच्छ तो दावा किया ही जा सकता है.  गुरूवार को मध्य प्रदेश शासन मैं कम करने वाले 17 अफसरों के जाती प्रमाण पात्र फर्जी पाए गए. अब सवाल ये उठता है की इनमे से कई के खिलाफ तो पहले भी जांच हो चुकी हैं और इन्ही अफसरों को बा-इज्ज़त बरी भी कर दिया गया था तो क्या वे जांच रिपोर्ट फर्जी थी और नहीं तो क्या गलत जांच करने के लिए उन अफसरों को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री उन्हें दण्डित करेंगे.

धोखेबाज हैं ये 17 अफसर
भोपाल. संदिग्ध जाति प्रमाण पत्रों की जांच करने सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बनी छानबीन समिति ने 15 अधिकारी-कर्मचारियों के अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र फर्जी पाए हैं। इनमें भारतीय वन सेवा के अफसर से लेकर राज्य पुलिस सेवा और मुख्य अभियंता स्तर के अधिकारी तक शामिल हैं।
समिति ने पाया है कि न केवल नौकरी और पदोन्नति में बल्कि मेडिकल कॉलेज में दाखिले तक में गलत जाति प्रमाण पत्र से लाभ उठाया गया। अन्य पिछड़ा वर्ग और ब्राम्हण जाति के लोग भी इस फर्जीवाड़े में शरीक हैं। सरकार ने संबंधित जिलों के कलेक्टर और एसपी को इन अफसरों के जाति सर्टिफिकेट निरस्त करने का आदेश दिया है।
इनके खिलाफ अगली कार्यवाही करने को कहा गया है, इसमें सेवा से बर्खास्तगी शामिल है। राज्य स्तरीय छानबीन समिति के सामने 19 मामले थे। इनमें से महज एक प्रमाण पत्र सही पाया गया जबकि एक मामला हाईकोर्ट में लंबित होने की वजह से उस पर निर्णय नहीं लिया गया। आदिम जाति कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव समिति के अध्यक्ष, केंद्रीय अजजा आयोग के निदेशक एवं राज्य अजजा आयोग के सचिव, आदिम जाति अनुसंधान संस्थान के संयुक्त संचालक समिति के सदस्य हैं।
एके भूगांवकर भारतीय वन सेवा (राज्य वन सेवा से पदोन्नत) भोपाल
वीके भूगांवकर चीफ इंजीनियर पीडब्ल्युडी भोपाल
पीरन सिंह गिल कंपनी कमांडर होमगार्ड्स
बहादुर सिंह गिल कंपनी कमांडर होमगार्ड्स
बादाम सिंह मीना जिला रोजगार अधिकारी
नागेश्वर सोनकेसरी सहायक आबकारी आयुक्त मंदसौर
खुशेंद्र सोनकेसरी एमपीपीएससी से डीएसपी चयनित
पूनम खंतवाल पुलिस सब इंस्पेक्टर भोपाल
राकेश कश्यप सेक्शन ऑफिसर मंत्रालय
जयेंद्र सिंह तंवर व्याख्याता आदिम जाति कल्याण विभाग अलीराजपुर
शशिकला धकाते लिपिक वन विभाग छिंदवाड़ा
रेखा सहकाटे स्टेनोग्राफर मंत्रालय
अरुणा चौधरी स्टॉफ नर्स जबलपुर
कपिल कुमार जोशी स्टेट बैंक इंदौर में मैनेजर थे
भागीरथ रायक जिला प्रौढ़ शिक्षा अधिकारी
प्रेमशंकर धानका अध्यापक पद के लिए आवेदन किया था

फर्जी प्रमाण पत्र की जगह नया सर्टिफिकेट कर लिया मंजूर : अनुसूचित जाति के संदिग्ध प्रमाण पत्रों की जांच की राज्य स्तरीय छानबीन समिति ने एक प्रमाण पत्र को फर्जी पाया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की। विकास आयुक्त कार्यालय के लिपिक गौतम कठाने ने 1980 में जो जाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर नौकरी हासिल की, जांच में कलेक्टर छिंदवाड़ा ने फर्जी पाया।
कलेक्टर ने समिति को भेजी रिपोर्ट में कहा कि यह प्रमाण पत्र जारी ही नहीं हुआ। कठाने ने 2005 में तैयार कठाने ने महार जाति का प्रमाण पत्र पेश किया, समिति ने उसे मान लिया क्योंकि जांच में पाया गया कि वे महार जाति के ही हैं। लेकिन फर्जी प्रमाण पत्र से 25 वर्ष सेवा करने और लाभ लेने के मामले में कोई कार्रवाई नहीं की गई।
इनका मामला कोर्ट में
समिति ने कर्मचारी महेंद्र सिंह के संदिग्ध जाति प्रमाण पत्र मामले में कोई निर्णय नहीं लिया, क्योंकि प्रकरण हाईकोर्ट में लंबित है। समिति ने सुनवाई का पूरा मौका देकर जांच के बाद 16 अधिकारी, कर्मचारियों के सर्टिफिकेट निरस्त करने की सिफारिश की है। संबंधित जिलों के कलेक्टरों को कार्यवाही करने के आदेश दिया गया है। 

अरुण कोचर,आदिवासी विकास आयुक्त मप्र

भोपाल में पदस्थ लोक निर्माण विभाग के मुख्य अभियंता वीके भूगांवकर उनके भाई एके भूगांवकर के प्रमाण पत्र में उन्हें आदिवासी जाति हल्बा का बताया गया है जबकि वे कोष्टा जाति के हैं जो ओबीसी में आती है। उनके पिता मंत्रालय की सेवा में रहे थे और वे ओबीसी में ही थे। वीके भूगांवकर ने अजा वर्ग के आरक्षण का सेवा में लाभ लिया लेकिन स्कूल शिक्षा प्रमाण पत्रों में उन्हें ब्राम्हण दर्शाया गया है। इनका जाति प्रमाण पत्र भोपाल से बना।
राज्य वन सेवा से भारतीय वन सेवा में पदोन्नत हो चुके प्रेमशंकर धनका गड़रिया जाति के पाए गए जो अनुसूचित नहीं बल्कि ओबीसी में है। धनका ने नरसिंहपुर से प्रमाण पत्र बनवाया। जिला रोजगार अधिकारी पदस्थ बादाम सिंह मीना लटेरी में निवास के आधार पर अजजा का लाभ रहे थे, वे जांच में गुना जिले के निवासी पाए गए जहां मीना जाति आदिवासी वर्ग में नहीं आती। इन्होंने विदिशा से जाति प्रमाण पत्र बनवाया।
मंदसौर में पदस्थ आबकारी विभाग में सहायक आयुक्तनागेश्वर सोनकेशरी और उनके भाई डीएसपी खसेंद्र सोनकेसरी का जाति प्रमाण पत्र भी हल्बा जाति का है जबकि वे कोष्टा जाति के हैं। नागेश्वर का प्रमाणपत्र भोपाल के कमलानगर क्षेत्र में निवास का बना है।
कमलानगर के जिस मकान में रहना दर्शाया गया उसके मालिक ने इंकार कर दिया कि नागेश्वर नाम का किरायेदार उनके यहां रहा। इनका जाति प्रमाण पत्र मंडला से जारी हुआ।
सर्टिफिकेट कैसे-कैसे
राकेश कश्यप ने कीर जाति के प्रमाण पत्र से नौकरी हासिल की वे ढीमर जाति के पाए गए जो अजजा में नहीं है। जयेंद्र सिंह तंवर ने झाबुआ से कंवर जनजाति का सर्टिफिकेट पर नौकरी प्राप्त की। प्रमाण पत्र गलत पाया गया।
शशिकला धकाते आदिम जाति अनुसंधान संस्थान में पदस्थ हैं, उनका हल्बा अजा जाति प्रमाण पत्र गलत मिला। वे भी कोष्टा जाति की हैं। भिलाला जाति के प्रमाण पत्र के सहारे नौकरी कर रहे भागीरथ रायक काछी जाति के पाए गए। इन्हें छिंदवाड़ा से जाति प्रमाण पत्र जारी किया गया।
ये भी दूध के धुले नहीं
रेखा सहकाटे की जाति महाराष्ट्र में अजजा में है मप्र में नहीं। इनका प्रमाण पत्र भोपाल से जारी किया गया। पूनम खंतवाल पौढ़ी गढ़वाल की मूल निवासी हैं लेकिन मप्र में अजजा नागवंशी का जाति प्रमाण पत्र लेकर नौकरी पाई।
जाति प्रमाण पत्र भोपाल से बनवाया। कपिल कुमार जोशी ने भी फर्जी अजजा प्रमाण पत्र से नौकरी पाई और जांच में वे ब्राम्हण पाए गए। इन्होंने भोपाल से प्रमाण पत्र बनवाया। पीरन सिंह और बहादुर सिंह गिल का गोंड जाति प्रमाण पत्र फर्जी मिला, वे अनुसूचित जाति के हैं।
पीरन सिंह होमगार्ड में कंपनी कमांडर हैं। इन्होंने सागर से प्रमाण पत्र बनवाए। कंवर जाति प्रमाण के आधार पर एमबीबीएस कर रही ज्योति छत्तरी जांच में ताम्रकार पाई गईं जो ओबीसी में है। ज्योति ने इंदौर से प्रमाण पत्र बनवाया।

2 comments:

Jandunia said...

शानदार पोस्ट

दिनेशराय द्विवेदी said...

अच्छी पोस्ट!