Sunday, April 19, 2009

और कितना गिरोगे भाई?

"ये वाकया तब का है जब जॉर्ज बुश भारत आया था। उसके स्वागत में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 40-50 लोगों को रात्रिभोज में बुलाया था। मुझे भी बुलावा आया था। मैं गया लेकिन छाती पर एक बैज लगाकर, उसपर लिखा था खून के बदले तेल नहीं मिलेगा। मेरे वहां ऐसे जाते ही प्रधानमंत्री ने जॉर्ज को कहीं और ले जाना चाहा लेकिन मैंने वहीं से जॉर्ज बुश की तरफ बोलते हुए डांटना शुरु कर दिया। ये देख कर जॉर्ज बुश थर्र-थर्र कांपने लगा। बुश को अभी किसी पत्रकार ने जूता मारा है, मैं तो ......." ये कहना है शाहिद सिद्दीकी का। सालों तक एसपी का दामन थामे बैठे शाहिद सिद्दीकी इस बार बिजनौर लोकसभा सीट से बीएसपी के उम्मीदवार हैं। वोटर्स को रिझाने के लिए नेता कितनी मूर्खतापूर्ण बातें कर सकते हैं इस घटना से साफ ज़ाहिर होता है। सिद्दीकी साहब ने ये बात बिजनौर में अपने संबोधन के दौरान कही। अब आप सोच रहे होंगे कि भला बिजनौर लोकसभा सीट में चुनाव प्रचार हो रहा है तो जॉर्ज बुश का इससे क्या सम्बन्ध? तो जनाब इसमें गहरा सम्बन्ध है। दरअसल सिद्दीका साहब को पता है कि जनता है चुनावी दावों और वादों पर यकीन करना छोड़ दिया है। ऐसे में उन्होंने एक ऐसा तीर छोड़ा जिससे मतदाता का दिल भी घायल हो जाए और विपक्ष के दिल में भी चुभन पैदा हो। इस चुनावी तीर को चुनाव प्रचार मैनुअल में ब्ह्रास्त्र कहते हैं। जी हां, किसी की धार्मिक भावना पर चोट करना। सिद्दीकी साहब बिजनौर में मुस्लिम बहुल इलाके में जनसभा को संबोधित कर रहे थे। अमेरिका के इराक और अफगानिस्तान पर हमला करने को सिद्दीकी भुनान चाहते थे। वो उपरोक्त घटना का जिक्र करके बिजनौर के मुसलमानों को बताना चाह रहे थे कि इराक और अफगानिस्तान के मुस्लिमों के साथ अन्याय करने वाले जॉर्ज को उन्होंने दिल्ली में अपमानित कर दिया। वाह री राजनीति, तू भी क्या-क्या करवाती है। खैर इतना ही होता तो बाद अलग थी। इसे एक चुटकी समझकर नज़रअंदाज़ किया जा सकता था। लेकिन इसके बाद सिद्दीकी ने वही राग छेड़ दिया जिसे आज हर कोई गा रहा है। सिद्दीकी ने मेरठ के दंगों और अक्टूबर 1990 में हुए बिजनौर के दंगों का जिक्र छेड़कर एक बार फिर जनता के ज़ख्मों को कुरेदा। साथ ही उन्होंने बिजनौर दंगों के लिए मुलायम सिंह यादव को जिम्मेदार ठहराया। लेकिन जाने क्यों सिद्दीकी साहब ये क्यों भूल गए कि वह खुद सालों तक मुलायम के साथ बने रहे हैं। फिर आज क्यो उनको एकाएक ये ध्यान हो आया? उन्होंने मुलायम-कल्याण पर लाशों के ढेर पर राजनीति करने का भी आरोप लगाया। यही नहीं उन्होंने वरुण गांधी के भड़काऊ भाषण के अंशों का इस्तेमाल किया। यानि पूरा भाषण मुद्दों पर कम भावनाओं पर चोट करने पर ज्यादा केंद्रित रहा। भले ही सिद्दीकी ने अपने तीर से जॉर्ज बुश को साध रखा हो लेकिन उनका असली निशाना वोटर ही है। यही वजह है कि अपने मुंह मियां मिट्ठु बनने से साथ ही उन्होंने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति से साथ भारत के प्रधानमंत्री को भी अपने सामने बौना साबित कर दिया। क्यों नहीं ऐसे नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की जाती। कहां है देश की लाखों माओं का दर्द समझने वाली मायावती जिसे राहुल गांधी के भाषण के बाद तो तो रासुका लगाने की ज़रूरत पड़ती है लेकिन अपनी पार्टी के नेताओं के मुंह से निकलता ज़हर दिखाई नहीं देता। जिन-जिन बाहुबलियों को माया ने टिकट दिया है जाने आज तक वो कितनी मांओं की गोद सूनी कर चुके हैं।

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