ये बडी विचित्र स्थिति है कि जब पूरे प्रदेश की जनता अपने मुखिया को गरम तवे बैठकर ईमानदार मानने को तैयार है, इसके बावजूद उनके मुखिया अपनी जनता के हितों के मंत्रियों के हितों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। या कहें कि वे मंत्रियों की तरफ भ्रष्टाचार करने पर बिल्कुल ध्यान नहीं दे रहे हैं फिर चाहे मंत्री कितना ही भ्रष्ट क्यों न हो। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से प्रदेश की साढे छह करोड जनता को बडी आशाएं हैं। वह भी तब जब शिवराज दोबारा मुख्यमंत्री बने। ये अलग बात है कि इस चुनाव में कांग्रेस ने हार को जीत में बदलने के लिए कुछ भी नहीं किया। जबकि प्रदेश में भाजपा के मंत्रियों द्वारा किए गए भ्रष्टाचार से कौन त्रस्त नहीं था। खैर ये अलग विषय है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दूसरी पारी के कुछ पहले और अब जो कुछ कर रहे है, उसमें गाँव की मिट्टी तथा आम आदमी के पसीने की गंध की बजाय कारपोरेट और डिजाइनर नेताओं की गंध आ रही है उन्होंने अभी अपने मंत्रियों की राजनितिक-प्रशासनिक क्षमता और दक्षता को परखने के लिए पचमढ़ी में शिविर आयोजित किया शिवराज सिंह चौहान बताये कि वे राजनीति में तीस साल से है क्या इससे पहले उन्होंने कोई राजनीति की पाठशाला ज्वाइन की थी? लालू यादव और लाल कृष्ण आडवानी आईआईएम से पढ़े हुए है ? नही फ़िर यह चोचलेबाजी क्यों ? दरअसल ये कवायद वे लोग करते हैं , जो पांच सितारा होटल्स और कारपोरेट हाउसेस की दल्लागिरी करके राजनीति में आते हैं या राजनीति से दल्लागिरी करते हैं चुनाव पूर्व हुई भोपाल की रैली हो या चुनाव के ठीक बाद मुख्यमंत्री शपथ ग्रहण समारोह , सबमे करोडो रुपए फूंके गए क्या इन आयोजनों पर सरकारी अथवा पार्टी फंड से खर्च हुआ ? नही ! इन आयोजनों पर दलालों ने खर्च किया, जो कि शिवराज सिंह चौहान की ईमानदारी पर सवालिया निशान लगाती है। भाई प्रदेश की मुख्यमंत्री पर ऐतबार करती है तो उनकी जिम्मेदारी पुरे तंत्र को भष्टाचार मुक्त बनाने की हैं इसकी शुरुआत योजनाओं के मूल से होना चाहिए अफसर, राजनेता, ठेकेदार और बिचोलियों का गठजोड़ नई योजनाओ - पालिसियों पर कड़ी नजर रखता है
यह चिंतनीय और शोभनीय है। शिवराज सिंह चौहान भली भांति जानते है कि कौन भ्रष्ट है और कौन दलाल हैं , फ़िर भी वे मौन क्यों हैं? क्या संघ के कतिपय मठाधीशों के हस्तिनापुर से आप बंधे हुए हैं? अगर हां तो कोई बात नही अगर नही तो मुख्यमंत्री को सफाई अभियान चलाना चाहिए।
2 comments:
मामला तगड़ा है जनाब
शिवराज बाबू चुनाव जीतकर आये है यह सही है लेकिन इसकी गारंटी कौन ले रहा है कि चुनाव जीतने का मापदंड क्या है राजनीति इस कदर हो रही है अपने देश में कि जो चुनाव के मुद्दे होने चाहिए वही राजनीति से गायब है । चुनाव तो अब तीन महीनों मे भी जीता जा सकता है । बढ़िया आलेख
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