Monday, November 23, 2009

चाहे साल कितने भी क्यों न जाए जखम नही भर सकते हैं

भोपाल। हम लगातार २५ सालों से भोपाल में हुई गैस ट्रेजडी की बरसी मानते आ रहे हैं और अब काला दिवस मनाकर शांत हो जाते हैं, लेकिन जखम हरे हैं। कुछ भी भुलाना आसन नही है। मीडिया ने गेस ट्रेजडी को मीडिया ने हमेशा विषय को तवज्जो दी है। कुछ लेख जिन्हें विभिन्न वेबसाइट पर प्रकाशित किया जा चुका है को इस ब्लॉग पर साभार लिया जा रहा है।
भोपाल गैस त्रासदी के घाव अभी भरे नहीं
कोई क्या करे जब उसकी सुनने वाला कोई नहीं हो. जब सरकारों ने अपने कान बंद कर लिए हों और मीडिया के लिए रोचक कार्यक्रमों के मायने बदल गए हों.
भोपाल गैस पीड़ितों का कहना है कि ऐसा ही कुछ उनके साथ हुआ है, हालांकि उन्होंने हिम्मत नहीं हारी है. चौबीस साल पहले घटी घटना को शायद लोगों ने भुला दिया हो, लेकिन उसके घाव अब भी जन्म ले रहे बच्चों के शरीरों पर देखे जा सकते हैं.
अपने दुख दर्द केंद्र सरकार के सामने रखने के लिए बीस फ़रवरी 2008 को भोपाल गैस पीड़ितों ने दिल्ली तक सड़क यात्रा की शुरुआत की.
कई मीलों लंबी ये यात्रा 28 मार्च को दिल्ली में ख़त्म हुई. लेकिन पीड़ितों का कहना है कि सरकार को इसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी.
तपती धूप में धरना
गैस पीड़ितों ने अपनी बात को रखने के लिए तपती धूप में 38 दिन तक जंतर मंतर पर धरना दिया.
वे बच्चे जो ठीक से देख नहीं सकते, या चल नहीं सकते, उन्होंने इस भयानक गर्मी में भी सब्र नहीं खोया.
मिलिए रशीदा बी से जिन्होंने परिवार के छह सदस्य भोपाल गैस त्रासदी में गँवा दिए.
रशीदा कहती हैं कि पीड़ितों ने संतरी से लेकर मंत्री से गुहार लगाई, लेकिन मात्र आश्वासन के अलावा उनके हाथ कुछ नहीं लगा.
हम कई सांसदों से मिल चुके हैं. हम अर्जुन सिंह, रामविलास पासवान, ऑस्कर फर्नांडिस, यहाँ तक कि प्रधानमत्री के मुख्य सचिव से मिल चुके हैं, लेकिन सबने यही कहा कि हमने आपकी बात प्रधानमंत्री तक पहुँचा दी है लेकिन वो कब आपसे मिलेंगे ये उन्होंने नहीं बताया

रशीदा बी
वो कहती हैं, ''हम कई सांसदों से मिल चुके हैं. हम अर्जुन सिंह, रामविलास पासवान, ऑस्कर फर्नांडिस, यहाँ तक कि प्रधानमत्री के मुख्य सचिव से मिल चुके हैं, लेकिन सबने यही कहा कि हमने आपकी बात प्रधानमंत्री तक पहुँचा दी है लेकिन वो कब आपसे मिलेंगे ये उन्होंने नहीं बताया.''
कोई रास्ता नहीं निकलते देख भोपाल गैस पीड़ितों ने सीधे प्रधानमंत्री आवास तक अपनी आवाज़ पहुँचाने की ठानी.
करीब 50 गैस पीड़ित सोमवार की सुबह दिल्ली के प्रेस क्लब पर एक बस में इकठ्ठा हुए.
भोपाल गैस पीड़ितों के हितों के लिए संघर्षरत एक कार्यकर्ता ने बताया कि उन्हें इसके अलावा कोई रास्ता नहीं दिखा वो सीधे प्रधानमंत्री के घर अचानक पहुँचें और उनसे मामले में दखल देने की गुज़ारिश करें.
उनका कहना था, ''अगर हम मार्च करते हुए आवास तक जाते तो सुरक्षाकर्मी हमें ऐसा नहीं करने देते, इसलिए उन्होंने ऐसा रास्ता चुना है.''
मैं भी बस में सवार हो लिया. इतने सारे बच्चों के लिए बस शायद छोटी थी.
कुछ बच्चे अपनी माँ के गोद में दुबके हुए थे. हमे बताया गया कि बस में बैठे कुछ बच्चे या तो चल नहीं सकते या फिर उन्हें दिखाई देना बंद हो गया है क्योंकि यूनियन कार्बाइड की फ़ैक्ट्री से निकले धुएं ने वर्षों बाद भी उन्हे नहीं बख्शा है.
प्रधानमंत्री से नाराज़गी
बस में बैठे लोग बेहद नाराज़ हैं. सब के ज़हन में बस एक ही सवाल था- दुनिया का इतनी बड़ी त्रासदी के शिकार लोग, जो इतनी दूर से पैदल चलकर आए और बदहवास कर देने वाली गर्मी में जंतर मंतर में शांतिपूर्वक अपनी बात रखी, क्या देश के प्रधानमंत्री के पास उनके लिए दो मिनट भी नहीं है?
आख़िर मनमोहन सिंह उनके भी तो प्रधानमंत्री हैं.
गैस पीड़ितों का कहना है कि सरकार को उनमें कोई दिलचस्पी नहीं है
बच्चों ने अपने कपड़ों के ऊपर काले रंग का कपड़ा ओढ़ रखा था, जिस पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए लिखा था एक सवाल-अग़र हम आपके परिवार के सदस्य होते तो क्या हमारे साथ ऐसा व्यवहार होता?
बस पर मौजूद आसिफ़ा अख़्तर ने हमें बताया कि जब तक बच्चों के लिए अधिकार उन्हें नहीं मिलते, वो वापस नहीं जाएँगे.
प्रधानमंत्री आवास के नज़दीक आते ही बस में हलचल शुरू हो गई. आवास के पास बस की रफ़्तार धीरे होते देख तैनात सुरक्षाकर्मी भी सकते में आ गए और बस की ओर दौड़ना शुरू कर दिया.
इधर कार्यकर्ताओं ने बच्चों को बस के बाहर निकालना शुरू कर दिया. एक तरफ़ सुरक्षाकर्मी बच्चों को बाहर निकलने से रोकने की की कोशिश कर रहे थे, तो दूसरी तरफ बच्चों और साथ आई महिलाओं का इरादा कुछ और ही था.
कुछ बच्चें ज़मीन पर लेट गए, लेकिन सुरक्षाकर्मियों के आगे उनकी एक भी नहीं चल पाई.
उन्हें जल्द ही बस में वापस डाल दिया गया. कुछ लोग भोपाल की तस्वीरें लहराते नज़र आए, लेकिन पुलिसवालों ने कोई कोताही नहीं बरती और उन्हें भी बस में डालकर रवाना कर दिया.
करीब 20 मिनट में ही छोटी सी भीड़ पर काबू पा लिया गया। पुलिसिया डंडा फिर जीत गया.
लेखक विनीत खरे बीबीसी में संवाददाता हैं।
भोपाल गैस पीडितों ने पिछले लगातार तेईस वर्षों से अपने साथ हो रही 'अनदेखी' और 'नाइंसाफी' को उजागर करने और 'प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को उनके वायदे की याद दिलाने' के लिए 'दिल्ली चलो' का रास्ता ढूँढा है.
क़रीब तीन हज़ार गैस पीडितों के दो जत्थे जल्दी ही दिल्ली जाकर धरने, प्रदर्शन और भूख हरताल करेंगे.
सौ से अधिक लोगों का ऐसा ही एक ग्रुप बुधवार को लगभग आठ सौ किलोमीटर पदयात्रा करते हुए दिल्ली के लिए रवाना हुआ जबकि पीडितों का दूसरा समूह रेलगाड़ी से शुक्रवार को चलकर राजधानी पहुँचेगा.
2006 में गैस पीडितों की एक पदयात्रा और फिर दिल्ली के जंतर-मंतर पर लंबे धरने के बाद मनमोहन सिंह ने इस दल की मांग पर एक केंद्रीय समिति का गठन किया था और पीडितों के राहत और पुनर्वास के लिए एक विस्तृत योजना तैयार करने का वायदा किया था.
इस योजना को दिसम्बर 2007 तक तैयार हो जाना था.
स्वयंसेवी कार्यकर्ता रचना ढींगरा ने कहा की यह जत्था गुना, शिवपुरी, ग्वालियर, आगरा और मथुरा होते हुए मार्च के अन्तिम हफ्ते में दिल्ली पहुँचकर जंतर-मंतर पर धरना देगा और अगर ज़रूरत पड़ी तो अनिशचित कालीन भूख हड़ताल भी शुरू करेगा.
तेईस साल पहले यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से हुए गैस रिसाव से सीधे प्रभावित पीडितों के अलावा इस पदयात्रा में अब बंद पड़ी फैक्ट्री के आसपास की बस्तियों में रहने वाले भी शामिल होंगे.
कई अध्ययनों के अनुसार प्लांट में मौजूद रसायनिक कचरा भूतल में सालों से रिस रहा है जिससे आसपास के इलाके का भू जल ज़हरीला हो गया है लेकिन समीप की बस्तियों में रहने वाले लोग उसे ही पीने को मजबूर हैं.
नए आँकड़े
पीडितों और उनके परिवार के पुनर्वास की विस्तृत नीतियों के अलावा संगठनों की मांग है कि भारत सरकार यूनियन कार्बाइड और अब वर्तमान मालिक दाऊ कैमिकल्स के ख़िलाफ़ कानूनी कारवाई करे, दाऊ की भारत में व्यवसायिक गतिविधियों पर रोक लगाए, उससे प्लांट में मौजूद कचरे की सफ़ाई का ख़र्च मांगे और कचरे की मौजूदगी के कारण लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण को हुए नुक़सान की भरपाई करने को कहे.
पीडितों के साथ दुर्घटना के दिन से काम कर रहे अब्दुल जब्बार कहते हैं कि उनके साथ जा रहा यह समूह लोगों को यह बताना चाहता है मुआवज़े के नाम पर पीडितों को जो रक़म मिली है वो नाम मात्र की है क्योंकि दुर्घटना में मारे जाने और उससे प्रभावित लोगों की संख्या में पाँच गुना इज़ाफ़ा हो गया है.
1989 में यूनियन कार्बाइड से सात अरब 15 करोड़ रुपए का जो समझौता हुआ था वह इस आधार पर था कि गैस रिसाव से तीन हज़ार लोगों की मौत हुई थी और एक लाख बीस हज़ार लोग घायल हुए थे.
चार साल पहले जो आधिकारिक आंकडों आए उनके अनुसार अब तक इस दुर्घटना में मारे गए लोगों की संख्या पन्द्रह हज़ार होने और पाँच लाख से अधिक के पीड़ित होने का मामला सामने आया है.
गैस पीडितों के साथ काम कर रही संस्थाओं का दावा है कि उनसे सहानभूति रखने वाली संस्थाएं उनके समर्थन में देश भर में रैलियों, बैठकों और हस्ताक्षर अभियानों का आयोजन कर रही हैं.
साथ ही अमरीका और ब्रिटेन में स्थित भारतीय दूतावासों पर भी उनके समर्थक विरोध प्रदर्शन करेंगे।
फ़ैसल मोहम्मद अलीबीबीसी संवाददाता, भोपाळ
जबलपुर की एक स्थानीय अदालत ने एक अंतरिम आदेश के जरिए भोपाल गैस त्रासदी को लेकर लिखी गई एक किताब पर रोक लगा दी है।
इट वाज द फाईव पास्ट मिडनाइट इन भोपाल पर स्थायी रूप से रोक लगाने की मांग को लेकर दायर याचिका की सुनवाई करते हुए अदालत ने अपने अगले आदेश तक के लिए इसके मुद्रण, प्रकाशन, बिक्री और वितरण पर रोक लगा दी।
फ्रींसीसी लेखक डोमिनिक लापियर और जेवियर मोरो की इस किताब का प्रकाशन फुल सर्किल पब्लिकेशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली ने वर्ष 2001 में किया था और यह साल 1984 में हुई भेपाल गैस त्रासदी पर आधारित है।
मध्य प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक स्वराज पुरी ने किताब के कुछ हिस्सों पर एतराज जताते हुए इस पर रोक लगाने के लिए याचिका दायर की थी। इस पर सुनवाई करते हुए अतिरिक्त जिला जज राजीव सिंह ने कल यह आदेश पारित किया।
गैस त्रासदी के समय पुरी भोपाल के पुलिस अधीक्षक थे। उनका कहना है कि किताब के कुछ हिस्सों के अनुसार दुर्घटना के बाद पुलिस की कार्रवाई नकारात्मक थी। इससे उनकी मानहानि होती है।
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Thursday, November 19, 2009

आओ बनाये नकली स्वर्णिम मध्यप्रदेश?????

भोपाल। मध्य प्रदेश में भ्रम की स्थिति है की हम क्या वाकई स्वर्णिम मध्य प्रदेश के सपने को साकार होते देख रहे हैं या मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का भाषण का शानदार हिस्सा है। बहरहाल ये बहस मुझे नही करीं है, क्योंकि भोपाल टीवी जगत के पत्रकार काशीनाथ ने स्वर्णिम मध्य प्रदेश की हकीकत की सही पोल बहुत अच्छे ढंग से दखल पर खोली है।
मध्य प्रदेश को स्वर्णिम प्रदेश बनाना है, इसके वासियों में मध्य प्रदेशी होने का गर्व पैदा करना है, हमारे प्रदेश का एक अपना गीत होगा, अकेले सरकार नहीं जनता को भी प्रदेश की तरक्की से जोडेंगे ये वो बातें हैं जो हमने एक नवम्बर को भोपाल के मोती लाल नेहरु स्टेडियम में मध्य प्रदेश के स्थापना दिवस के कार्य क्रम में सुनी थी और बड़े ही गर्व के साथ हमारे सूबे के सूबेदार शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल सहित पूरे प्रदेश में इस तरह के आयोजन में मौजूद हर प्रदेश वासी को एक शपथ भी राज्यपाल के जरिये दिलाई थी। उसी दिन ये भी कहा गया की इस साल स्थापना दिवस का जलसा एक दिन नहीं पूरे सात दिन चलेगा और जनता को अपना प्रदेश की भावना से ओत प्रोत करके ही दम लिया जायेगा. ये जलसा चल पड़ा पहले दिन की शाम को भोपाल के रविन्द्र भवन के मुक्ताकाशी मंच पर गीतकार शान ने अपना जलवा बिखेर दिया. रॉक एंड डांस और झूमते युवाओं की टोलियों से लगा की अपना मध्य प्रदेश स्वर्णिम बन रहा है. अलग अलग जिलों और संभागों में विकास की तमाम चर्चाएँ भी चलती रही. लोगों में एक भाव आया भी की अपना प्रदेश है और इसकी तरक्की में हम सब जुट जाएँ तो बड़ी मुश्किल भी आसान हो जायेगी. फिर सरकार साथ है तो काम भी शुरु होगा. ६वे दिन की बात है सूबेदार शिवराज सिंह जी सूबे के एक जिले सतना आये विन्ध्य इलाके का ये जिला उद्योग खासकर सीमेंट उद्योग के लिए प्रसिद्ध भी है. सतना में मौका था गरीब उत्थान सम्मलेन का तमाम गरीब इकठ्ठा थे उनको लग रहा था की प्रदेश को स्वर्णिम बनाने का महाभियान चल रहा है.राजा आये है तो आज तो गरीब नहीं गरीबी हटाने की कोई मुहिम या बात होगी जादू का पिटारा भले ही ना खुले जादू की छड़ी तो दिखेगी जो नया रास्ता दिखाएगी हुआ भी कुछ ऐसा ही हमारे शिवराज जी ने हुंकार भरी और कहा की अब ये नहीं चलेगा की जमीन हमारी, खनिज हमारा, प्रदेश हमारा और उद्योग लगाने वाले हमारे मध्य प्रदेशी को रोजगार ना देकर बिहारी या और दुसरे प्रदेश के लोगों को रोजगार दें. यहाँ उद्योग लगोगे तो रोजगार भी यहाँ के लोगों को देना होगा. जनता खुश, सभी को लगा की हमारे मध्य प्रदेश की नई चाल चरित्र और चेहरा होगा. गरीबी भी दूर होगी और रोजगार भी मिलेगा. आज शिव ने अपना रौद्र रूप दिखा दिया है अब जो आड़े आएगा वो भस्म हो जायेगा. शिव की जनता को के हक पर अब कोई डाका नहीं डाल पायेगा. जनता खुश की चलो पहली बार किसी ने अपने प्रदेश वासी होने का एहसास कराया है. बात बड़ी थी और दमदार भी. सो सबकी नजर में आ गई. वाकई ये पहला मौका था जब मध्य प्रदेश में बड़ी चर्चा बनी और लगा की किसी ने ये बीडा उठाया है.( सही या गलत की बहस अभी नहीं करना चाहते और बहस भी लम्बी है. इसको आगे चलाया भी जा सकता है. और मुंबई की घटना के बाद तो और भी जरुरी है.)शिव के शब्द बाण कैमरा ने पकड़ लिए और इस मामले ने दुसरे दिन यानि ७ नवम्बर (स्थापना दिवस सप्ताह का आखरी दिन) को सुबह से टीवी चेनल्स पर हंगामा खडा हो गया. पहला स्लग चला " शिव चले राज की चाल" चेनल्स ने शिवराज सिंह की तुलना राज ठाकरे से करते हुए खबर को उठा दिया. हम पत्रकारों को भी ख़ुशी की चलो आज प्रदेश की खबर और मुख्यमंत्री हर चेनल की हेड लाइन है. खूब चेट और फोनों होने लगे पत्रकार साथी भी बढ़ चढ़ कर हांकने लगे. सरकार सकते में ये क्या हो रहा है. बिहार के नेता भी बाईट देने लगे पक्ष और विपक्ष दोनों तरह की प्रतिक्रिया आने लगी कुल जमा एक तेज हलचल का दिन. लेकिन तभी दोपहर के तीन बजे प्रदेश के ही दुसरे जिले इंदौर में ये क्या हमारे शिवराज जी ने कहा की मेरा कहने का आशय ये नहीं था मध्य प्रदेश के दरवाजे सभी के लिए खुले है. यानि ठीक २४ घंटे के अन्दर मुख्यमंत्री ने अपना कहा पलट दिया. लो अब क्या करोगे चेनल वाले चुप सबको लगा था अच्छा मसाला मिला खूब खेलेंगे. शाम को प्राइम टाइम में भी चेट करेंगे और खेलेंगे. कभी कभी तो मौका आता है जब मध्य प्रदेश से कोई खबर इतनी बिकती है. मुख्यमंत्री ने जो कहा उसको बदल दिया और बात बीत गई. खैर मैं भी मानता हूँ की किसी भाषा, प्रदेश, जाति, बोली और मजहब के नाम पर या का सहारा लेकर किसी भी तरह के विकास की बात संविधान के खिलाफ तो है ही भारत की बहुरंगी बसाहट, जिन्दगी, रिवाज, तासीर के भी खिलाफ है. लेकिन फिर भी मैंने सोचा ये बात तो शिव ने कही थी आम तौर पर ये माना जाता है की शिव ने जो भी कहा या वरदान दिया, उससे वो वापस नहीं हुए फिर चाहे श्रीराम की विरूद्व रावन का मामला हो या भस्मासुर का. शिव ने कह दिया तो कह दिया जो होगा देखेंगे. लेकिन हमारे शिव तो २४ घंटे में ही रण छोड़ कर अलग हो गए. वो तो रण छोड़ निकले. अब जनता परेशान की अपना प्रदेश क्या बनेगा. हुंकार भर कर राजा ही पीछे हो जाये तो प्रजा की क्या बिसात. फिर लगा की इतना भावुक होने की जरुरत नहीं नहीं है. प्रदेश के असली वारिस या बाशिंदे आदिवासी हैं जो अब भी फटेहाल ही हैं उनकी बात तो हो नहीं रही थी, आदिवासी को ये भी मालूम है की स्वर्णिम प्रदेश तो तब था जब उनका राज था और ये बावन गढ़ओ का सूबा हुआ करता था. आज तो इस पर बाहर से आये और दो और तीन पीढी पहले बसे लोगों का प्रदेश है अब स्वर्णिम भी बना तो आदिवासी तक पहुँच पायेगा इसकी उम्मीद भी उसको कम ही है. कोई रण छोडे तो कोई बात नहीं लेकिन मैं तो अपने प्रदेश को स्वर्णिम ही देखना चाहता हूँ और जो बन पड़ेगा करूँगा भी क्यूंकि में सियासतदा तो नहीं इस सूबे का आम आदमी हूँ मेरे कहने और करने में अदला बदली की गुंजाइश कम ही है. मैं दम से कहता हूँ जय मध्य प्रदेश सब आओ मिल कर बनाओ स्वर्णिम और देश.

फ़िर खुली राजनेताओं और प्रशासन के दावो की पोल

भोपाल। मध्य प्रदेश में आमजन के उत्पीड़न की स्थिति सरकार के नियंत्रण से बाहर जा चुकी है। प्रशासन हमेशा की तरह ख़ामोशी की चादर ओड़े हुए है। जबलपुर की एक लोमहर्षक घटना इसका प्रमाण है।
कहाँ खो गई प्रशासन की संवेदनशीलता
कहाँ खो गई प्रशासन की संवेदनशीलताभगवानदेव ईसरानीजबलपुर के मदन महल इलाके में नाले से निकासी पर पड़ोसियों के आपसी विवाद और उसके निदान में पुलिस एवं स्थानीय प्रशासन की उदासीनता व उपेक्षा से क्षुब्ध एक युवक सुनील सेन ने कुल्हाड़ी से अपनी माँ, बहन, दो बेटों और एक भतीजे की हत्या कर दी । एक बुजुर्ग पड़ोसी को भी मार डाला । ऐसी ही लोमहर्षक घटना मुंबई के ठाणे इलाके से सामने आई है । फ्रांसिस गोम्स नाम के इस व्यक्ति ने अपनी पत्नी सहित तीन जवान बेटियों को सात साल तक एक कमरे में इस डर से कैद रखा कि वे घर से बाहर जाएंगी तो उनके साथ दुष्कृत्य हो जाएगा । दोनों घटनाएँ मूलतः प्रशासनिक चूक और उससे उत्पन्न स्थितियों, बल्कि व्यवस्था के प्रति गहरे अविश्वास का ही परिणाम है । इन्हें सिर्फ मानसिक रोगी का कृत्य मानकर या होनी कहकर टालना सत्य से मुँह मोड़ना है। राजनीतिक हस्तक्षेप सहित विभिन्न कारणों से प्रशासनिक संवेदनशीलता में अदालतों में लंबित मामलों की वजह से हर क्षेत्र में अधिकांश अपराधी सजा नहीं पा पाते । अपराधियों में प्रशासन व कानून का डर समाप्त हो जाने का परिणाम आज समाज का हर वर्ग किसी न किसी रूप में भुगत रहा है । जनसमस्याओं के प्रति प्रशासन की असंवेदनशीलता के कारण ही धरने, प्रदर्शनों ने अब चक्काजाम, रेल रोको और शासकीय सम्पत्ति की तोड़फोड़ का रूप ले लिया है । पढ़ी-लिखी और समझदार जमात नक्सलियों की समर्थक होती हम देख रहे हैं । अपराधी तत्वों के हौसले इस हद तक हैं कि पिछले दिनों भोपाल के ही निशातपुरा थाना क्षेत्र में दो टी।आई. सहित आधा दर्जन पुलिसकर्मी अपराधियों के हमले से घायल हुए । पुलिस महानिदेशक के उपस्थित रहते इन्दौर में कंट्रोल रूम प्रभारी को पीट दिया गया । १ अप्रैल २००४ से ३१ दिसम्बर २००७ के दौरान शासकीय अफसरों व कर्मचारियों की मारपीट, उनकी प्रताड़ना के दर्ज मामलों की संख्या ७१२८ है । यदि ये हालात आम जनता के बदल रहे आचरण का संकेत है तो इसके निदान में विलंब घातक हो सकता है । हमें यह मानना होगा कि महिलाओं, बालिकाओं के साथ बलात्कार, व्यभिचार, छोड़छाड़ गंभीर समस्या बन गया है । शासन बालिकाओं की पैदाइश व पोषण से लेकर उनकी शादी और महिलाओं के सुरक्षित प्रसव तक की व्यवस्था कर रहा है, लेकिन आज भी उनके सुरक्षित शौच, सम्मानित जीवन व सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था हम नहीं कर पाए हैं । फ्रांसिस गोम्स की मानसिक स्थिति का अंदाजा इस प्रदेश की कुछ घटनाओं से लगाया जा सकता है, क्योंकि ऐसी ही घटनाएँ और उसके परिणाम कमजोर बुद्धि वाले व्यक्तियों या पीड़ितों के अंतर्मन में घर कर जाती है और गहरे अवसाद का कारण बनती है । सर्वे में ये बात सामने आई है कि कन्या भ्रूण हत्या का एक कारण अगर दहेज और दहेज प्रताड़ना है तो दूसरा बड़ा कारण कानून व्यवस्था की स्थिति भी है, जिसके कारण बालिकाओं के स्वाभिमान की रक्षा करने में माँ-बाप खुद को असमर्थ पाते हैं । प्रदेश में एक समय उम्मीद का आया था, लेकिन तत्कालीन गृहमंत्री की संवेदनशीलता और क्रियाशीलता जब तक रंग लाती, तब तक वे बदल दिए गए । मार्च १९९० में शीतला सहाय ने प्रभावी ढंग से गृहमंत्री के रूप में काम प्रारंभ किया । उन्होंने माना कि वीआईपी ड्यूटी, कानून व्यवस्था तथा मामलों की तफ्तीश एक ही अमले के द्वारा नहीं होना चाहिए । तफ्तीश के अमले को दूसरे कामों में नहीं लगाया जाना चाहिए, ताकि जन-समस्याओं और अपराधों का निराकरण समय पर हो सके । उन्होंने यह साहसकि घोषाा भी की कि थाने में रिपोर्ट लिखी जाना अनिवार्य हो, ताकि अपने-अपने इलाकों में अपराध कम बताने के लिए थाने का स्टाफ आंकड़ों की बाजीगरी न कर सके, लेकिन तीन माह बाद जून १९९० में वे सिंचाई मंत्री बना दिए गए । वर्ष १९९० में बलात्कार के मामलों की संख्या १७०५ थी, जो फरवरी २००८ में बढ़कर १२२३८ हो गई है । दिसम्बर २००३ से जून २००७ तक सामूहिक बलात्कार के १२१७ मामले हुए । इनमें से अवयस्क बालिकाओं के साथ घटे मामले ७२६ थे । यह सब बताने का उद्देश्य प्रशासन की संवेदनशीलता को जाग्रत करना ही है, क्योंकि बिना इसके समस्या का निदान संभव नहीं है । कानून का सम्मान वापस लाने के प्रयास हुए बिना जनता का विश्वास वापस नहीं लाया जा सकता । पुलिस प्रशासन से लेकर सीबीआई तक से आम जनता का विश्वास अकारण नहीं घटा है, वर्तमान संसदीय व्यवस्था और राजनेताओं के प्रति आम जनता में उपेक्षा का भाव बढ़ने की भी ठोस वजहें हैं और उसका परिणाम है राजनेताओं पर जूते-चप्पल फेंकने की घटनाएँ । इसे समय रहते रोकना होगा अन्यथा जनाक्रोश कल क्या रूप लेगा, इसे कोई नहीं बता सकता । कानून व्यवस्था में सुधार हर प्राथमिकता से ऊपर है । प्रदेश की लाडली को लक्ष्मी के साथ सम्मान से जीने का हक भी देना होगा ।
लेखक मध्यप्रदेश विधानसभा के सचिव भगवानदेव ईसरानी हैं

Wednesday, November 11, 2009

सदन से भी क्यों मांगते हो माफ़ी

हिंदू, हिन्दी, हिन्दुश्थान ही रहेगा सबसे ऊँचा
भोपाल। अभी-अभी महाराष्ट्र विधानसभा में फ़िर हंगामा हुआ। अफ़सोस की बात है की ये हंगामा उनके द्वारा ही किया गया, जिन्होंने मंगलवार को विधायक अबू काज़मी के साथ मारपीट की थी। महाराष्ट्र की नवगठित विधानसभा के विशेष सत्र के अंतिम दिन आज विपक्षी शिवसेना व भाजपा के विधायकों ने शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के खिलाफ़ समाजवादी पार्टी विधायक अबू आसिम आजमी की कथित विवादास्पद टिप्पणी को लेकर काफ़ी हंगामा मचाया और अबू आजमी की गिरफ्तारी की मांग की। अब ये लोग
अपने आका बाल ठाकरे को सामने रखकर ख़ुद को जनता के सामने पाक साफ घोषित करना चाहते हैं। अब काग रहे हैं की वे सदन से माफ़ी मांग लेंगे लेकिन अबू काज़मी से माफ़ी नहीं मंगेंगऐ। में तो खटा हबन की सदन से भी क्यों माफ़ी मांग रहे हो। क्योंकि शर्मशार तो सदन को किया था। अबू काज़मी भी कोई ढूढ़ के धुले नही होंगे लेकिन सदन क्यों इन विधायक रूपी गुंडों को सहे।
सुबह के सत्र में शिवसेना विधायक दल के नेता सुभाष देसाई और सदन में विपक्ष के नेता एकनाथ खड़से भाजपा के नेतृत्व में सदस्यों की नारेबाजी और हंगामे के बीच सदन की कार्रवाई तीन बार स्थगित करनी पड़ी. श्री आजमी ने कल कथित रूप से संवाददाताओं से कहा था कि बाल ठाकरे बूढ़े हो चले हैं और बच्चों की तरह बातें करते हैं. श्री आजमी ने यह शिवसेना के मुखपत्र मराठी दैनिक सामना में छपे संपादकी के बारे में पूछने पर यह कथित टिप्पणी की थी. शिवसेना विधायकों ने श्री आजमी का विधान भवन के बाहर घेराव किया था पर श्री आजमी ने ऐसी कोई टिप्पणी करने से इनकार किया था. इसी के बाद आज हंगामा हुआ। दरअसल राज ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र नवर्निमाण सेना (मनसे) ने आज कहा कि वह अपने कृत्य के लिए सदन से माफी मांगेगी न कि समाजवादी पार्टी के नेता अबु आजमी से, जिन पर मनसे विधायकों ने हमला किया था। अब मनसे नेता अतुल सरपोतदार bअडे नैतिक होने का ढोंग कर रहे हैं और कह रहे हैं की , "हम सदन से माफी मांगेगे क्योंकि हमारा इरादा सदन की छवि को धूमिल करने का नहीं था।

क्या सच में मप्र पुलिस इतनी साहसी हो गई कि एक सत्ताधारी दल के मंत्री पुत्र को बेल्ट से पीट सके?

  क्या सच में मप्र पुलिस इतनी साहसी हो गई कि एक सत्ताधारी दल के मंत्री पुत्र को बेल्ट से पीट सके? अब तक तो यकीन नहीं हो रहा था, लेकिन खबर दै...